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समाज

संघ और भाजपा समर्थकों को बलात्कारी से नफरत नहीं, उन्हें नफरत है बलात्कारी के धर्म से

Prema Negi
30 Jun 2018 10:09 AM IST
संघ और भाजपा समर्थकों को बलात्कारी से नफरत नहीं, उन्हें नफरत है बलात्कारी के धर्म से
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उनके तर्कों और आक्षेपों को सुन आप हतप्रभ हो जाते हैं। आपको खुद पर एकबारगी संदेह होने लगता है कि कहीं सच में तो हम ऐसे नहीं हैं? क्योंकि आप एक सामान्य संवेदनशील इंसान हैं

राग दरबारी

बलात्कारी या महिलाओं पर हिंसा करने वाला अपराधी अगर मुसलमान, यहूदी, क्रिश्चियन या सिख हुआ तो भाजपा—संघ समर्थक हिंदूवादी कट्टरपंथी उछल—उछल कर अपराध का विरोध करने वालों से पूछते हैं — अरे अब आप नहीं बोल रहे, प्रदर्शन नहीं हो रहे, जुलूस नहीं निकल रहा, कोई मार्च क्यों नहीं हो रहा, स्टेटस नहीं लिख रहे, अखबारों—टीवी में मोमबत्ती वाली खबरें क्यों नहीं आ रहीं, आप इस मसले पर सार्वजनिक बहस क्यों नहीं कर रहे!

उनके तर्कों और आक्षेपों को सुन आप हतप्रभ हो जाते हैं। आपको खुद पर एकबारगी संदेह होने लगता है कि कहीं सच में तो हम ऐसे नहीं हैं? क्योंकि आप एक सामान्य संवेदनशील इंसान हैं, जो सामान्य तौर पर किसी भी अपराध के खिलाफ खड़ा होता है, बोलता, लड़ता और समाज को जागरूक करता है?

देखिए भाजपा प्रेमी गायिका मालिनी ​अवस्थी कैसे सोचती हैं



पर संघियों और भाजपाइयों की तोहमतें और बनावटी कठघरे आपको तिलमिला देते हैं। आपको पहली बार अहसास होता है कि बलात्कारी का पहले धर्म देखा जाता है, फिर अपराध। आपकी चेतना में पहली बार ये बात घु​साई जाती है कि अपराध से पहले बलात्कारी का धर्म देखो! उनका पूरा फोकस अपराधी के धर्म पर होता है, अपराध पर नहीं। वह अदालतों और पुलिस से बहुत पहले धर्म के आधार पर अपराधी का गुनाह तय करते और बरी करते हैं।

और कई बार हममें से बहुत लोग ​इन हिंसक, अमानवीय और महिला विरोधी लोगों के प्रभाव में भी आ जाते हैं? लेकिन प्रभाव में आने वालों को आप देखेंगे तो पाएंगे कि जो लोग सांप्रदायिक हैं, वही लोग आमतौर पर महिला विरोधी हैं, खासकर उन्हें महिलाओं के रोजगार, आजादी और निर्णय लेने के ​अधिकार से चिढ़ है। वह ज्यादातर बार महिलाओं पर बढ़े अपराध के लिए स्त्री आजादी, बराबरी और उनके सम्मान को ही कोसते और जिम्मेदार ठहराते हैं।

पर सच क्या है, जरा खंगालिए, तलाशिए और खोजिए ? गूगल पर जाइए, अखबार देखिए, क्लिप्स ​ढुंढिए? क्या किसी हिंदू बच्ची या महिला पर हिंसा हुआ है तो सामान्य नागरिकों ने, चाहे वह जिस जाति—धर्म के हों, उन्होंने पीड़िता के लिए विरोध और न्याय के पक्ष में खड़े होने में कोई कोताही की है? क्या महिला अपराध का मूल कारण महिलाओं की आजादी, उनका आत्मनिर्णय का बढ़ता दायरा और समाज में अनवरत सम्मान हासिल करते जाना है?

