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राजनीति

मुख्यमंत्री रघुबर दास अपनी मांगों के लिए आंदोलनरत पारा शिक्षकों को कहते हैं गुंडा

Prema Negi
29 Nov 2018 12:19 PM IST
मुख्यमंत्री रघुबर दास अपनी मांगों के लिए आंदोलनरत पारा शिक्षकों को कहते हैं गुंडा
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दूसरी तरफ मुख्यमंत्री रघुबर दास की पार्टी भाजपा के विधायक बोले पारा शिक्षकों के मामले में थोपा हुआ मुख्यमंत्री नहीं सुनता हमारी बात, इनका सारा घमंड 2019 में उतार देगी जनता....

रांची से विशद कुमार की रिपोर्ट

जनज्वार। पिछले 16 नवंबर से झारखंड के पारा शिक्षक अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। जिससे राज्य के प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में पठन-पाठन पूरी तरह ठप्प हो गया है, बावजूद सरकार इन हड़ताली शिक्षकों की मांग मानने को तैयार नहीं है, जबकि विपक्ष के अलावा सरकार में शामिल आजसू पार्टी सहित सत्तासीन भाजपा के कई जनप्रतिनिधियों की संवेदना पारा शिक्षकों के साथ है।

सरकार में शामिल आजसू पार्टी द्वारा सरकार की कार्रवाई के विरोध को इसी से समझा जा सकता है कि पिछले दिनों पारा शिक्षकों के समर्थन में टुंडी के आजसू विधायक राज किशोर महतो ने धनबाद के रणधीर वर्मा चौक पर धरना भी दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि 'आजसू पार्टी मानती है कि पारा शिक्षकों की मांगें जायज है। रघुवर सरकार ने उनकी मांगों पर गंभीरतापूर्ण विचार करने के बजाय उनके आंदोलन को कुचलने का प्रयास कर रही है। सरकार का निर्णय झारखंड के हित में नहीं है। रघुवर सरकार के कदम झारखंड के हित में नहीं है। आजसू पार्टी इस सरकार में शामिल है, बावजूद सरकार अगर गलत करेगी तो आजसू विरोध करेगी, पार्टी चुप बैठने वाली नहीं है।'

बेरमो के भाजपा विधायक योगेश्वर महतो 'बाटुल' कहते हैं, 'सरकार को पारा शिक्षकों के मामले में अपना स्टैंड स्पष्ट करना चाहिये, तथा विधायक दल की बैठक करके इस मामले पर विधायकों की राय लेकर पारा शिक्षकों की मांगों पर साकारात्मक निर्णय लेना चाहिये।'

दूसरी तरफ जहां पूरा विपक्ष पारा शिक्षकों के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है, वहीं माओवादी पार्टी के प्रवक्ता आजाद ने भी एक बयान जारी कर पारा शिक्षकों के साथ खड़ा रहने के साथ साथ उनके आंदोलन को समर्थन दिया है।

जबकि राज्य के मुख्य मंत्री रघुबर दास ने साफ कहा है कि वे पारा शिक्षकों की गुंडागर्दी नहीं चलने देंगे। वे 19 नवंबर को पलामू पुलिस स्टेडियम में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित पलामू प्रमंडलीय ‘चौपाल’ में बोल रहे थे। जिस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए झाविमो के केन्द्रीय प्रवक्ता योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा है कि 'राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा पारा शिक्षकों को गुंडा कहना कहीं से भी उचित नहीं है। यह अशोभनीय व निंदनीय है। सीएम अगर पारा शिक्षकों को गुंडा बता रहे हैं तो विधानसभा के अंदर अपशब्दों का प्रयोग करने वाले को क्या कहना चाहिए, उन्हें लगे हाथ इसको भी बता ही देना चाहिए। कितनी हास्यास्पद बात है कि जो वास्तव में गुंडागर्दी कर रहे हैं, उसे गुंडा कहने की हिम्मत सरकार में नहीं है, लेकिन राज्य के नौजवान व महिलाएं जो अपने हक-अधिकार को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें गुंडा कहा जा रहा है।'

