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चुनावी पड़ताल 2019

कौन दे रहा है बीजेपी को फेसबुक पर पानी की तरह बहाने के लिए पैसा

Prema Negi
1 April 2019 10:42 AM GMT
कौन दे रहा है बीजेपी को फेसबुक पर पानी की तरह बहाने के लिए पैसा
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फेसबुक पर बीजेपी के प्रचार में पानी की तरह बहाया जा रहा पैसा किसका है, ये बात फेसबुक की ट्रांसपैरेंसी रिपोर्ट भी नहीं बताती

अवनीश पाठक की रिपोर्ट

जनज्वार। फेसबुक और इंस्टाग्राम पर चुनावी विज्ञापनों देने के मामले में फिलहाल बीजेपी समर्थक पेजों की संख्या सबसे ज्यादा है। फेसबुक की ऐड टॉप 10 पेजों की सूची को देखकर ये अनुमान लगाया जा सकता है कि इन चुनावों में बीजेपी चुनावी रैलियों, TV विज्ञापनों और प्रचार के पारंपरिक तरीकों के अलावा फेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी पैसा खर्च करने के मामले में अन्य दलों से कोसों आगे है।

31 मार्च को जारी हुई फेसबुक ऐड लाइब्रेरी की ताजी रिपोर्ट के मुताबिक, 24 से 30 मार्च के बीच यानी बीते हफ्ते सबसे ज्यादा विज्ञापन My First Vote For Modi पेज से दिया गया है। उससे पहले के हफ्ते (17 मार्च से 23 मार्च) में भी इसी पेज से सबसे ज्यादा विज्ञापन दिया गया था।

30 मार्च को खत्म हुई सप्ताह में इस पेज से 39,90,881 रुपए का विज्ञापन दिया गया है। 23 मार्च को खत्म हुए सप्ताह में इस पेज से 50,98,588 रुपए का विज्ञापन दिया गया था। इस हफ्ते फेसबुक और इंस्टाग्राम पर विज्ञापन देने के मामले में दूसरे नंबर पर खुद बीजेपी का ऑफिसियल पेज है।

बीजेपी के पेज से 28,02,091 रुपए का विज्ञापन दिया गया है। पिछले हफ्ते दूसरे नंबर पर प्रशांत किशोर की कंपनी IPCA का पेज है, जो इन दिनों आंध्र प्रदेश में वाईएस जगन मोहन रेड्डी की पार्टी YSR कांग्रेस का चुनाव प्रचार देख रही है। इस हफ्ते तीसरे नंबर पर IPCA का ही एक पेज है, जो YSR के प्रचार के लिए बनाया गया है। पिछले हफ्ते तीसरे नंबर पर बीजेपी के समर्थन में बना एक पेज 'भारत के मन की बात' था।

क्या है फेसबुक ऐड लाइब्रेरी रिपोर्ट

फेसबुक ने चुनावी विज्ञापनों पर हो रहे खर्च की जवाबदेही तय करने के लिए ऐड लाइब्रेरी रिपोर्ट की नई सर्विस शुरू की है। ये सर्विस हमारे देश में 7 फरवरी को लांच हुई थी, उस तारीख़ के बाद से फेसबुक और इंस्टाग्राम पर मौजूद सभी पन्नों पर दिए गए राजनीतिक और राष्ट्रीय महत्व के विज्ञापनों का ब्यौरा इस रिपोर्ट में मौजूद दिया जाता है। फिलहाल ये रिपोर्ट हर हफ्ते अपडेट होती है।

हालांकि फेसबुक का कहना है कि जल्द ही इसे रोजाना अपडेट किया जाएगा। इस रिपोर्ट में विज्ञापनों पर खर्च का डाटा दो कैटेगरी, ऑल टाइम और वीकली, में दिया जाता है। ऑल टाइम रिपोर्ट किसी पेज से दिए गए कुल विज्ञापनों और खर्च का ब्यौरा देती है। साथ ही रिपोर्ट में में विज्ञापन देने वाला व्यक्ति या संस्थान का नाम, फोन नंबर और पता भी होता है। रिपोर्ट पेज के बनने, मर्ज होने जैसी जानकारियों के अलावा ये विज्ञापनों के परफॉर्मेंस, टार्गेटेड ऑडिएंस और टार्गेटेड लोकेशन्स की जानकारी भी देती है।

आपको पता ही होगा कि फेसबुक पर अमेरिकी चुनावों के दिनों में राजनीतिक विज्ञापनों की फाइनेंसिंग और उन्हें देने वालों की पहचान को लेकर अपारदर्शिता बरतने का आरोप लगा था। कई चुनाव विश्लेषकों और रिसर्चर्स ने फेसबुक पर मतदाताओं को प्रभावित करने का आरोप भी लगाया था। राजनीतिक विज्ञापनों के ही एक मामलें में उस पर वाशिंगटन स्टेट में मुकदमा भी चला था, जिसमें कंपनी को 238,000 डॉलर का हर्जाना देना पड़ा था।

उन तमाम दबावों का नतीजा ही है कि फेसबुक ने राजनीतिक विज्ञापनों में पारदर्शिता बरतने के लिए ऐड लाइब्रेरी रिपोर्ट की सेवा शुरू की है, हालांकि ये रिपोर्ट पारदर्शिता के सभी सवालों को अब भी हल नहीं करती। भारत में जिन पन्नों से राजनीतिक विज्ञापन दिया जा रहा है, उनको चलाने वालों के बारे में दी गई जानकारी अधूरी हैं और संदिग्ध भी।

