Begin typing your search above and press return to search.
सिक्योरिटी

प्रधानमंत्री मोदी को पसंद हैं झूठे तथ्य पेश करती खबरें!

Prema Negi
2 Jan 2019 6:19 PM IST
प्रधानमंत्री मोदी को पसंद हैं झूठे तथ्य पेश करती खबरें!
x

केंद्र में बैठी हरेक सरकार गंगा की सफाई के दावे करती है, और इसे पहले से भी अधिक मैली कर जाती है (file photo)

पीएमओ की वेबसाइट पर न्यूज़क्लिपिंग्स में शामिल किया गया है गंगा सफाई को लेकर गलत आंकड़ों वाली भ्रमित करने वाली खबर को और मोदी के मंत्री जयंत सिन्हा समेत अनेक मंत्रियों ने स्वतंत्र तौर पर इसे शेयर किया है अपने ट्विटर हैंडल पर, जबकि रिपोर्ट में जिस एक्सपर्ट के हवाले से दिए गए हैं आंकड़े उनका कहना है मैंने नहीं बताया ऐसा कुछ...

बता रहे हैं वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में ऐलान किया है कि अगले तीन महीनों में गंगा 80 प्रतिशत तक साफ हो जाएगी। उन्होंने ये भी कहा कि साल 2020 के मार्च महीने तक गंगा पूरी तरह साफ हो जाएगी। यह वक्तव्य सुनाने में अच्छा लगता है, सभी समाचार पत्रों में इसे प्रमुखता दी गयी, पर गडकरी जी या कोई भी विभाग कभी यह नहीं बताता कि गंगा सफाई का 100 प्रतिशत लक्ष्य क्या है और 0 प्रतिशत क्या है।

गंगा की हालत देखकर लगता तो नहीं है कि यह साफ़ होने की ओर अग्रसर हो रही है, फिर भी यदि सरकार को लगता है कि यह साफ़ हो रही है तब ऐसे वक्तव्य के साथ जनता यह जरूर जानना चाहेगी कि गंगा सफाई का आखिर लक्ष्य क्या है और किसे सरकार 100 प्रतिशत साफ़ कहती है। अभी तक तो यही महसूस हो रहा है कि मार्च, 2019 में गंगा जल की गुणवत्ता मापकर फिर जनता को उसके अनुसार 100 प्रतिशत का लक्ष्य बताया जाएगा।

21 दिसम्बर को हिन्दुस्तान टाइम्स के लखनऊ संस्करण में गंगा से सम्बंधित एक समाचार प्रकाशित किया गया था। इस पूरे समाचार की हालत यह थी कि इसे यदि किसी छठी कक्षा के बच्चे ने भी लिखा होता तो शायद इसमें मौजूदा गलतियों से कम गलतियाँ करता।

इस समाचार के बारे में जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि इसे प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर न्यूज़क्लिपिंग्स में शामिल किया गया और महान विचारक मंत्री जयंत सिन्हा समेत अनेक मंत्रियों ने स्वतंत्र तौर पर अपने ट्विटर हैंडल से शेयर भी किया है। कुछ समय पहले तक प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर न्यूज़क्लिपिंग्स पर यह अकेला समाचार था, जो पर्यावरण से सम्बंधित था।

अब जरा उस समाचार पर भी नजर डालते हैं। यह समाचार पूरी तरह से कानपुर की गंगा के बारे में था। इस समाचार के अनुसार गंगा में पनपने वाले समुद्री जीवन (मैरीन लाइफ) में बढ़ोत्तरी होगी, क्योंकि पानी की गुणवत्ता सुधर रही है। इसमें अनेक ऐसी जानकारियाँ थीं जिन्हें पढ़कर थोड़ा विज्ञान जानने वाला भी लेखक की बुद्धि पर तरस जरूर खायेगा, और उस समाचार पत्र पर भी आश्चर्य करने को बाध्य होगा जो राष्ट्रीय स्तर का होने के बाद भी ऐसे बुद्धिहीन रिपोर्टर को नौकरी पर रखता है।

