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शिक्षा

कितना फर्क पड़ेगा रेयान हत्याकांड की सीबीआई जांच से

Janjwar Team
13 Sep 2017 9:16 AM GMT
कितना फर्क पड़ेगा रेयान हत्याकांड की सीबीआई जांच से
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रेयान इंटरेनेशनल स्कूल की जांच सरकार ने सीबीआई को सौंपी, आज होनी है इस मामले में चार्जशीट दाखिल, पर नहीं है किसी को भरोसा पुलिस जांच की इस थ्योरी पर कि स्कूल कंडक्टर अशोक कुमार ही है दूसरी के कक्षा के छात्र प्रद्यम्न का असल हत्यारा। माता—पिता को भी पुलिस जांच पर संदेह, इसलिए भविष्य में किसी भी फजीहत से बचने के लिए खट्टर सरकार ने सीबीआई को सौंपी जांच, ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि कहीं यह हत्याकांड भी आरुषि हत्याकांड की तरह जांचों के भंवर में उलझकर न रह जाए

वीएन राय, पूर्व आईपीएस

हरियाणा की खट्टर सरकार तीन महीने के लिए रेयान स्कूल को अपने अधीन लेने और छात्र हत्याकांड की जांच सीबीआई को देने जा रही है. अभिभावकों में विश्वास पैदा करने की दिशा में एक रस्मी कवायद ! लेकिन बड़ा सवाल बनता है स्कूली सुरक्षा का. स्वयं सरकार के अपने स्कूलों में रेयान कांड होते रहे हैं. यहाँ तक कि कई बार लड़कियों के स्कूल के रास्तों में होने वाली बदमाशियों के डर से घर बैठ जाने के प्रकरण भी सार्वजनिक हुए हैं.

गुरुग्राम के इलीट रेयान स्कूल में सात वर्षीय मासूम छात्र के अमानवीय सन्दर्भ में,स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर तेज पकड़ते मीडिया ज्वार से, तमाम तरह की आशंकाएं और उपाय सामने आये हैं. इसी के समानांतर, दिल्ली और फरीदाबाद के सामान्य सरकारी स्कूलों में यौन दरिंदगी का शिकार हुए दो अन्य बच्चों के भी दुखद प्रकरण हमारे असुरक्षा बोध को और गहरा कर गये.

यूँ तो, आंकड़ों के अनुसार और सामान्य बुद्धि के लिहाज से भी, एक बच्चे को स्कूल के सामुदायिक जीवन में घर के परिवेश की निजता के मुकाबले कहीं अधिक सुरक्षित होना चाहिए. स्कूल में हम उम्रों का साथ और हर समय किसी न किसी प्रशिक्षित निगरानी में बने रहने जैसी सुविधा हर बच्चे को अपनेघर पर नहीं मिल पाती. इस समीकरण में चूक से ही स्कूल में बच्चा अनहोनी का शिकार बनता है.

स्कूलों के शिक्षक और प्रशासक, स्वाभाविक है, शिक्षा विशेषज्ञ होते हैं,सुरक्षा विशेषज्ञ नहीं.उनसे यह उम्मीद करनी भी नहीं चाहिए. दूसरी तरफ,स्कूलों में लेखाकार अवश्य मिलेंगे और स्कूलके आय-व्यय की नियमित वित्तीय ऑडिट की व्यवस्था भी होगी. इसके बरक्स शायद ही कोई स्कूल, सरकारी स्कूल तो बिलकुल भी नहीं, सुरक्षा विशेषज्ञ की सेवाएं लेते होंगे. नियमित रूप से सुरक्षा ऑडिट कराने का तो सवाल ही नहीं उठता.
वर्तमान घटना क्रम में झांकते के लिए इन पक्षों पर ध्यान दीजिये-

वर्तमान घटनाक्रम से झांकते इन पक्षों पर ध्यान दीजिये-

1— स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर प्रशासनिक परिपत्र ही नहीं भरे पड़े हैं, पॉस्को जैसे क़ानून ही उपलब्ध नहीं हैं, बल्कि न्यायिक समीक्षा उपरान्त जारी अदालती निर्देशों की भी कमी नहीं है। एक शतुरमुर्ग की तरह इन सब की पालना का दायित्व महज शिक्षकों या स्कूल प्रबंधन पर छोड़ने से बच्चों का हित नहीं सध पाएगा।

