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राजनीति

कोर्ट ने कहा अयोध्या विवाद आस्था नहीं जमीन का केस, धर्मग्रंथ न सुनाएं सबूत दें

Prema Negi
22 Aug 2019 11:58 AM IST
कोर्ट ने कहा अयोध्या विवाद आस्था नहीं जमीन का केस, धर्मग्रंथ न सुनाएं सबूत दें
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चीफ जस्टिस ने रामजन्म स्थान पुनरुद्धार समिति से कहा कि मानचित्र में यह साफ करिए कि मूर्तियां कहां हैं? हिंदू ग्रंथों में आस्था का आधार विवादित नहीं है, मंदिर के लिए दस्तावेजी सबूत पेश करिए...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

योध्या के राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की सुनवाई कर रही उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने स्पष्ट कहा है कि ये मामला किसी आस्था का नहीं है, बल्कि विवादित जमीन से जुड़ा है। 6 अगस्त से इस मामले की रोजाना सुनवाई हो रही है और बुधवार 21 अगस्त को इसका नौवां दिन था। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने रामजन्म स्थान पुनरुद्धार समिति के वकील से कहा कि वह इस मामले में पुख्ता सबूत पेश करें और सिर्फ पुराणों और अन्य धर्मग्रंथों की कहानी न सुनाएं।

च्चतम न्यायालय ने कहा कि हम आस्था को लेकर लगातार दलीलें सुन रहे है, जिन पर हाईकोर्ट ने विश्वास भी जताया है। इस पर जो भी स्पष्ट साक्ष्य हैं वह बताएं। चीफ जस्टिस ने कहा कि मानचित्र में यह साफ करिए कि मूर्तियां कहां हैं? हिंदू ग्रंथों में आस्था का आधार विवादित नहीं है, मंदिर के लिए दस्तावेजी सबूत पेश करिए।

इससे पहले रामजन्म स्थान पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने स्कंद पुराण का जिक्र किया, जिसमें लोग सरयू नदी में स्नान करने के बाद जन्मस्थान का दर्शन करते थे।इसमें मंदिर का जिक्र नहीं है, लेकिन जन्मस्थान का दर्शन करते थे। इस पर उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि स्कंद पुराण कब लिखा गया था?

राम जन्मस्थान पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने कहा कि ब्रिटिश लिखक के अनुसार गुप्तवंश के समय में लिखा गया। यह भी कहा जाता है 4-5 एडी में लिखा गया। पीएन मिश्रा ने कहा कि हमारा मानना है कि बाबर ने वहां कभी कोई मस्जिद नहीं बनवाई और हिंदू उस स्थान पर हमेशा पूजा करते रहे हैं। हम इसको जन्मभूमि कहते हैं।

पीएन मिश्रा ने आइन-ए-अकबरी की बातों को बताया और कहा कि उन्होंने कहीं भी ये नहीं बताया कि बाबर ने मस्जिद बनाई थी। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मस्जिद किसने बनाई ये मायने नहीं रखता है, चाहे वो बाबर हो या अकबर, सवाल ये है कि वहां पर मस्जिद थी या नहीं।

सके बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि आप अपने सभी नोट्स को इकट्ठा करें और उन डॉक्यूमेंट्स को हमें दें, जिनका आप जिक्र कर रहे हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि उन्हें कुछ पुख्ता सबूत चाहिए। हमें नक्शा दिखाएं या कुछ ऐसा दिखाइए कि जिससे पता लग सके कि आप जिस स्थान का दावा कर रहे हैं वो वही जगह है। चीफ जस्टिस ने कहा कि धर्मग्रंथों का इस वक्त मामले से लेना-देना नहीं है क्योंकि सवाल आस्था का नहीं बल्कि जमीन का है।

पीएन मिश्रा के बाद हिंदू महासभा के वकील ने अपनी दलील में जिक्र किया कि जमीन का मालिकाना हक सरकार के पास है। जिस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि जमीन का कंट्रोल सरकार के पास नहीं है। हिंदू महासभा के वकील ने कहा कि वह जिरह के लिए तैयार नहीं हैं। इस पर चीफ जस्टिस नाराज हुए और पूछा कि आप तैयार क्यों नहीं हैं? वकील ने कहा कि उन्हें पता नहीं था कि आज उनकी बारी आएगी, इसके बाद चीफ जस्टिस ने किसी ओर से अपना पक्ष रखने को कहा। हिंदू महासभा के बाद गोपाल सिंह विशारद की तरफ से वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने अपना पक्ष रखा।

ससे पहले रामलला विराजमान की तरफ से वरिष्ठ वकील एसएन वैद्यनाथन ने विवादित जमीन पर रामलला का दावा बताते हुए कई दलीलें पेश की। वैद्यनाथन ने कहा कि अगर वहां पर कोई मंदिर नहीं था, कोई देवता नहीं है तो भी लोगों की जन्मभूमि के प्रति आस्था काफी है। वहां पर मूर्ति रखना उस स्थान को पवित्रता प्रदान करता है।उन्होंने कहा कि अयोध्या के भगवान रामलला नाबालिग हैं।नाबालिग की संपत्ति को न तो बेचा जा सकता है और न ही छीना जा सकता है।

न्होंने कहा कि अगर जन्मस्थान देवता है, अगर संपत्ति खुद में एक देवता है तो भूमि के मालिकाना हक का दावा कोई और नहीं कर सकता। कोई भी बाबरी मस्जिद के आधार पर उक्त संपत्ति पर अपने कब्जे का दावा नहीं कर सकता।

स विवाद की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ कर रही है। इसमें जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं।

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