निर्मोही अखाड़े को चाहिए अयोध्या विवादित जमीन पर मालिकाना हक़, मगर नहीं हैं दस्तावेजी सबूत
निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट में कहा राम जन्म का वास्तविक स्थान क्या था, इसको लेकर हजारों सालों के बाद नहीं दिए जा सकते सबूत, लेकिन करोड़ों लोगों की आस्था है कि जहां अभी रामलला विराजमान हैं, वही है उनका जन्म स्थान, इस आस्था को महत्व दे कोर्ट...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
एक और जहां 50 के दशक में विवादित स्थान पर सरकार के नियंत्रण से पहले उसे अपने पास बताने वाला निर्मोही अखाड़ा उच्चतम न्यायालय में कोई सबूत नहीं दे पाया, वहीं दूसरी और राम लला विराजमान के वकील यह कहते हुए आस्था पर उतर आये कि राम जन्म का वास्तविक स्थान क्या था, इसको लेकर हजारों सालों के बाद सबूत नहीं दिए जा सकते। लेकिन करोड़ों लोगों की आस्था है कि जहां अभी रामलला विराजमान हैं, वही उनका जन्म स्थान है। इस आस्था को महत्व दिया जाना चाहिए।
निर्मोही अखाड़े को 2.77 एकड़ की संपूर्ण विवादित जमीन पर मालिकाना हक़ चाहिए, लेकिन उसके पास इसके लिए दस्तावेजी सबूत नहीं हैं। सिविल विवाद के नियमों के मुताबिक इसके लिए दस्तावेजी सबूत जरूरी हैं।
निर्मोही अखाड़े ने मंगलवार 6 अगस्त को अपनी दलील में कहा था कि उच्चतम न्यायालय को 2.77 एकड़ की संपूर्ण विवादित जमीन पर उसके नियंत्रण और प्रबंधन की अनुमति देनी चाहिए, क्योंकि मुसलमानों को वहां 1934 से ही प्रवेश की अनुमति नहीं है। फिर उच्चतम न्यायालय ने निर्मोही अखाड़े से अयोध्या की विवादित जमीन पर उसके अधिकार के दस्तावेजी सबूत मांगे। कोर्ट ने कहा कि क्या आपके पास अटैचमेंट से पहले रामजन्मभूमि पर अपने अधिकार को लेकर मौखिक या दस्तावेजी सबूत, रेवेन्यू रिकॉर्ड्स हैं? अखाड़ा ने जवाब में कहा कि 1982 में एक डकैती हुई थी जिसमें सारे रिकॉर्ड्स चोरी हो गए।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसए नजीर वाली संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। चीफ जस्टिस ने निर्मोही आखड़े के वकील से राम जन्मभूमि के सरकारी कब्जे से पहले के रिकॉर्ड के बारे में पूछा।
चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले से संबंधित रेकॉर्ड हमारे समाने रखें। निर्मोही आखड़े के वकील ने कहा कि 1982 में एक डकैती के दौरान यह दस्तावेज नष्ट हो गए। चीफ जस्टिस ने फिर सवाल किया कि अगर आपके पास इस मुद्दे से जुड़े कोई दूसरे साक्ष्य हैं तो वो कोर्ट के समक्ष रखें।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने निर्मोही अखाड़े के वकील से कहा कि अपनी देवदारी को लेकर तमाम दस्तावेज लेकर आइए और उसका एक चार्ट बनाएं। उसके बाद हम आपको सुनेंगे। निर्मोही आखड़े की दावेदारी से सम्बंधित दस्तावेज को देना है। सबसे पहले उच्चतम न्यायालय में निर्मोही अखाड़े की तरफ से वकील सुशील जैन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यह मालिकाना हक़ की लड़ाई नहीं है। ये कब्जे की लड़ाई है। इस विवादित जमीन पर शुरू से अखाड़े का कब्ज़ा रहा है। लिहाजा मामला कब्जे का है।
जस्टिस बोबड़े ने निर्मोही अखाड़े के वकील से पूछा कि क्या निर्मोही अखाड़े को सेक्शन 145 सीआरपीसी के तहत राम जन्मभूमि पर दिसंबर 1949 के सरकार के अधिग्रहण के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है? क्योंकि उन्होंने इस आदेश को लिमिटेशन अवधि समाप्त होने के बाद चुनौती दी। अखाड़ा ने लिमिटेशन अवधि (6 साल) समाप्त होने पर 1959 में आदेश को चुनौती दी।
निर्मोही अखाड़े के वकील जैन ने कोर्ट के एक पुराने फैसले का उदाहरण दिया और कहा कि उनका केस लिमिटेशन एक्ट 1908 के तहत आर्टिकल 47 के दायरे में आता है। अगर अंतिम आदेश सेक्शन 145 के तहत आता है तो लिमिटेशन अवधि जारी रहेगी।इस पर चीफ जस्टिस ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आप जिस फैसले का उदाहरण अपनी दलीलें में दे रहे हैं, वो सुप्रीम कोर्ट वीकली रिपोर्ट से लिया गया है या फिर सुप्रीम कोर्ट केसेस के आधार पर दे रहे हैं। जो दस्तावेज उच्चतम न्यायालय में उपलब्ध ही नहीं है, उसका उदाहरण न दें।
उच्चतम न्यायालय में राम लला विराजमान की तरफ से वरिष्ठ वकील के परासरन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि जब कोर्ट किसी संपत्ति को जब्त करता है तो कब्जाधारी के अधिकार को मामले के निपटारे तक छीना नहीं जाता। परासरन ने कहा कि श्रीराम का जन्म होने के कारण ही हिंदुओं के लिए ये जगह ज्यादा पूज्य है। वाल्मीकि रामायण का उदाहरण देते हुए कहा कि स्वयं विष्णु ने देवताओं से कहा कि वो अयोध्या में दशरथ राजा के यहां मानव रूप में जन्म लेंगे।
परासरन ने कहा ऐसे उदाहरण पौराणिक ग्रंथों में कई जगह मिलते हैं, जिनमें ये साक्ष्य पुष्ट होता है कि यही वो स्थान है जहां राम ने जन्म लिया। ब्रिटिश राज में भी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जब इस स्थान का बंटवारा किया तो मस्जिद की जगह को राम जन्म स्थान का मन्दिर माना। जन्म का वास्तविक स्थान क्या था, इसको लेकर हजारों सालों के बाद सबूत नहीं दिए जा सकते, लेकिन करोड़ों लोगों की आस्था है कि जहां अभी रामलला विराजमान हैं, वही उनका जन्म स्थान है। इस आस्था को महत्व दिया जाना चाहिए।
परासरन की इन दलीलों के बीच जस्टिस बोबडे ने सवाल किया कि क्या कभी किसी और धार्मिक हस्ती के जन्म स्थान का मसला दुनिया की किसी कोर्ट में उठा है? क्या कभी इस बात पर बहस हुई कि जीसस क्राइस्ट का जन्म बेथलेहम में हुआ था या नहीं? परासरन ने कहा कि मुझे इसके बारे में जानकारी नहीं है। मैं ये पता करके आपको बताऊंगा।