'वो मेरा घर जला रहे थे और मैं पीछे मुड़कर भी नहीं देख पायी..'
आफताब ने दंगों के बाद व्यापार तो खोया ही, साथ ही बचपन में जिन लोगों के साथ बड़े हुए थे उनका भरोसा भी। आफताब बताते हैं, 'मैं 1985 से शिव विहार के इलाके में रहता हूं। मेरा बचपन से लेकर जवानी इन्हीं गालियों में निकली है लेकिन ऐसा डर का माहौल नहीं देखा था..
मुस्तफाबाद से विकास राणा की ग्राउंड रिपोर्ट
जनज्वार। दिल्ली में दंगों को हुए 7 दिन बीत चुके हैं। यमुना विहार के चौराहे में अभी भी पुलिस का कड़ा पहरा लगा हुआ है। तमाम टीवी चैनल अभी भी दंगों के इलाको में रिपोर्ट करते हुए दिख रहे हैं। मुस्तफाबाद का शिव विहार इलाका 24 फरवरी को हुए दंगों का केंद्र माना जाता है। दंगों के दौरान सबसे ज्यादा आग और नफरत शिव विहार में फैली हुई थी। लेकिन दंगों के बाद एक बार फिर शिव विहार के लोग उस समय को भूलकर अपनी जिंदगी को सामान्य बनाने की कोशिश जुट गए हैं। यमुना नगर के अग्रवाल स्वीट शॉप के सामने कुछ पुलिस वाले अभी भी सुरक्षा के लिए बैठे हुए हैं।
लोग अपनी दुकानों को खोलकर काम में लग गए हैं। इसी दौरान कुछ बुजुर्ग और स्थानीय निवासी गली की कॉलोनियों में बैठे हुए दिखे जो दंगों को लेकर बात कर रहे थे। ऐसे में दंगों के बाद अपने घरों को छोड़ जिंदगी बचाने के लिए कई लोगों ने मुस्तफाबाद की गलियों में रहने को मजबूर हो गए हैं।
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करीब 1500 लोग कुछ ही दूरी में अपने अशियानों को छोड़कर जिंदगी को बचाने के लिए छतों, अधूरे बने मकानों में रहने के लिए मजबूर हैं। इसी में शिव विहार से अपने घरों को छोड़कर आई गुलिस्ता काफी परेशान दिखीं। गुलिस्ता अपने पूरे परिवार के साथ शाहिद के घर में ठहरी हुई हैं। दंगों के बाद गुलिस्ता अपने पूरे परिवार के साथ यहां पर एक छोटे से कमरे में रहने के लिए मजबूर है। बचे हुए समान के साथ वो केवल अपने बच्चों को खाना खिला पा रही है। इसके अलावा शाहिद और स्थानीय निवासी भी इन लोगों के खाने-पीने के अलावा अन्य जरिए से मदद कर रहे हैं। लेकिन सरकार की तरफ से अभी इनको किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है।
घटना को याद करते हुए गुलिस्ता बताती हैं कि हिंसा के दौरान करीब 50 लोगों का एक समूह हमारी तरफ 'जय श्री राम' के नारे लगाते हुए आ रहा था जिसके बाद मैं अपने पूरे परिवार को घर से भगाते हुए शिव विहार की तरफ भागी, दंगाई इस दौरान दंगाई हमारे घर पर पत्थर फेंक रहे थे। भागने के दौरान हम लोगों ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। घर से भागते हुए शिव विहार की तरफ आते हुए हम लोग यहां कि गलियों में घुस गए क्योंकि इस इलाके में मुस्लिम आबादी ज्यादा थी जिस कारण हम लोग यहां सुरक्षित थे। इस दौरान हमें शाहिद भाई का घर दिखा जो हमारे जानकार भी थे। भगदड़ के दौरान मेरे परिवार के अलावा भी कई लोग थे जो उस समय अपनी जान को बचाने के लिए घर से भागे थे जो अभी भी अलग-अलग इलाकों में बचने के लिए लोगों के घरों में रह रहे हैं।
गुलिस्ता आगे बताती हैं, 'दंगों से कुछ समय पहले मैं अपने पति के इलाज के पेपर लेने के लिए अस्पताल जा रही थी। इसी दौरान 'जय श्रीराम' के नारे लगाने की तेज आवाज गली से आने लग गई। जिसके बाद हमनें जब पुलिस को मदद के लिए फोन किया तो उनकी तरफ से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली, उल्टा पुलिस वालों ने फोन पर हमें अपने किए की भुगतने के लिए कहा।
