मोक्ष प्राप्ति के चक्कर में पुलिस वाले ने मंदिर में लगाई फांसी
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बुराड़ी कांड दोहराने की थी तांत्रिक की तैयारी, स्कूल में होने के कारण बच्चों की बच गयी जान
अंधविश्वास और ढोंग—पाखंड को राजनीतिक जश्न की तरह मना रही मोदी सरकार के लिए मानवता की यह हानि वोट जुटाने का यंत्र मात्र हैं, जबकि पारंपरिक अर्थों में भी मोक्ष का आत्महत्या से कोई लेना-देना नहीं है...
बता रहे हैं कवि और लेखक कुमार मुकुल
जनज्वार। दिल्ली के बुराड़ी में मोक्ष प्राप्ति के लिए 11 लागों ने जान दे दी। उन्हें विश्वास था कि फंदे से लटकने के बाद मौत होते ही कोई आकर उन्हें जिला देगा। अब यह अफवाह भी फैलायी जा रही कि उनका पुनर्जन्म हो चुका है। देशभर में तमाम जगहों से ऐसे मामले आते रहते हैं।
ऐसा नया मामला रेवाड़ी हरियाणा के गांव बहरामपुर भड़ंगी का है, जहां के निवासी दिल्ली पुलिस के जवान कर्मवीर ने पिछले महीने 30 जुलाई को गांव के मंदिर में पेड़ पर फंदा लगाकर जान दे दी। हफ्तेभर बाद मृतक की पत्नी शकुंतला ने 8 अगस्त को दिल्ली के तांत्रिक व उसकी पत्नी पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए बावल पुलिस थाने में केस दर्ज कराया है।
शकुंतला ने पुलिस को बताया कि 2009 से उसके पति कर्मवीर तांत्रिक उदय सिंह के चुक्कर में पड़े थे। तब वह पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार थाने में मुस्तैद थे। तांत्रिक उदय ने मेरे पति कर्मवीर को बताया कि तुम्हारे घर में भूत-प्रेत का साया है और वह इसका समाधान कर देगा।
शकुंतला के मुताबिक 30 जुलाई को जब कर्मवीर घर आए तो उन्होंने उसको बताया कि तांत्रिक उदय उन्हें मोक्ष प्राप्ति के लिए कह रहा है और वे मोक्ष प्राप्ति के लिए जा रहे हैं। कर्मवीर ने पत्नी को कहा कि वह बच्चों को ख्याल रखे। उसी दिन कर्मवीर ने मंदिर के पास पेड़ से लटककर फांसी लगा ली।
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कर्मवीर की पत्नी का आरोप है कि तांत्रिक ने बुराड़ी कांड की तरह उसके पूरे परिवार को मरवाने की तैयारी कर ली थी। तांत्रिक ने शकुंतला के पति कर्मवीर को अपनी गद्दी का वारिस बनाने का लालच भी दिया था। तांत्रिक स्कूल में पढ़ रहे बच्चों से भी मिलने गया, लेकिन स्कूल वालों ने मना कर दिया। जाहिर है यह सबकुछ मोक्ष प्राप्ति के चक्कर में ही हुआ।
मोक्ष जहां अधिकांश भारतीयों का बहुत प्रिय शब्द है, वहीं मोक्ष दिलाना तथाकथित बाबाओं का शगल है। मोक्ष की चाहत में लाखों भारतीय किसी न किसी बाबा, साध्वी आदि के चक्कर लगाते फिरते हैं। अब बाबा चाहे बलात्कार की सजा काटने जेल चला जाए पर भक्तगण की मोक्ष की आशा नहीं टूटती, उन्हें लगता है कि उनके बाबा जेल से किसी को भी जब चाहे मोक्ष दिला सकते हैं।
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दरअसल, मोक्ष के साथ बाबा लोग जिस शब्द का सर्वाधिक प्रयोग करते हैं वह है माया। वे समझा देते हैं कि यह जीवन माया है। यह जेल, नौकरी, परिवार, समाज सब माया है। मूल है वह ब्रह्म जो कहीं दूर सात आसमानों के पार है और वहां जाने का रास्ता है और जिसे ये बाबा लोग ही जानते हैं।
मोक्ष, मुक्ति, स्वर्ग, समाधि, जल समाधि, अग्नि समाधि आदि का प्रयोग शास्त्रों में बहुतायत से है। पर परिणाम के रूप में देखा जाए तो सबमें जो प्राप्त होता है, वह है मृत्यु। इन शब्दों के वाग्जाल से यह समझा दिया जाता है कि इस धरती से परे कोई स्वर्ग है जहां जाने के लिए यह मोक्ष आदि की प्रक्रिया पूरी करनी होती है। जीवन है तो सुख दुख लगा ही रहता है।
मगर कुछ लोग दुख से मुक्ति के लिए तथाकथित बाबाओं व तांत्रिकों के चक्कर में पड़ जाते हैं और अपनी जान गंवा देते हैं। जबकि शास्त्रों में कई जगह मोक्ष आदि को एक मानसिक स्थिति, दशा व भाव के रूप में स्पष्ट दर्शाया गया है-
अहंकारादिदेहान्तान्बन्धानाज्ञानकल्पितान्।
स्वस्वरूपावबोधेन मोक्तुमिच्छा मुमुक्षता।।
विवेकचूड़ामणि में कहा गया है कि अंहकार से लेकर देहपर्यन्त जितने अज्ञान-कल्पित बन्धन हैं, उनको अपने स्वरूप के ज्ञान द्वारा त्यागने की इच्छा मुमुक्षता है, 'भोगेच्छामात्रको बन्धस्त यागो मोक्ष उच्यते...'
इसी तरह योगवासिष्ठ में कहा गया है कि भोगेच्छा का परित्याग ही मोक्ष कहलाता है, 'योऽकामो निष्काम आप्तकाम आत्मकामो न तस्य प्राणा उत्क्रामन्ति ब्रह्मेव सन् ब्रह्मप्येति...'
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बृहदारण्यक उपनिषद में तो स्प्ष्ट कहा गया है कि जो कामनाओं से रहित है, जो कामनाओं से बाहर निकल गया है, जिसकी कामनाएं पूरी हो गयी हैं या जिसको केवल आत्मा की कामना है उसके प्राण नहीं निकलते हैं, वह ब्रह्म ही हुआ ब्रह्म को पहुंचता है।
तो मोक्ष का मतलब शास्त्रों में कहीं भी प्राण देने या आत्महत्या के सेंस में नहीं है। मोक्ष भव बंधनों की समझदारी है। यह जानना है कि इस जीव जगत में जो कुछ है, सबमें एक ब्रह्म ही व्याप्त है। उसे पाना या खोना नहीं है। वह है, इसे जानना ही मोक्ष है। यह एक भाव है, दशा है। न कि अपना या अपने बच्चे का या किसी के बच्चे का या पशु का गला रेत डालना मोक्ष या स्वर्ग दिला सकता है।