रामालय न्यास ने पेश किया अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण के लिए दावा
अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि रामालय न्यास के सचिव स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने किया दावा कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आधार पर उनके पास हासिल हैं मंदिर निर्माण के पर्याप्त आधार...
जेपी सिंह की टिप्पणी
अयोध्या भूमि विवाद में रामलला के पक्ष में उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद सबसे पहले जोतिर्मठ और शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के रामालय न्यास ने राम मंदिर बनाने का दावा पेश किया है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने दावा किया है कि 1994 में अयोध्या की श्रीरामजन्मभूमि में भव्य-दिव्य और शास्त्रोक्त श्रीराममन्दिर बनवाने के उद्देश्य से देश के मूर्धन्य धर्माचार्यों की सदस्यता में अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि रामालय न्यास का गठन किया गया था। न्यास आज भी जीवित है और मन्दिर निर्माण के लिये प्रतिबद्ध है। श्रीराममन्दिर निर्माण के लिए भूमि और योजना को ट्रस्ट को दिए जाने के संबंध में न्यास सरकार से आग्रह करेगा।
अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि रामालय न्यास के सचिव स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आधार पर उनके पास मंदिर निर्माण के पर्याप्त आधार हासिल हैं। केंद्र सरकार अधिगृहीत भूमि किसी ऐसे निकाय या ट्रस्ट को दे सकती है जो उसकी शर्तों को मानने के लिए तैयार हों।
अयोध्या एक्ट 1993 की धारा छह के तहत ऐसी व्यवस्था दी गयी है। फैसले से स्पष्ट हो गया है कि भूमि एक्ट की धारा छह व सात के तहत गठित किसी ट्रस्ट को दी जा सकती है। ऐसे में धारा छह के प्रावधानों के अनुरूप शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की अध्यक्षता में बनाए गए रामालय ट्रस्ट को निर्माण का काम मिलना चाहिए। यह ट्रस्ट सरकार की सभी उचित शर्तों को मानने का इच्छुक है।
उच्चतम न्यायालय में अपने फैसले के पैराग्राफ 802 में कहा है कि एक्वीजीशन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट 1993 की धारा 6 केन्द्रीय सरकार को अधिगृहीत भूमि को किसी ऐसे अथोरिटी बाडी निकाय या ट्रस्ट को देने के लिए प्राधिकृत करती है जो कि सरकार द्वारा आरोपित शर्तों को मानने का इच्छुक हो।
फैसले के पैराग्राफ 803 में सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को यह आदेश दिया है कि उक्त अधिनियम की धाराओं 6 व 7 के द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए सरकार कोई ट्रस्ट स्थापित करे अथवा कोई अन्य समुचित कार्यनिधि स्थापित करे जिसको कि वाद संख्या 5 में डिक्रीड न्यायादेशित भूमि दी जा सके ।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द का कहना है कि उच्चतम न्यायालय के उपर्युक्त दो पैराग्राफों से स्पष्ट है कि न्यायादेशित भूमि न तो श्रीरामजन्मभूमि वाद सं 5 के वादी सं 3 देवमित्र को दी गयी है और न ही श्रीरामजन्मभूमि न्यास को दी गयी है। बाकी सम्पूर्ण भूमि भगवान् श्रीराम के हित में मन्दिर निर्माण हेतु उक्त 1993 के अधिनियम की धारा 6 और 7 के अनुसार स्थापित किये जाने वाले ट्रस्ट को देने का आदेश दिया गया है।
इस अधिनियम की धारा 6 में यह कहा गया है कि उस 1993 के अधिनियम के पारित किये जाने के बाद बनाये गये ऐसे किसी प्राधिकारी या अन्य निकाय या किसी ट्रस्ट के ट्रस्टियों को अधिगृहीत भूमि दी जाएगी, जो सरकार के नियमों और शर्तों का पालन करने के इच्छुक हों। धारा 7 के अनुसार अधिगृहीत भूमि सम्पत्ति का प्रबन्धन वही प्राधिकारी, निकाय अथवा ट्रस्ट करेगी जिसे भूमि दी जाएगी।