पब्लिशर्स और फंडर्स की अधूरी जानकारियां

फेसबुक के ऑल टाइम डाटा, यानी फरवरी और मार्च- जब से राजनीतिक विज्ञापनों का ब्यौरा रखा जा रहा है, पर गौर करें तो हिंदुस्तान में फेसबुक पर अब तक जिन 5 पेजों से सबसे ज्यादा विज्ञापन दिया गया है, उनमें 4 बीजेपी में समर्थन में बने हैं।

खर्च के मामले में नंबर एक पर बीजेपी के समर्थन में बना पेज 'भारत के मन की बात' है। ऐड लाइब्रेरी रिपोर्ट के मुताबिक 30 मार्च तक इस पेज से 1 करोड़ 15 लाख 62 हज़ार 550 रुपये के विज्ञापन दिए जा चुके हैं। ये वो रक़म है, जो वैध तरीके से खर्च की गई है। फेसबुक की नई शर्तों के मुताबिक अगर आप फेसबुक या इंस्टाग्राम पर विज्ञापन देते हैं तो आपको ये बताना पड़ता है कि विज्ञापन पॉलिटिकल या नेशनल इम्पोर्टेंस का है क्या।

अगर आप सही जानकारी देते हैं तो विज्ञापन का खर्च राजनीतिक विज्ञापनों पर किए गए खर्च की श्रेणी में डाल दिया जाता है। अगर कोई पेज राजनीतिक विज्ञापन होने के बाद भी गलत जानकारी देती है तो फेसबुक की रिव्यू टीम उन विज्ञापनों को डिएक्टिवेट कर देती है और उस 'ran without a disclaimer' कैटेगरी में डाल देती है।

'भारत के मन की बात' पेज से बिना डिस्क्लेमर के 1 करोड़ 8 लाख 31 हजार 546 रुपये के विज्ञापन दिए गए हैं। इस पेज में कई और झोल भी हैं। फेसबुक ने राजनीतिक विज्ञापनों के लिए जो नीति जारी की है, उसके मुताबिक डिस्क्लेमर देने वाले को अपनी या उस संस्थान की पहचान जाहिर करनी होती है, जो विज्ञापन का पैसा दे रहा है, जबकि इस पेज के डिस्क्लेमर देने वाले के नाम की जगह पेज का नाम लिख दिया गया है।

जो मोबाइल नंबर दिया है, उस पर कॉल करें तो नंबर अमान्य बताया जा रहा है और ट्रू कॉलर पर वो Best PM Modiji Bharat ke Mann ki Baat के नाम से मौजूद है। पता बीजेपी के राष्ट्रीय मुख्यालय का है। इस पन्ने की अधूरी जानकारियां इसे संदिग्ध भी बनाती हैं। बीजेपी समर्थक देश रतन निगम से NDTV के एक शो में इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि बीजेपी दफ्तर का पता कोई भी दे सकता है, इसे पार्टी कैसे रोक सकती है।

खर्च के मामले में दूसरे नंबर पर भी बीजेपी के समर्थन में ही बना एक पेज- My First Vote For Namo है, जिस पर 1 करोड़ 5 लाख 99 हजार 837 रुपए का विज्ञापन दिया गया है। इस पेज है जिस पर फर्स्ट टाइम वोटर्स को नरेंद मोदी को वोट देने पर फ्री मर्चेंडाइज देने का वादा भी किया जा रहा है जोकि मतदाताओं को खुले तौर पर लुभाने जैसा मामला है। तीसरे नंबर पर मौजूद पेज- नेशन विथ नमो- से 59 लाख 89 हजार 204 रुपए का विज्ञापन दिया गया है। चौथे नंबर पर IPCA का पेज है और पांचवे पर बीजेपी का ऑफिशियल पेज, जिनसे क्रमशः 41 लाख 98 हजार और 36 लाख 25 हजार रुपए खर्च लिए गए हैं।

फेसबुक की ऑल टाइम टॉप 10 लिस्ट राजनीतिक दलों में बीजेपी के बाद YSR कांग्रेस और बीजेडी शामिल है। उल्लेखनीय है कि फेसबुक पर 30 करोड़ भारतीय मंथली एक्टिव यूज़र्स हैं।

विज्ञापनों पर लगा ये पैसा किसका है?

फेसबुक पर बीजेपी के समर्थन में बने पर जो पैसा खर्च हो रहा है, वो कई सवाल खड़े करता है। चुनाव आयोग ने इस बार सोशल मीडिया के खर्चों को चुनाव प्रचार में जोड़ा है, मगर चुनाव आयोग की रिलीज़ के मुताबिक उम्मीदवारों को अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स का ब्यौरा और उन पर किए गए खर्च का हिसाब देना है।

भारत में मन की बात जैसे पेज, जिनके पब्लिशर्स और फंडर्स की जानकारियां अधूरी हैं, उनका खर्च किसके खाते में डाला जाएगा? सवाल ये भी है कि फेसबुक ऐसी अधूरी जानकारियों वाले पेज को चलने क्यों दे रहा है, जिससे पारदर्शिता की उसकी मुहिम को पलीता लग रहा है?

(लगभग एक दशक से पत्रकारिता कर रहे अवनीश पाठक ने हाल ही में न्यूज 18 से समाचार संपादक के पद से विदा ली है।)

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