पारा शिक्षकों के आंदोलन के सवाल पर भाकपा माले के पूर्व विधायक बिनोद सिंह कहते हैं 'भाजपा नीत रघुबर सरकार झारखंड को शिक्षा से महरूम रखना चाहती है। राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों का विलय करके आम गरीब व दलित—आदिवासियों के बच्चों की विद्याालय से दूरी बढ़ाकर उन्हें शिक्षा से दूर करने की कोशिश की जा रही है। वहीं पिछले 16 वर्षों से अनुबंधित पारा शिक्षकों की मांगों को लाठी के बल पर दबाने की कोशिश की जा रही है। सरकार की इन जन विरोधी कदमों के खिलाफ भाकपा माले आंदोलनकारियों के साथ है और इसी कड़ी में हम आगामी 29 नवंबर को गिरीडीह में मार्च करने जा रहें हैं।''

बिनोद सिंह आगे कहते हैं कि 'हमारी मांग है कि जो पारा शिक्षक टेट को क्वालिफाई कर लिया है उन्हें स्थाई नियुक्ति दी जाय और जिन्होंने क्वालिफाई नहीं किया है उन्हें गैर शिक्षक यानी क्लर्क वगैरह में नियुक्त किया जाय।'

गौरतलब है कि 2002 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत ग्राम शिक्षा समिति गठित कर उनकी अनुशंसा के आधार पर पारा शिक्षकों को अनुबंधित किया गया था। लगभग यही प्रक्रिया छत्तीसगढ़ में भी अपनाई गई थी, मगर आठ वर्षों बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी को स्थाई कर दिया था। राज्य के पारा शिक्षकों की भी यही मांग है कि उन्हें छत्तीसगढ़ की तरह स्थाई किया जाय।

जबकि सरकार उनकी सुनने को तैयार नहीं है और हड़ताली पारा शिक्षकों बर्खास्त करने की बात कर रही है। सरकार ने विद्यालय प्रबंध समिति को निर्देश दिया है कि हड़ताली शिक्षकों की जगह नये शिक्षकों को नियुक्त करे, जिसे राज्य के विद्यालय प्रबंध समिति ने मानने से इंकार कर दिया है।

राज्य के पूर्व मंत्री बंधु तिर्की कहते हैं कि '2007—08 में हमारी सरकार द्वारा गिरिनाथ कमिटी का गठन कर तीन राज्यों के पारा शिक्षकों पर रिपोर्ट तैयार कर उसके आधार पर अपने राज्य के पारा शिक्षकों को लेकर एक नीति तैयार की जा रही थी कि हमारी सरकार गिर गई। हमारी मांग है सरकार गिरिनाथ कमिटी का अध्ययन करे और उसे लागू करे।'

पारा शिक्षकों के स्थायीकरण के सवाल पर जब राज्य की शिक्षा मंत्री नीरा यादव से बात की तो उन्होंने तमाम सवालों को यह कहकर टाल दिया कि 'अभी मैं मीटिंग में हूं, बाद में बात करूंगी।' कहना न होगा कि जिस अवधारणा के तहत झारखंड का गठन हुआ वह पूरी तरह गोल है,जो झारखंड की राजनीतिक नीयत पर कई सवाल खड़ा करता है।

पारा शिक्षकों के मामले पर बीजेपी के कुछ विधायक भी सरकार के रवैए से क्षुब्ध हैं। वे यहां तक कह रहे हैं कि झारखंड में थोपा हुआ मुख्यमंत्री है, जो हमारी बात नहीं सुनता है। ये विधायक आगे रोना रोते हैं कि हम भाजपा में मंडल अध्यक्ष तक नहीं बना सकते हैं, वह भी ऊपर से ही थोपा जाता है। रघुवर सरकार सत्ता के नशे में पूरी तरह चूर है। अगर यही हाल रहा तो 2019 में इनका सारा घमंड जनता उतार देगी।

