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- आईटी सेल ने दिया नफरती...
लेख में जो फोटो राम नाम का दिख रहा है, वह मोदी सरकार के चौथे साल में नफरती भक्तों द्वारा किया गया नया शोध है, जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ नफरत की राजनीति को देश में जहर की तरह फैलाना और आम आदमी के अमन—चैन का छीनना है....
स्वतंत्र पत्रकार सुशील मानव का एक आकलन
"पूरी ईद तक ये dp हर हिंदू की मोबाइल में होनी चाहिए" इस टैग लाइन के साथ चाकू, चापड़, तलवार जैसे हत्या करने के हथियारों से राम लिखी हुई इमेज बड़ी तेजी से वॉट्सएप्प पर फैलायी जा रही है।
ईद बीतने के बाद भी ये अभियान जोर शोर से जारी है। इसका मकसद क्या है? दरअसल हथियारों का अपना मनोविज्ञान और राजनीति होती है... हथियारों का आविष्कार ही मनुष्य और मनुष्यता की हत्या के लिए हुआ है।
इन हत्या के हथियारों से जिसने भी राम का नाम बनाया है, उसने सबसे पहले राम की ही हत्या की है... राम उत्तर भारत में मुक्ति का नाम हुआ करता था। 'राम नाम सत्य है' और 'राम से बड़ा राम का नाम' सुबह शाम की 'जयरामजी' जैसी लोकोक्तियां इसकी बानगी हैं।
फिर जिन लोगों ने इसे अपनी डीपी बनाया उन्होंने अपनी और अपनी मनुष्यता की हत्या की है... लोग अंजाने में ही हत्या के विचार को अपनी डीपी से प्रमोट करके अपने भीतर हत्यारे को पनाह दिये हुए हैं। अपने अंदर एक हत्यारा छुपाये बैठे यही लोग ही हत्याओं को जस्टीफाई करते हैं। कभी नक्सली के नाम पर, कभी कश्मीरी के नाम पर कभी मुसलमान तो कभी दलित के नाम पर।
हथियारों की निहित राजनीति लोकतंत्र की हत्या करती चलती है। लोकतंत्र में असहमति के लिए जगह और सम्मान होता है, जबकि हत्या के हथियारों की राजनीति ही विरोधियों को समूल खत्म कर देना है। हथियार की राजनीति अपने से अलग विचारधारा और असहमति को रक्तस्नात कराती है।
इसके पीछे वही लोग हैं, जिन्होंने पत्रकार गौरी लंकेश और लेखक एम एम कलबुर्गी की हत्या करवाई। जिन्होंने गोविंद पनसारे और नरेंद्र दाभोलकर की हत्या करवाई। जिन्होंने गुजरात व मुंबई के दंगे करवाये। जिन्होंने हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए करोड़ों लोगों की हत्या की कीमत पर देश का बँटवारा करवाया। जिन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या करवाई।
संघियों ने राम को हत्या का पर्यायवाची बना दिया है। पहले रामनवमी पर दंगे में निरपराध लोगों की हत्या करके, अब हत्या के हथियार से उनका नाम लिखकर।
लेकिन ये आज का अभियान नहीं है। आडवाणी की रथयात्रा और फिर संघ गैंग द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से क्रिया प्रतिक्रिया की न खत्म होने वाली श्रृंखला में न सिर्फ लाखों लोग अब तक प्रभावित हुए हैं, बल्कि संविधान प्रदत्त देश का सेकुलर ढाँचा भी पूरी तरह से खंडहर में तब्दील होने की ओर बढ़ रहा है।