भारत के लिए भगत सिंह और लेनिन को प्रासंगिक बना रही है सत्ता
वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा बोले विश्व के लिये लेनिन आज भी प्रासंगिक
रामनगर, जनज्वार। अपनी सत्ता को हर कीमत पर सही ठहराने के जूनून में मोदी सरकार एक काम गलती से कर गई, जिसकी गूंज ने देश की नयी पीढ़ी को लेनिन और भगत सिंह से परिचय का अवसर ही नहीं दिया, बल्कि बेहतर विकल्प जानने का जाने-अनजाने में एक मौका भी दे डाला है।
भगत सिंह की मूर्ति तोड़ी जाती तो सारा देश खिलाफत में उतर जाता, इसलिए लेनिन की मूर्तियों को ढहाने का प्रोग्राम अमल में लाया गया, जो अब सत्ता के गले की बड़ी फांस बन गया है। इस क्रम में आज देशभर के नौजवान भगत सिंह और लेनिन को जानने के लिए इंटरनेट खंगाल रहे हैं, उन्हें पढ़ रहे हैं। जिससे मोदी सरकार सकते में है। सरकार की परेशानी यह है कि यदि नौजवान दोनों के विचारों से हमारी तुलना करने लगे तो सीधे व्यवस्था परिवर्तन की तरफ मुड़ सकते हैं।
इस हलचल ने देशभर की प्रगतिशील ताकतों की हिम्मत में भी इजाफा किया है जिसके चलते देश भर में प्रोग्राम लिए जा रहे है। इसकी शुरुआत उत्तराखंड के रामनगर से हुई है। जहाँ देशभर की प्रगतिशील ताकतों ने एक मंच पर आकर भगत सिंह और लेनिन की विरासत को देश की नयी पीढ़ी के साथ साझा कर बेहतर दुनिया के निर्माण का संकल्प लिया गया। रामनगर में इसकी शुरुआत समाजवादी लोक मंच के बैनर तले हुई।
साम्यवादी नेता कामरेड ब्लादीमीर इलीच लेनिन के विचारों को पूरे विश्व के लिये प्रासंगिक बताते हुये समकालीन तीसरी दुनिया के सम्पादक आनन्दस्वरुप वर्मा ने कहा कि यह प्रासंगिकता भारत में फासीवादी सत्ताओं द्वारा उनकी मूर्तियां तोड़े जाने की घटनाओं के बाद और अधिक बढ़ गई है।
‘भगत सिंह के आदर्श लेनिन के विचारों की आज के दौर में प्रासंगिकता’ विषय पर आयोजित सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए वर्मा ने कहा कि पूर्व में कांग्रेस सरकार ने देश पर तानाशाही थोपी थी, जिसका देश की जनता ने मुंहतोड़ जवाब देते हुये तानाशाही को नकार दिया था, लेकिन वर्तमान समय में देश में फासीवाद का कब्जा हो गया है जो कि किसी प्रकार के प्रतिरोध की आवाज को सुनना तो दूर उसे पनपने का मौका भी नहीं देना चाहता है।। ऐसे में फासीवाद का मुकाबला करने के लिये देश की जनता को नये ढंग से लड़ाई लड़नी होगी।
दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर सचिन निर्मल नारायण ने कहा कि भारत में मोदी के सत्ता में आने के बाद अपने विरोधियों की संस्थागत हत्या का नया दौर शुरु किया गया है जो कलबुर्गी, दाभोलकर, रोहित वेमुला, अशफाक, गौरी लंकेश से होते हुये इस स्तर तक पहुंच गया है कि बलात्कारियों को बचाने के लिये फासीवादी संगठनों के लोग तिरंगे के साथ प्रदर्शन तक करने लगे हैं, जो कि पूरे विश्व में देश की जनता को शर्मसार करने की वजह बन रही है।
सचिन निर्मल नारायण ने कहा कि समाजवादी राजनीति में जहां जनता का गुस्सा केन्द्र में होता है तो वहीं फासीवादी राजनीति के केन्द्र में एक समुदाय से दूसरे समुदाय के प्रति घृणा का अभियान चलाना होता है, जिसके चलते देश वर्तमान में खतरनाक दौर से गुजर रहा है।
