Begin typing your search above and press return to search.
संस्कृति

शासक चुनावी सभाओं में 'युद्ध' को भुनाने लगा था

Prema Negi
3 March 2019 2:07 PM IST
शासक चुनावी सभाओं में युद्ध को भुनाने लगा था
x

विजय कुमार की पांच कविताएं

युद्ध का उपक्रम

मुहल्ले के सारे बच्चे

युद्ध लड़ने का उपक्रम रच रहे हैं

बच्चे दो समूहों में बंटकर

अपने-अपने मुंह में च्युंगम चबाते और गुब्बारे की तरह फुलाकर

एक–दूसरे के सामने

फोड़ डालते

लो एक और एटम बम गिरा दिया

अब संभालो

सारे खबरिया चैनलों से कह दो

हमारे मुहल्ले से

एक लाइव प्रसारण जारी कर दे

गुब्बारे और एटम बम

शांति

दो देशों के बीच

एटम बमों के इस्तेमाल से ही संभव है

तो जंग लगे बक्से में क्यों रख दिये गये थे

यदि ये असलहें एक–दूसरे को डराने के मसले थे

तो ऐसे तमाम विध्वंसकारी

इंतजामों से अधिक

अच्छा होता

दोनों शत्रु देशों के

बम वर्षक विमान

एक–दूसरे के आसमान में

रंग–बिरंगे गुब्बारे छोड़ आते

युद्ध

दो देशों के बीच युद्ध समाप्त हो चुका था

सारी लड़ाई लड़ी गयी

टीवी स्क्रीन के ठीक सामने बैठ कर

परिणाम अत्यंत शांतिपूर्ण रहा

अब मौका

जब युद्ध बंदी की सुखद रिहाई का था

शासक चुनावी सभाओं में

युद्ध को भुनाने में लगा था

और खबरिया चैनल लहूलुहान हो रहे थे

राज्याभिषेक का सुअवसर

राज्यहित के और भी कई मसले थे

युद्धबंदी की सकुशल रिहाई के साथ-साथ

फिलहाल उन मसलों के

पलीतें को सुलगा कर छोड़ दिया गया

अगले पांच सालों में

एन मौके पर

फिर से एक और बम फूटेगा

राजा फिर से

बैठा रहेगा

एक बार फ़िर से राज्याभिषेक के सुअवसर के इंतजार में

देवनामप्रियदर्शी

युद्धोन्माद शासक

युद्ध के पश्चात सर्वप्रिय हो गया

सम्राट अशोक की भांति

कलिंग विजय कर आया

देवनामप्रियदर्शी

फिलहाल धम्म को पुनर्स्थापित कर रहा है

जनता अपने प्रिय राजा से

बुद्धम् शरणम गच्छामि

सुनने के इंतजार में कतारबद्ध खड़ी हो गई

Next Story

विविध