किसी भी पदार्थ की अम्लीयता या क्षारीयता मापने के लिए पीएच नामक पैरामीटर होता है। यह 0 से 14 तक का एक पैमाना है, जिसमें 7 का मतलब उदासीन (अम्ल भी नहीं और क्षार भी नहीं), 7 से नीचे का मतलब अम्लीय और 7 से ऊपर का मतलब क्षारीय होता है। पीएच सिर्फ संख्या होती है और इसकी कोई इकाई नहीं होती। नदियों में पीएच यदि 6.5 से 8 के बीच होता है तब इसे अच्छा माना जाता है। जिस समाचार की चर्चा की जा रही है, उसके अनुसार कानपुर में गंगा के पानी का पीएच 8.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है और यह उत्साहवर्धक संकेत है।

इसी तरह पानी में प्रदूषण की जांच के लिए एक पैरामीटर घुलित ऑक्सीजन भी है। सभी जानते हैं कि पानी, धरती या आकाश कहीं भी जीवन पनपने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। पानी में ऑक्सीजन मुश्किल से घुलता है और सामान्यतया इसकी अधिकतम सांद्रता 8 मिलीग्राम प्रति लीटर तक ही पहुँच पाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार पानी में जीवन पनपने के लिए कम से कम 3 मिलीग्राम प्रति लीटर ऑक्सीजन की सांद्रता होनी चाहिए।

इस समाचार के अनुसार पहले गंगा में घुलित ऑक्सीजन का स्तर 3.5 से 4 तक था, पर अब गंगा सफाई के बाद इसका स्तर 2.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुँच गया है। इस समाचार में उत्तर प्रदेश पोल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कुलदीप शर्मा का एक वक्तव्य भी है, जिसे पढ़कर आप समझ जाएंगे कि प्रदूषण नियंत्रण क्यों प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बस की बात नहीं है। उनके अनुसार, '3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम घुलित ऑक्सीजन पानी के लिए एक आदर्श स्थिति है, इससे ऊपर की सांद्रता में भी समुद्री जीवन (मैरीन लाइफ) पनप सकता है पर यह मानव उपयोग के लिए खतरनाक है।'

जाहिर है, यह समाचार केवल सरकार को खुश करने के लिए बनाया गया है और अपने मकसद में समाचारपत्र कामयाब भी रहा। इस समाचार के बारे में कोई वक्तव्य भी नहीं आया, जाहिर है इसमें जिन वैज्ञानिकों के नाम हैं वे सभी लोग इस समाचार से सहमत होंगे। इसमें इस अध्ययन के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर के तौर पर प्रोफ़ेसर प्रवीण भाई शाह का नाम दिया गया है। गूगल पर खोजने से पता चला कि वे कानपुर विश्चविद्यालय के कैमिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफ़ेसर हैं।

उन्होंने फ़ोन पर बताया कि यह समाचार उन्होंने देखा है, पर आंकड़े उनके द्वारा नहीं दिए गए हैं, क्योंकि इस प्रोजेक्ट की शर्त यह है कि जब तक अध्ययन पूरा नहीं होगा वे आंकड़े सार्वजनिक नहीं कर सकते। जब उनसे यह पूछा गया कि गलत आंकड़ों के साथ-साथ इनवर्टेड कोमा के भीतर उनका वक्तव्य प्रकाशित किया गया है, फिर भी उन्होंने संपादक या रिपोर्टर से विरोध प्रकट क्यों नहीं किया, इस पर उनका जवाब था अभी वे कानपुर के बाहर हैं, और जब वापस जायेंगे तब संपादक को विरोध जताते हुए पत्र भेजेंगे।

संभव है, इन लोगों को प्रधानमंत्री की नजर में चढ़ना था, ये काम पूरा हो गया फिर समाचार की गलतियों से क्या मतलब?

Next Story

विविध