पत्रकार अजय प्रकाश ने चर्चा के दौरान सत्ता द्वारा जनता को ही सवालों के घेरे में खड़ा करने की सत्ताधारियों की चाल का पर्दाफाश करते हुये कहा कि अपनी नाकामियां छिपाने के लिये वर्तमान सत्ता में बैठे लोग जनता पर ही सवालिया निशान लगा रहें हैं, जबकि तमाम समस्याओं का जवाब देने की जिम्मेदारी सत्ता की होती है। सड़क से संसद तक की लड़ाई में नये मंच सोशल मीडिया की भूमिका को रेखांकित करते हुये उन्होंने कहा कि जब मीडिया पूरी तरह से सत्ता के आगे नतमस्तक हो चुका हो तो जनता के सामने अपनी लड़ाई को आगे ले जाने के लिये सोशल मीडिया एक शानदार हथियार है, जिसका उपयोग करके सत्ता की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता रविन्द्र गड़िया ने लेनिन को मानव सभ्यता के इतिहास का महापुरुष बताते हुए कहा कि उन्होंने एक विशाल राष्ट्र को पूंजीपतियो के कब्जे से छुड़ाकर देश की बागडोर मजदूर-किसानों के हाथो में देकर विश्व की राजनीति को पूरी तरह से बदलकर राजनीति के केन्द्र में गरीबों को खड़ा कर दिया था।
गड़िया ने कहा कि इन्दिरा गांधी का ‘गरीबी हटाओ’ का नारा व मोदी का अपने को गरीब कहकर जनता का भावनात्मक शोषण करने का जो ढंग है, वह बताता है कि सत्ताधारी दल सत्ता में आने के बाद भले ही पूंजीपतियों की सेवा करें, लेकिन सत्ता में आने के लिये आज भी उन्हें मजबूरीवश ही सही ‘गरीब’ की बात करनी ही पड़ती है, यही बात आज भी लेनिन को प्रासंगिक बनाती है।
किसान नेता चौधरी बलजीत सिंह ने समाज में हो रहे बदलाव पर चिन्ता व्यक्त करते हुये कहा कि हमारे समाज ने हमेशा बेटियों को सवालों के दायरे में रखा है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम अपने बेटों को सवालो के दायरे में लाकर उनकी जिम्मेदारी तय करें। उन्होंने समाज में संवाद की कमी पर चिन्ता व्यक्त करते हुये कहा कि लोगो की आपस में संवादहीनता भी समाज की समस्याओं के समाधान में बाधक बन रही है। हमें आपस में संवाद कायम करते हुये राजनीति पर खास नजर रखने की जरुरत है।
प्रेम आर्य ने वनगांव दुर्दशा को चर्चा के केन्द्र में रखा तो मंच के सहसंयोजक मुनीष कुमार ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे छोटे-छोटे संघर्ष की एकजुटता पर जोर देते हुये कहा कि यह संघर्ष ही एक दिन देश में क्रान्ति की बुनियाद रखेंगे। उन्होंने देश में बढ़ रही गैरबराबरी पर चर्चा करते हुये कहा कि जब तक समाज के अन्तिम व्यक्ति व देश के प्रथम व्यक्ति का वेतन एक समान नहीं होगा तब तक गैरबराबरी को समाप्त नहीं किया जा सकता है। मुनीष ने कहा कि सरकार देश की जनता को दो रुपये की दवाई चिकित्साल में उपलब्ध नहीं करवा सकती है, लेकिन ऐसी परिस्थितियां जरुर बना रही है कि उसकी सरपरस्ती में नीरव मोदी जैसे पूंजीपति बीस हजार करोड़ रुपये लेकर देश से चंपत हो जायें।
समाजवादी लोकमंच के संयोजक केसर राना के संचालन में आयोजित इस सम्मलेन के दौरान सहमती बनी कि इस प्रकार की चर्चाओं व विमर्श को बढ़ावा देते हुए अधिक से अधिक युवाओं को इस मुहिम में शामिल करके देश की तकदीर बदलने के लिए आगे आया जाये।
इस दौरान सम्मेलन में गिरीश आर्य, आनन्द नेगी, प्रभात ध्यानी, महेश जोशी, हेम आर्य, सुरेश लाल, मनमोहन अग्रवाल, मेघा, ललिता रावत, विद्यावती आर्य, पिंकी आर्य, किशन शर्मा, गोविन्द कुमियाल, तरुण जोशी, मौ0 शफी, संजय रावत, कमलेश, जमनराम, खीम सिंह, पान सिंह, कुन्दन सिंह, प्रेमपाल, प्रीतपाल, मदन मेहता, पूजा, उमा आर्य, चौधरी, भारत पाण्डे, पंकज कुमार, लालता प्रसाद श्रीवास्तव, सुनील सागर, दुर्गा लटवाल, अंजना, शीला शर्मा सहित राज्य के अनेक हिस्सों से आये लोगों ने हिस्सा लिया।