झारखंड राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ ने पारा शिक्षकों पर पुलिस द्वारा किये गये लाठीचार्ज की निंदा करते हुए अमानवीय बताया है। महासंघ के अध्यक्ष शिवाकांत झा व प्रांतीय महासचिव राजाराम सिंह ने लाठीचार्ज को शिक्षकों के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला बताते हुए कहा कि लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे पारा शिक्षकों पर अंधाधुंध लाठी चलायी गयी। इसमें दर्जनों घायल हो गये।

अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत पारा शिक्षक राज्य स्थापना दिवस को जमकर प्रदर्शन किया और राज्य के सभी जिलों से आए पारा शिक्षक मुख्यमंत्री रघुवर दास को काला झंडा दिखाने के लिए कार्यक्रम स्थल के अंदर घुसने का प्रयास किया था। 5000 से ज्यादा की संख्या में जुटे इन पारा शिक्षकों ने काला झंडा लेकर जब कार्यक्रम स्थल पर घुसने का प्रयास किया, सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की तब पुलिस ने पारा शिक्षकों को दौड़ाया उन पर लाठियां बरसाईं। जिसमें कई लोग घायल हुए, जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं।

शिक्षकों के उग्र प्रदर्शन एवं मुख्यमंत्री को प्रदर्शन के दौरान काला झंडा दिखाने के मामले में रांची पुलिस ने 280 पारा शिक्षकों को 16 नवंबर शाम को जेल भेज दिया। इनमें 16 महिला पारा शिक्षिकाएं भी शामिल हैं। पुलिस ने पारा शिक्षकों पर आठ धाराएं लगायी हैं। उनपर धारा 144, 341, 342, 323, 307, 353, 337 और 338 लगा है। पारा शिक्षकों को होटवार स्थित बिरसा करावास भेजा गया।

17 नवंबर को प्रदेश के हर जिले में पारा टीचर्स ने बैठक की और रणनीति बनाई। कहा गया कि 20 नवंबर से जेल भरो आंदोलन शुरू होगा। इससे पहले राजधानी में सभी पारा टीचर जुटेंगे और प्रदर्शन करेंगे। 'झारखंड एकीकृत पारा शिक्षक संघ मोर्चा' के बजरंग प्रसाद ने बताया कि सरकार द्वारा जो कार्रवाई की गई है, वह सरासर गलत है। पारा शिक्षक स्थापना दिवस समारोह में शिरकत करने के लिए मोरहाबादी पहुंचे थे, लेकिन उन्हें नक्सलियों की तरह गिरफ्तार किया गया। यह पूरी तरह से अमानवीय घटना थी।

पारा शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने जो विज्ञापन जारी किया है, उससे यह संकेत मिलता है कि सरकार बाहरी लोगों को पारा टीचर बनाना चाहती है। सरकार द्वारा जारी विज्ञापन पूरी तरह से पारा शिक्षकों के लिये नकारात्मक है। इस आदेश को सरकार वापस ले। पारा शिक्षकों को अगर सम्मानपूर्वक शर्तों के साथ बुलाया जाता है, तभी स्कूल में योगदान देंगे, नहीं तो जोरदार आंदोलन होगा।

पारा शिक्षकों की सरकार से मांग है कि उन्हें छत्तीसगढ़ के तर्ज पर स्थायी कर दिया जाए और टेट पास पारा शिक्षकों को सीधी नियुक्ति प्रकिया में आरक्षण का लाभ मिले। इसके अलावा प्रखंडवार पारा शिक्षकों को योगदान का लाभ मिले तथा सरकारी स्कूलों में नियोजन के तहत 50 फीसदी उनके लिए सुरक्षित किया जाए। पारा शिक्षकों के लिये कल्याण कोष का गठन कर टेट पास पारा शिक्षकों की डिग्री की वैधता दो साल बढ़ाई जाये।