निर्णय के पैराग्राफ 805 - 2 में वाद सं 5 की प्रार्थना अ और ब के अनुसार न्यायादेश पारित किया है। वाद की प्राथना अ में यह उद्घोषणा मांगी गयी है कि संलग्न 1, 2 और 3 में सीमांकित भूमि देवताओं की है। वाद की प्रार्थना ब में प्रतिवादियों को निरन्तर निषेधाज्ञा द्वारा रामजन्मभूमि पर मन्दिर बनाने में बाधा देने से रोक देने का अनुतोश माॅंगा गया है। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट है कि भूमि किसी रामजन्मभूमि न्यास को देने का न तो अनुतोश मांगा गया था और न ही दिया गया है।
निर्णय के पैराग्राफ 805 - 2 - 1 में तीन महीने के भीतर अधिनियम की धारा 6 व 7 के प्रावधानों के अनुरूप ट्रस्ट, प्राधिकरण या निकाय हेतु योजना बनाकर उसे भूमि हस्तान्तरित करने को कहा गया है। उक्त पैराग्राफ 805 की कण्डिका 2 में ऐसे किसी ट्रस्ट, प्राधिकरण या निकाय को भूमि को देने को कहा है जो धारा 6 व 7 के अनुरूप बनाया गया हो। वहीं कण्डिका 3 में कहा गया है कि विवादास्पद भूमि का कब्जा केन्द्र सरकार के रिसीवर के अधीन तब तक बना रहेगा जब तक कि 1993 की अधिनियम की धारा 6 के प्रावधानों के अनुरूप यह किसी ट्रस्ट या अन्य निकाय को नहीं दी जाती।
पैराग्राफ 806 में कहा गया है कि सभी अपीलों का निस्तारण पैरा 805 में दिये गये न्यायादेश के अन्तर्गत किया जाता है। इससे स्पष्ट है कि अखिल भारतीय श्रीरामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति अपील संख्या 6569 वर्ष 2011 भी उक्त आदेश के अन्तर्गत मान्य की गयी है। अब जबकि निर्णय हो चुका है कि धारा 6 व 7 के अन्तर्गत बनाये गये किसी ट्रस्ट को भूमि दी जाए और उक्त अधिनियम की धारा 6 के प्रावधानों के अनुरूप शंकराचार्य जी की अध्यक्षता में बनाये गये रामालय ट्रस्ट का अस्तित्व वर्तमान है जो कि सरकार के द्वारा उचित शर्तों और नियमों का पालन करने का इच्छुक है। तब निश्चित रूप से भूमि इसी न्यास को दी जानी चाहिए।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता समिति बनायी थी, जिसका उल्लेख निर्णय के पैराग्राफ 32 में किया गया है, उसमें यह भी कहा गया है कि वक्फ बोर्ड और कुछ पक्षकारों ने एक सेटेलमेण्ट हस्ताक्षरित किया गया था, जो कि 16 अक्टूबर को कोर्ट के सामने रखा गया। उक्त पैराग्राफ की अन्तिम तीन पंक्तियों में उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थों एवं समझौता हेतु कार्य करने वाले पक्षकारों जिसमें अखिल भारतीय श्रीरामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति भी थी की, बड़े चाव से आग्रह के साथ प्रशंसा भी की है।
ऐसे में जबकि उक्त समिति और श्री रामालय ट्रस्ट के प्रधान एक ही न्यासी अर्थात् जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारका शारदापीठ व ज्योतिष्पीठ के स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज हैं, न्यायादेशित भूमि मन्दिर निर्माण के लिए रामालय ट्रस्ट को दी जानी चाहिए।
निर्णय के एडेण्ड्रम के पैराग्राफ 1 से 140 में समिति के विद्वान् अधिवक्ता पी एन मिश्र के तर्कों के आधार पर विवादास्पद स्थल को श्रीरामजन्मभूमि माना गया है । स्वामी स्वरूपानन्द के अधिवक्ता के तर्कों को निर्णय के पैराग्राफ 54 से 77 में भी विस्तार से स्थान दिया गया है। एडेण्डम में रामजन्मभूमि के स्थल निश्चय के लिये दिये गये प्रमाणों का विस्तार से उल्लेख किया गया है और निर्णय में अनेक स्थानों पर उल्लेख भी किया गया है।
श्रीरामालय न्यास में देश के पच्चीस मूर्धन्य धर्माचार्य हैं, जो समग्र सनातनी हिन्दू समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्रीरामालय न्यास का दावा है कि वह आदर्श राम नहीं आराध्य राम का मंदिर बनायेगा, जो भव्य-दिव्य-विशाल, अद्वितीय और शास्त्रोक्त होगा।
उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के आलोक में श्रीरामालय न्यास श्रीराममन्दिर निर्माण के लिये भूमि और योजना ट्रस्ट को देने के संबंध में सरकार को आग्रह पत्र भेजने जा रहा है।