2— रेयान मामले में यौन हत्यारे के अलावा स्कूल प्रिंसिपल और प्रबंधकों को गिरफ्तार करने का यत्न किया गया, सीबीआई जांच की मांग हुयी, केंद्र सरकार समीक्षा और सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई कर रहा है। क्यों? क्योंकि सारा मीडिया टूट कर पड़ा है, क्योंकि रेयान एक इलीट स्कूल है।

3— इस हिसाब से चलें तो फरीदाबाद और दिल्ली के सरकारी स्कूलों के मामलों में भी हरियाणा और दिल्ली के शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव और सम्बंधित शिक्षा निर्देशक गिरफ्तार किये जाने चाहिए थे। लेकिन मीडिया भी खामोश है, सर्वोच्च न्यायालय भी।

4— रेयान स्कूल गेट से पचास मीटर पर शराब का ठेका था, जो नियम विरुद्ध है। स्कूल में वारदात के बाद उत्तेजित अभिभावकों ने अराजकता के इस केंद्र को नष्ट कर दिया। क्या स्कूल का वातावरण असुरक्षित करने में प्रबंधकों जैसा ही दायित्व आबकारी मंत्री/सचिव/कमिश्नर का भी नहीं बनता?

5— राज्य में कितने ही स्कूल हैं जिनके निकट इसी तरह सरकारी मिलीभगत से नियम विरुद्ध शराब के ठेके चल रहे हैं। मंत्रियों और विधायकों का इन ठेकों में हिस्सा होता है और आबकारी व पुलिस विभाग को रिश्वत पहुँचती है। शराब ठेके के गिर्द माहौल बच्चों की सुरक्षा के अनुकूल नहीं हो सकता।

6— रेयान मामले में पाया गया कि आरोपी स्कूल कंडक्टर का पुलिस सत्यापन नहीं हुआ था और सीसीटीवी कैमरे ठीक से काम नहीं कर रहे थे। लिहाजा, घटना के बाद नए सिरे से जारी सरकारी दिशा निर्देश में इन्हीं दो बातों पर जोर दिया गया है। ये कदम जरूरी तो हैं लेकिन अपने आप में सुरक्षा की गारंटी नहीं। दरअसल, हर स्कूल को अपनी-अपनी परिस्थिति के मुताबिक सुरक्षा प्रोटोकॉल बनाने और लागू करने होंगे।

7— सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई का मतलब है कि इसकी परिणति के साथ व्यापक अदालती निर्देशों का एक और पुलिंदा स्कूलों को लागू करने को मिलेगा। जरूरी है कि स्कूलों में सुरक्षा विशेषज्ञ नियुक्त हों और वहां सुरक्षा ऑडिट करने की नियमित व्यवस्था हो।

8— बच्चों के यौन शोषण को लेकर समाज में जागरूकता लाने के उद्देश्य से नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी ने एक भारत यात्रा शुरू की है। मौजूदा सन्दर्भ में ऐसी कवायदें सांकेतिक महत्त्व की ही हो सकती हैं। सही अर्थों में स्कूली सुरक्षा में योगदान के लिए स्कूलों के सुरक्षा तंत्र का खर्च सरकार द्वारा उठाने का दबाव बनाया जाना चाहिए।

9— ध्यान रहे, चरित्र सत्यापन, सीसीटीवी, गार्ड, सरकारी समीक्षा, प्रशासनिक परिपत्र, प्रबंधन का दंडात्मक उत्तरदायित्व, अदालती दिशा निर्देश, सीबीआई आदि अपने आप में बच्चों की सुरक्षा की गारंटी नहीं होते। इन्हें एक मानक सुरक्षा प्रोटोकॉल के अंतर्गत लाना होता है।

10— स्कूल में सुरक्षा प्रोटोकॉल की नियमित निगरानी का जिम्मा सर्वाधिक प्रभावित हित धारक को दिया जाना चाहिये। यानी अभिभावक समूह को। इससे समूची कवायद को खाना पूर्ति के गढ़े में गिरने से बचाया जा सकेगा। वार्षिक या अर्धवार्षिक सुरक्षा ऑडिट, पेशेवर सुरक्षा विशेषज्ञों से कराया जाना चाहिए।

स्कूलों में बच्चों की शत प्रतिशत सुरक्षा की गारंटी एक मनोवैज्ञानिक आश्वासन या एक राजनीतिक नारा हो सकता है।सामाजिक यथार्थ का तकाजा होगा कि हम स्कूलों में और उनके इर्द-गिर्द अपने बच्चों को सुरक्षित वातावरण की गारंटी देने का यत्न करें।

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