फिलहाल झारखंड के करीब 70 हजार पारा शिक्षक हड़ताल पर हैं। मगर रघुबर सरकार उनकी मांगें मानने को कतई तैयार नहीं है, बल्कि सरकार द्वारा हड़ताली पारा शिक्षकों को 20 नवंबर तक अपने काम पर लौट आने का अल्टीमेटम दिया गया था, जो 20 नवंबर को समाप्त तो हुआ ही, वहीं हड़ताली पारा शिक्षकों द्वारा 20 को ही जेल भरो अभियान के तहत पूरे राज्य के थानों में गिरफ्तारियां दी गई।

25 नवंबर से पारा शिक्षकों ने राज्य के भाजपा के सांसदों विधायकों के आवास पर अनिश्चितकालीन घेरा डालो, डेरा डालो धरना कार्यक्रम शुरू किया है। इनके आंदोलन की बुलंदी का आलम यह है कि रात की कड़कड़ाती ठंड या दिन का शीतलहर पारा शिक्षकों के इरादों को डिगा नहीं पा रही है।

घेरा डालो, डेरा डालो धरना कार्यक्रम के तहत राज्य के कई भाजपा के सांसदों विधायकों के आवास सहित केंद्रीय राज्य मंत्री सह हजारीबाग के सांसद जयंत सिन्हा के आवास ऋषभ वाटिका के समक्ष सैंकड़ों की संख्या में पारा शिक्षक दिन-रात जमे हुए हैं। उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, तब तक सांसदों और विधायकों के आवास के समक्ष धरना देते रहेंगे।

पारा शिक्षकों का कहना है कि मंत्री व विधायक अपने लिए स्वयं वेतन एवं भत्ता बढ़ाते हैं। इसमें उन्हें वित्तीय बोझ नहीं लगता है और जब पारा शिक्षक समेत अन्य अनुबंध कर्मी समान काम समान वेतन की मांग करते हैं, तो उन्हें वित्तीय बोझ लगने लगता है। लोकतंत्र में यह कैसा न्याय है? जनता अब समझ रही है। ऐसी सरकार को जनता माफ नहीं करेगी। जनता गद्दी पर बैठाना जानती है, तो गद्दी से उतारना भी जानती है। पारा शिक्षकों ने यह भी कहा कि एक हाथ से समान काम के बदले समान वेतन दो, दूसरे हाथ से वोट लो।

झारखंड के गांव-देहातों एवं शहरों में बच्चों को शिक्षा देनेवाले पारा शिक्षक झारखंड के मूल निवासी हैं। अगर हम पारा शिक्षकों को समान काम-समान वेतन और स्थाई नियुक्ति सरकार करती है, तो झारखंड निर्माण के लिए संघर्ष करनेवाले नेता बिरसा मुंडा, चांद-भैरव, निर्मल महतो समेत अन्य शहीदों के सपने साकार होंगे। लेकिन बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठने वाले अधिकारी और सरकार शायद इस सपने को पूरा होते देखना नहीं चाहते हैं। क्योंकि जिस तरह से टेन प्लस टू हाई स्कूल में 75% बाहरी लोगों को नियुक्ति की गई है, उससे लगता है कि झारखंड सरकार के पदाधिकारी झारखण्डियों के हितैषी नहीं हैं।

गौरतलब है कि राज्य शिक्षा परियोजना ने पारा शिक्षकों की हड़ताल से निबटने की तैयारी शुरू कर दी है। राज्य शिक्षा परियोजना के अनुसार शिक्षक पात्रता परीक्षा सफल अभ्यर्थी, 65 वर्ष से कम उम्र के सेवानिवृत्त शिक्षक के अलावा शिक्षक प्रशिक्षण व प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे अभ्यर्थी भी स्कूल में लगाये जायेंगे। राज्य शिक्षा परियोजना कार्यालय ने हड़ताली पारा शिक्षकों की जगह अभ्यर्थियों की नियुक्ति के लिए लिस्ट तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। प्रथम चरण में सभी जिलों में शिक्षक प्रशिक्षण व प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे अभ्यर्थियों का नाम जिलों को भेजा गया है।

राज्य में लगभग 67 हजार पारा शिक्षक कार्यरत हैं। जिलों द्वारा पूर्व में भेजी गयी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 50 हजार पारा शिक्षक विद्यालय नहीं आ रहे हैं।

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