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संस्कृति

‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ के 27 वर्ष पूर्ण होने पर होगा 'राजगति' का मंचन

Prema Negi
9 Aug 2019 8:17 AM GMT
‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ के 27 वर्ष पूर्ण होने पर होगा राजगति का मंचन
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बिना किसी सरकारी, गैर सरकारी, कॉर्पोरेट फंडिंग या अनुदान के अपनी प्रासंगिकता और अपने मूल्य के बल पर 'थिएटर और रेलेवंस' रंग विचार देश-विदेश में अपना दमख़म दिखा रहा है और देखने वालों को अपने होने का औचित्य बतला रहा है...

मुंबई। जब सत्ता स्वयं ‘संविधान’ को खंडित करे, ऐसे समय में देश की मालिक जनता को ‘संविधान’ की रक्षा करने की जरूरत है। यह संविधान है जो जनता को देश का मालिक होने की वैधानिकता प्रदान करता है। देशवासियों को यह याद रखने की आवश्यकता है की कोई भी सत्ता यह अधिकार उन्हें नहीं देती।

सी मिशन को साकार करने हेतु ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन के 28वें सूत्रपात दिवस पर “विचार, विविधता, विज्ञान, विवेक और संविधान सम्मत” राजनीतिक कौम तैयार करने का संकल्प लेते हुए शिवाजी नाट्य मन्दिर, मुम्बई में 12 अगस्त को होगा नाटक 'राजगति' का मंचन। इसके निर्देशक-लेखक मंजुल भारद्वाज हैं। अश्विनी नांदेडकर, सायली पावसकर, कोमल खामकर, तुषार म्हस्के, स्वाति वाघ, सचिन गाडेकर, बेट्सी एंड्रूज,ईश्वरी भालेराव, प्रियांका कांबळे इसमें कलाकार हैं।

‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन के 27 वर्ष पूर्ण होने पर इस नाटक का मंचन किया जा रहा है। 12 अगस्त 1992 को ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन का सूत्रपात हुआ था। उस समय भूमंडलीकरण का अजगर प्राकृतिक संसाधनों को लीलने के लिए अपना फन विश्व में फैला चुका था। पूंजीवादियों ने दुनिया को ‘खरीदने और बेचने’ तक सीमित कर दिया।

विगत 27 वर्षों से थिएटर ऑफ़ रेलेवंस ने साम्प्रदायिकता पर ‘दूर से किसी ने आवाज़ दी’, बाल मजदूरी पर ‘मेरा बचपन’, घरेलु हिंसा पर ‘द्वंद्व’, अपने अस्तित्व को खोजती हुई आधी आबादी की आवाज़ ‘मैं औरत हूँ’, ‘लिंग चयन’ के विषय पर ‘लाडली’, जैविक और भौगोलिक विविधता पर “बी-7”, मानवता और प्रकृति के नैसर्गिक संसाधनों के निजीकरण के खिलाफ “ड्राप बाय ड्राप :वाटर”, मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने के लिए “गर्भ”, किसानों की आत्महत्या और खेती के विनाश पर ‘किसानों का संघर्ष’ , कलाकारों को कठपुतली बनाने वाले इस आर्थिक तंत्र से कलाकारों की मुक्ति के लिए “अनहद नाद-अन हर्ड साउंड्स ऑफ़ यूनिवर्स”, शोषण और दमनकारी पितृसत्ता के खिलाफ़ न्याय, समता और समानता की हुंकार “न्याय के भंवर में भंवरी”, समाज में राजनीतिक चेतना जगाने के लिए ‘राजगति’ नाटक का सफल मंचन किया।

बिना किसी सरकारी, गैर सरकारी, कॉर्पोरेटफंडिंग या किसी भी देशी विदेशी अनुदान के अपनी प्रासंगिकता और अपने मूल्य के बल पर यह रंग विचार देश विदेश में अपना दमख़म दिखा रहा है और देखने वालों को अपने होने का औचित्य बतला रहा है। सरकार के 300 से 1000 करोड़ के अनुमानित संस्कृति संवर्धन बजट के बरक्स ‘दर्शक’ सहभागिता पर खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” रंग आन्दोलन मुंबई से लेकर मणिपुर तक।

सी क्रम में सुप्रसिद्ध रंगचिन्तक मंजुल भारद्वाज लिखित और निर्देशित नाटक “राजगति” समता, न्याय, मानवता और संवैधानिक व्यवस्था के निर्माण के लिए ‘राजनीतिक परिदृश्य’ को बदलने की चेतना जगाता है। “नाटक 'राजगति', : “नाटक राजगति ‘सत्ता, व्यवस्था, राजनीतिक चरित्र और राजनीति’ की गति है। राजनीति को पवित्र नीति मानता है।

राजनीति गंदी नहीं है, के भ्रम को तोड़कर राजनीति में जन सहभागिता की अपील करता है। ‘मेरा राजनीति से क्या लेना देना’ आमजन की इस अवधारणा को दिशा देता। आम जन लोकतन्त्र का प्रहरी है। प्रहरी है तो आम जन का सीधे सीधे राजनीति से सम्बन्ध है। समता,न्याय,मानवता और संवैधानिक व्यवस्था के निर्माण के लिए ‘राजनीतिक परिदृश्य’ को बदलने की चेतना जगाता है, जिससे आत्महीनता के भाव को ध्वस्त कर ‘आत्मबल’ से प्रेरित ‘राजनैतिक नेतृत्व’ का निर्माण हो।'

से समय में थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकार समाज की ‘फ्रोजन स्टेट’ को तोड़ने के लिए विवेक की मिटटी में विचार का पौधा लगाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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