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समाज

झारखंड में आधार कार्ड के कारण तीसरी मौत

Janjwar Team
24 Oct 2017 3:36 PM GMT
झारखंड में आधार कार्ड के कारण तीसरी मौत
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बायोमैट्रिक मशीन पर मैच नहीं हो रहा था रूपलाल के अंगूठे का निशान तो 2 महीने से राशन डीलर नहीं दे रहा था राशन, कई दिनों से घर में नहीं जला था चूल्हा

रांची। मोदी जी का मिशन डिजिटल इंडिया गरीबों के लिए अभिशाप बनते जा रहा है। हर चीज को आधार कार्ड से लिंक करना तो जैसे गरीबों—अनपढ़ों के लिए काल बन गया है। मोदी जी के डिजिटल इंडिया के सपने के चलते झारखंड में तीन गरीब लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे।

झारखंड में मात्र कुछ दिनों के अंदर भोजन न मिलने के चलते लगातार तीसरी मौत हो गई है। देवघर के मोहनपुर प्रखंड के भगवानपुर गांव के 62 वर्षीय रूपलाल मरांडी को राशन की दुकान से इसलिए राशन नहीं दिया जा रहा था, क्योंकि बायोमैट्रिक मशीन पर उनके अंगूठे का निशान नहीं मिल पा रहा था।

पिछले दो महीने से राशन की दुकान पर जाने पर हर बार राशन की दुकान वाला बायोमैट्रिक मशीन पर अंगूठे का निशान लगाने को कहता और वह नहीं मिल रहा था तो उसे बिना राशन दिए वापस भेज देता। दो दिन से रूपलाल मरांडी के घर चूल्हा तक नहीं जल पाया था। ज्यादा दिन तक भूख नहीं सहन कर पाने से बुजुर्ग रूपलाल मरांडी की मौत हो गई।

इस मामले में मृतक रूपलाल मरांडी की बेटी मानोदी कहती हैं कि उनके पिता के अंगूठे का निशान बॉयोमेट्रिक मशीन से नहीं मिल रहा था, जिसके चलते पिछले दो महीने से हमारे परिवार को राशन नहीं दिया जा रहा था। सरकारी राशन पर निर्भर परिवार के पास अन्न का एक भी दाना नहीं था। पिछले कुछ दिनों से पड़ोसी कभी—कभार कुछ खाने को दे देते थे।

मानोदी बताती हैं 22 अक्तूबर को घर में किसी ने भोजन नहीं किया था। भूख से मेरे पिता की हालत बिगड़ रही थी तो 23 अक्तूबर को हम अपने पड़ोसी रिटायर्ड शिक्षक नवल किशोर हेंब्रम के घर से चावल मांग कर लाये और माड़-भात खाया, दोबारा भोजन की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई। 23 अक्तूबर को दोपहर तीन बजे ही मेरे पिता की खाट पर मौत हो गयी, जबकि भूख के अलावा उन्हें कोई बीमारी नहीं थी।

एक तरफ जहां लोग भूखों मर रहे हैं, वहीं सरकार की आधार योजना के तमाम नियम कायदों को गिनाकर संबंधित विभाग अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ले रहा है। गौरतलब है कि झारखंड में रूपलाल मरांडी से पहले दो और मौतें भूख के चलते हो चुकी हैं। संबंधित विभाग तो अब इस मामले में बोलने से तक बच रहा है।

झारखंड में सबसे पहले सिमडेगा जिले में 11 साल की संतोषी कुमारी की कई दिनों से खाना नसीब नहीं होने के चलते मौत हुई थी। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि स्थानीय राशन डीलर ने महीनों पहले उसके परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया था और परिवार को अनाज नहीं दे रहा था।

राशन डीलर ने इस मामले में बचाव करते हुए कहा था कि सरकारी नियमों के मुताबिक उन्हीं परिवारों को राशन देने का आदेश दिया गया था जिनके आधार कार्ड राशन कार्ड से लिंक हुए हैं, चूंकि संतोषी के परिवार का राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं था इसलिए उसके परिवार को राशन नहीं दिया जा रहा था।

उसके बाद झारखण्ड के ही धनबाद के झरिया इलाके में एक गरीब रिक्शा चालक की 21 अक्तूबर को भूख से मौत होने का मामला सामने आया था। 40 वर्षीय रिक्शाचालक वैद्यनाथ ने उसकी मौत के मामले में प्रशासनिक व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि वैद्यनाथ पिछले 3 साल से राशन कार्ड बनवाने के लिए इस दफ्तर से उस दफ्तर चक्कर काट रहा था, मगर अब तक उनका राशन कार्ड नहीं बन पाया था। इस साल तो शासन—प्रशासन से आधार कार्ड के पेंच में उलझाकर इस मामले को और जटिल बना दिया है।

झारखंड में भूख से हुई इस तीसरी मौत ने राज्य में भूख से हो रही मौतों के सवाल पर बहस तेज़ कर दी है। रिक्शा चलाकर गुज़ारा करने वाले बैद्यनाथ दास जिनकी भूख से मौत हो गई वे राशन कार्ड बनवाने के लिए तीन साल से सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे थे। उनके परिवार का कहना है कि वो भूख बर्दाश्त नहीं कर पाए, जिससे मौत हो गई।

वैद्यनाथ की पत्नी पार्वती कहती है परिवार में खाने की काफी दिक्कत हो गयी है। हमें राशन मिलना बंद हो गया था। मेरे पति राशन कार्ड बनवाने के लिए पता नहीं किस—किस दफ्तर न गए हों, लेकिन तमाम पेंचों की बात बताकर राशन कार्ड नहीं बन पा रहा था। हमें पिछले 3-4 साल से सस्ता राशन नहीं मिला था।

इस मामले में बैद्यनाथ दास के बेटे रवि कुमार कहते हैं, हमारे परिवार का राशन कार्ड बड़े चाचा के नाम था, जिसे उनकी मौत के बाद निरस्त कर दिया गया। चाचा की मौत के बाद से सात लोगों के परिवार के लिए सस्ता राशन मिलना मुहाल हो गया। घर में खाने के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ नहीं हो पा रहा था।

मगर यहां भी खेल देखिए कि प्रशासन खुद का गला छुड़ाने के लिए 20 हजार की आर्थिक सहायता देकर वैद्यनाथ की मौत को भूख से हुई मौत न मानकर बीमारी से हुई मौत कह रहा है। रूपलाल मरांडी मामले में भी तमाम राजनीतिक बयानबाजियां शुरू हो गई हैं। देर सबेर इसे भी भूख नहीं कुछ और तरीके से हुई मौत ठहरा ही दिया जाएगा। (फोटो प्रतीकात्मक)

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