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रिटायर्ड होते ही सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा- चंद अमीरों और ताकतवरों की मुठ्ठी में कैद है कानून और न्याय तंत्र

Nirmal kant
8 May 2020 10:13 AM GMT
रिटायर्ड होते ही सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा- चंद अमीरों और ताकतवरों की मुठ्ठी में कैद है कानून और न्याय तंत्र
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जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि देश की कानून और न्याय व्यवस्था अमीरों की मुठ्ठी में कैद है। भारी रकम से जुड़े मामले या नामी-गिरामी कानूनी फर्मों के मामले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने में प्राथमिकता पाते हैं...

जनज्वार ब्यूरो। जस्टिस दीपक गुप्ता तीन साल सुप्रीम कोर्ट में सेवा देने के बाद रिटायर्ड हो गए हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि अगर सरकार की ओर से उन्हें कोई पद दिया जाता है तो वह इसे स्वीकार नहीं करेंगे। जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपनी राय देते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए मनोनयन भी सरकार द्वारा की गई पेशकश है। बता दें कि हाल ही पूर्व सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई भी राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए हैं।

स्टिस गुप्ता ने कहा कि वह राज्यसभा की सीट को भी नहीं स्वीकार करेंगे। जस्टिस गुप्ता ने यह भी कहा कि देश की कानून और न्याय व्यवस्था अमीरों की मुठ्ठी में कैद है। भारी रकम से जुड़े मामले या नामी-गिरामी कानूनी फर्मों के मामले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने में प्राथमिकता पाते हैं।

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स्टिस गुप्ता 6 मई को सुप्रीम कोर्ट के जज के रुप में रिटायर हुए। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस को विस्तार से इंटरव्यू दिया। इस दौरान जब उनसे सवाल किया गया कि रिटायर होने से पहले सुप्रीम कोर्ट के कई जज इस बारे में मन बना लेते हैं कि आगे सरकारर उन्हें किसी पद की पेशकश करे तो स्वीकार करना है या नहीं, आपकी क्या राय है? इसपर जस्टिस गुप्ता ने कहा, मैं ऐसा कोई पद स्वीकार नहीं करूंगा। कुछ ऐसे ट्रिब्यूनल होते हैं जहां सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज को ही नियुक्त किए जाने का प्रावधान है, लेकिन मैं इस तरह की भी कोई जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करुंगा।

ब उनसे पूछा गया कि क्या राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए मनोनयन भी सरकार द्वारा रिटायरमेंट के बाद की गई नौकरी की पेशकश के दायरे में आता है तो वह बोले- मेरी राय में तो आता है। साथ ही, कहा कि मैं तो इसे न स्वीकार करता। हालांकि, मैं यह भी मानता हूँ कि कोई मुझे इसकी पेशकश भी करने नहीं आ रहा।

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स्टिस दीपक गुप्ता ने न्यायपालिका में सुधार के सवाल पर कहा कि मेरे हिसाब से इसमें दो बड़ी दिक्कतें (लंबित मामले और नियुक्तियों में देरी) हैं। यदि हमारे पास बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर होगा तो हम लंबित मामलों से निपट सकते हैं। स्वतंत्र न्यायपालिका रखने के लिए हमें बेहतर प्रशिक्षित और ईमानदार जजों की जरूरत है। लंबित नियुक्तियों के मामले में मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि सभी स्तरों पर नियुक्तियां केवल योग्यता के आधार पर ही की जानी चाहिए।

के दौरान जब उनसे सवाल किया गया कि पूर्व सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि वे न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच सेतु बनाने का काम करेंगे, इस पर आपकी क्या राय है? तो उन्होंने कहा, 'कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सेतु पहले से ही है। जब मैं हाईकोर्टों में मुख्य न्यायधीश था तो मैने मुख्यमंत्रियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर काम किया है।

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ई अन्य मामलों को बिना किसी स्पष्टीकरण के फॉस्ट ट्रैक करने मुद्दे पर जब उनसे पूछा गया कि क्या आप इसे भी एक मुद्दा मानते हैं? तो उन्होंने कहा, 'मैं स्वीकार करता हूं। सुप्रीम कोर्ट एक रजिस्ट्री-ड्राइवन कोर्ट है। रजिस्ट्री को और अधिक जीवंत बनाने की जरूरत है। रजिस्ट्रार विभिन्न उच्च न्यायालयों से अलग-अलग अनुभव के साथ आते हैं, लेकिन उनमें प्रबंधकीय कौशल नहीं होता है। चीफ जस्टिस और रजिस्ट्री ही हर चीज तय करते हैं।

ता दें कि इससे पहले जस्टिस दीपक गुप्ता ने 6 मई को अपना विदाई भाषण दिया था जिस दौरान उन्होंने कई तल्ख टिप्पणियां की थीं। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि देश का कानून और न्याय तंत्र चंद अमीरों और ताकतवर लोगों की मुट्ठी में कैद में है। उन्होंने कहा कि ऐसा गरीब प्रतिवादियों की कीमत पर होता है जिनके मुकदमे और देरी होती जाती है क्योंकि धन के अभाव में उच्चतर न्यायालयों का दरवाजा नहीं खटखटा सकते।

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