सुप्रीम कोर्ट ने रामलला के वकील से राम जन्मभूमि पर दावे के मांगे सबूत
सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने पूछा रामलला का जन्मस्थान कहां है, जिस पर रामलला विराजमान ने कहा इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे वाले स्थान को भगवान राम का जन्मस्थान माना है...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने मंगलवार को एक बार फिर रामलला विराजमान के वकील से रामजन्मभूमि पर दावे के सबूत मांगे। अयोध्या मामले में मध्यस्थता की कोशिश नाकाम होने के बाद 6 अगस्त से उच्चतम न्यायालय में नियमित हो रही है। सुनवाई के दौरान बहस में कई दिलचस्प तथ्य सामने आ रहे हैं।
इसी कड़ी में पांचवें दिन की सुनवाई शुरू हुई तो बहस की शुरुआत रामलला विराजमान की ओर से वरिष्ठ वकील परासरन ने की। उन्होंने कहा कि पूर्ण न्याय करना उच्चतम न्यायालय के विशिष्ट क्षेत्राधिकार में आता है। इस दौरान रामलला विराजमान के एक और वकील वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद से पहले मंदिर था। इससे संबंधित सबूत कोर्ट के समक्ष रखेंगे।
उन्होंने कहा कि 18 दिसम्बर 1961 को जब लिमिटेशन एक्ट लागू हुआ, उससे पहले 16 जनवरी 1949 को मुस्लिमों ने यहां अंतिम बार प्रवेश किया था। 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं।
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रामलला विराजमान की तरफ से के. परासरण ने कहा कि इस मामले को किसी तरह से टालना नहीं चाहिए, अगर किसी वकील ने ये केस हाथ में लिया है तो उसे पूरा करना चाहिए। बीच में कोई दूसरा केस नहीं लेना चाहिए। के. परासरण ने अपनी दलीलें पूरी कर दी हैं। इसके बाद रामलला की तरफ से एस. सी. वैद्यनाथन अपनी बहस शुरू की।
वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद से पहले उस स्थान पर मंदिर था। इसका कोई सबूत नहीं है कि बाबर ने ही वो मस्जिद बनाई थी। मुस्लिम पक्ष ने दावा किया था कि उनके पास 438 साल से जमीन का अधिकार है, लेकिन हाईकोर्ट ने भी उनके इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया था।
इस दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आपका दुनिया देखने का नजरिया सिर्फ आपका नजरिया है, लेकिन आपके देखने का तरीका सिर्फ एक मात्र नजरिया नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि एक नजरिया ये है कि स्थान खुद में ईश्वर है और दूसरा नजरिया ये है कि वहां पर हमें पूजा करने का हक मिलना चाहिए। हमें दोनों को देखना होगा। इस पर रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा कि ये हमारा नजरिया है, अगर कोई दूसरा पक्ष उस पर दावा करता है तो हम डील कर लेंगे। हमारा मानना है कि स्थान देवता है और देवता का दो पक्षों में सामूहिक कब्जा नहीं दिया जा सकता।
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उच्चतम न्यायालय ने रामलला विराजमान से जमीन पर कब्जे के सबूत पेश करने को कहा है। संविधान पीठ ने कहा कि आप सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे को नकार रहे हैं, आप अपने दावे को कैसे साबित करेंगे। इसके बाद रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजों के फैसले में वैचारिक तालमेल नहीं है। रामलला विराजमान देवता हैं, दूसरी जगह वो कहते हैं कि संपत्ति के मालिक हैं। जब स्थान खुद में पूजनीय है और देवता है, तो ये नहीं कहा जा सकता है कि वहां भगवान रहते हैं। ऐसे में इस पर सामूहिक कब्जा नहीं हो सकता है।
सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि रामलला का जन्मस्थान कहां है? जिस पर रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे वाले स्थान को भगवान राम का जन्मस्थान माना है। मुस्लिम पक्ष की तरफ से विवादित स्थल पर उनका मालिकाना हक साबित नहीं किया गया था।
वैद्यनाथन ने कहा कि 72 साल के मोहम्मद हाशिम ने गवाही में कहा था कि हिंदुओं के लिए अयोध्या उतना ही महत्व रखता है, जितना मुसलमानों के लिए मक्का। वैद्यनाथन ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय ने ही अपने एक फैसले में कहा था कि मंदिर के लिए मूर्ति होना जरूरी नहीं है। अब राम जन्मभूमि को लेकर जो आस्था है, वह सभी शर्तों को पूरा करती है।
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वैद्यनाथन ने मुस्लिम पक्ष की दलील को पढ़ा और कहा कि उनके पास कोई सबूत नहीं है कि उनके पास कब्जा है या कब्जा चला आ रहा है। उन्होंने ये भी कहा कि अगर कोई स्थान देवता है, तो फिर उसके लिए आस्था मान्य होनी चाहिए। वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद से पहले उस स्थान पर मंदिर था, इसका कोई सबूत नहीं है कि बाबर ने ही वो मस्जिद बनाई थी।
मुस्लिम पक्ष ने दावा किया था कि उनके पास 438 साल से जमीन का अधिकार है, लेकिन हाईकोर्ट ने भी उनके इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया था।