आपको जवाब नहीं में मिलेगा, क्यों​कि देश का हर आम नागरिक हर अपराध के​ खिलाफ है, हमारी सामान्य चेतना संवेदनशील है और हम दिल से चाहते हैं कि समाज से हर तरह की हिंसा खत्म हो, समाज में सबके लिए बराबरी और ​सम्मान हो। रही बात हिंदू होने की तो, चूंकि हिंदू आबादी मुल्क की 80 फीसदी है, इसलिए किसी भी दूसरे धर्म की महिलाओं—बच्चियों पर होने वाली हिंसा से ज्यादा ताकत और व्यापकता के साथ विरोध होना स्वाभाविक है। और जो होता भी है। अगर नहीं होता तो ये कि कोई बलात्कारी के पक्ष में प्रदर्शन नहीं होता, जैसा कि भाजपाई और संघी करते हैं।

सोचिए वो कौन लोग हैं जो बलात्कारी का धर्म खोजते हैं। विरोध करने वालो को चिढ़ाते हैं, बलात्कारी की मानसिक विकृति देखने से पहले उसका लिंग देखते हैं और उसी आधार पर अपने भीतर विरोध और न्याय के पक्ष में खड़े होने की हूक जगाते हैं। और वे चाहते हैं कि हम सब भी उनकी तरह औरतों पर होने वाली हिंसा की बातों को भूल जाएं, लड़ाई में इसको मूल मसला न बनाएं बल्कि औरतों पर होने वाले अपराध को हम धर्म पर होने वाला हमला मानें।

है कोई इस पागलपन का जवाब? पर वह यही चाहते हैं? संघ और भाजपा समर्थक उन सांप्रदायिक एलिएंस की साफ समझदारी है कि देश में होने वाले हर अपराध को हिंदू—मुसलमान में बदल दो, हर हिंसा को हिंदू—मुसलमान के नाम पर जायज ठहरा दो और जब इससे भी बात न बनें तो समाज के हर तबके को खंड—खंड में बांट दो, फिर वह हिंदू ही क्यों न हो, औरत—मर्द ही क्यों न हो, बच्चा—बूढ़ा ही क्यों न हो, किसान—जवान क्यों न हो।

क्योंकि बंटवारा और नफरत ही कट्टरपंथियों की बुनियाद है। वह जनता की एकता से खौफ खाते हैं। उनके हिसाब से देश में धार्मिक वर्चस्व हर समस्या समाधान है, हर कष्ट दूर करने का आखिरी ईलाज है।

वह दोस्ती, लगाव और रिश्ते भी इसी आधार पर बनाते हैं। वह चाहते हैं कि आप भी उनकी तरह गलीज, नीच और पागल हो जाएं। वह चाहते हैं कि उनके गढ़े सांप्रदायिक रास्तों के आप राहगीर बनें, उनकी नफरत वाली सियासत के सिपाही बनें और भक्ती भाव से भक्तों की ​पंक्तियों को समृद्ध करें, जहां महिलाओं की बराबरी और सम्मान की कोई जगह न हो, वहां सिर्फ धार्मिक बंटवारे की ​बिसात बिछती हो, जिसका काम सिर्फ और सिर्फ ​फासिस्टों को बारंबार सत्ता तक पहुंचाना हो।

पर जब ऐसा करने से आप इनकार करते हैं तो वह आप पर ​भी हमला करते हैं? आपकी राजनीतिक समझदारी, संवेनशीलता, पक्षधरता और नागरिक बोध को ही वह नेस्तनाबूद करने की चौतरफा कोशिश में लग जाते हैं। अगर आप हिंदू छोड़ किसी और धर्म के हैं फिर तो वह आसानी निपट लेते हैं। पर आप हिंदू भी हैं तो और इंसानियत के पक्ष में हैं तो वह आपको अनेकानेक तरीके से जलील और ट्रोल करते हैं, झूठा व धर्म विरोधी बता अतार्किक बातों में उलझाने की कोशिश करते हैं।

लेकिन यह अब यह आप पर है कि देश को आप एक अच्छा और संस्कृति संपन्न राष्ट्र बनाना चाहते हैं या फिर नफरती चिंटुओं के सपने का भारत? आप जैसा करें यह आप पर है, लेकिन याद रखें नफरती चिंटू अगर बहुलतावादी भारत की मजबूत ईटें सरकाने में सफल हुए तो तबाही का मंजर इतना खौफनाक होगा कि भारत को वापस इंसानी समाज बनाने में कई पीढ़ियां खप जाएंगी।

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