'जब हमें लगा कि पुलिस भी हमारी कोई मदद नहीं करने वाली है तो हमारी पूरी उम्मीदें टूट चुकी थीं। इसके बाद हम लोगों ने अपने घरों को छोड़कर अपनी जिंदगी बचाना सही समझा। हमले के बाद हमारा परिवार इतना ज्यादा डरा हुआ है कि कोई भी अपने घर वापस नहीं जाना चाहता।'
परिवार के मुखिया मोहम्मद आफताब भी काफी डर के साथ शाहिद के घर पर बैठे हुए हैं। आफताब ने दंगों के बाद व्यापार तो खोया ही दिया, साथ ही बचपन में जिन लोगों के साथ बड़े हुए थे उनका भरोसा भी खो दिया। दंगों को याद करते हुए आफताब बताते हैं, 'मैं 1985 से शिव विहार के इलाके में रहता हूं। मेरा बचपन से लेकर जवानी इन्हीं गालियों में निकली है लेकिन आज से पहले जिंदगी में मैने कभी ऐसा डर का माहौल नहीं देखा था। दंगे से पहले इलाकों के माहौल के बारे में मुझे पता चल गया था जिसके बाद मैं अपनी दुकान को बंद करके घर आ गया था। मुझे पहले ही आभास हो चुका था कि हमारे इलाके में दंगा होकर रहेगा।
'इसके कुछ समय के बाद ही दंगाईयों ने नाला रोड़ के पास से तोड़फोड़ करना शुरू कर दिया था। अगले दिन जब हम वापस अपने घर की तरफ गए तो वहां पर दंगाई तलवार लेकर खड़े हो रखे थे। उन लोगों ने मुझे देख लिया था लेकिन तभी पुलिस की कुछ गाड़ियों की आवाज वहां आने लगी थीं जिससे दंगाई वहां से भाग गए। अगर पुलिस उस समय नहीं आती तो शायद आज मैं जिंदा नहीं बच पाता। दंगों के दौरान हमारे ऊपर इतना भंयकर हमला हुआ कि हम वापस अपने घरों में जाने के लिए तैयार नहीं हैं।'
शिव विहार में मदीन मस्जिद के पास रहने वाली शायरा बानो अपने पूरे परिवार के साथ घर से भागकर इंद्रपुरी की गली में एक कच्चे मकान में रहने को मजबूर है। इंद्रपुरी की गली में चमन नाम के एक व्यक्ति के चार मंजिला मकान में कम से कम 60 लोग रह रहे हैं। इस पूरे कच्चे मकान को शिविर कैंप के रूप में बदल दिया गया है। कच्चे मकान में रह रही शायरा के पास घर के सामान के तौर पर अब केवल बर्तन और कुछ बच्चों के कपड़े हैं। वह अपने पूरे घर को गवां चुकी हैं। अब अपने बच्चों के साथ 4 मंजिला इस मकान में रहने को मजबूर है।
दंगे को याद करते हुए शायरा कहती हैं, 'दंगे काफी ज्यादा फैलना शुरू हो चुके थे, शुरु में मुझे लगा कि कुछ छिटपुट लड़ाई हुई होगी लेकिन बाद में जब नारे और लोगों की चिल्लाने की आवाज आने लगी तो मुझे लग गया कि हालात ठीक नहीं है। कुछ समय बाद ही मेरे घर के गेट पर पत्थरबाजी होने लग गई। दंगा करने वालों ने मेरे घर के दरवाजों में तोड़फोड़ करना शुरू कर दिया था। जिसके बाद मैं अपने बच्चों को लेकर घर से बाहर की तरफ भागी। इस दौरान दंगाई मेरे घर में घुस चुके थे।
'फिर उन्होंने मेरे घर पर तोड़फोड़ करना शुरू कर दिया था। लेकिन हम भागकर मुस्तफाबाद की तरफ आए तो चमन भाई ने हम लोगों को रहने के लिए घर में जगह दे दी। दंगाईयों ने हमारे घर में तोड़फोड़ कर बाइकों में भी आग लगा दी थी। मुझे अब पता भी नहीं है कि मैं अपने घर में वापस जा भी पाऊंगी या नहीं। हम लोग काफी ज्यादा दहशत में हैं। दंगो के समय हमने अपने घर को बचाने से ज्यादा अपनी और अपने बच्चों की जान को बचाना समझना ज्यादा जरूरी समझा।'
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शायरा के साथ ही मदीन मस्जिद में रहने वाली तसलीमा भी उनमें से एक है जो दंगों के दौरान अपने घर में थी। भय के माहौल को याद करते हुए तसलीमा बताती हैं कि हमारे इलाके में दंगा और तोड़फोड़ लगातार बढ़ती जा रही थी जिसके बाद हम लोग अपने आप को यहां पर सुरक्षित नहीं रख पा रहे थे। इसके बाद हमारी गली में जितने भी मुस्लिम पीड़ित थे वो अपने घरों से बाहर निकलने लगे थे। जैसे ही हम भागने लगे तो पीछे से गोलियों के चलने की आवाज और 'जय श्री राम' के नारे लगना शुरु हो चुके थे।