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पिछले ढाई महीने में अकेले दिल्ली में 3 दर्जन पत्रकारों पर हुए जानलेवा हमले, CAAJ की रिपोर्ट
पत्रकारों की गिरफ्तारी और उन्हें हिरासत में लेने के अलावा गोली मारने, मारपीट, काम करने से रोके जाने, शर्मिंदा किए जाने, वाहन जलाए जाने से लेकर धमकाए जाने और जबरन धार्मिक नारे लगवाए जाने जैसे कृत्य आये सामने, हमलावरों में पुलिस से लेकर उन्मादी भीड़ तक बराबर शामिल...
जनज्वार, दिल्ली। प्रेस की आज़ादी के मामले में देश की राजधानी में हालात इमरजेंसी के दिनों से भी बदतर हो चुके हैं। पिछले ढाई महीने में अकेले दिल्ली में करीब 3 दर्जन पत्रकारों पर हमले हुए हैं। इनमें ज्यादातर पत्रकार राष्ट्रीय मीडिया के हैं जो दिल्ली एनसीआर में कार्यरत हैं। इन हमलों में गिरफ्तारी और हिरासत से लेकर गोली मारने, मारपीट, काम करने से रोके जाने, शर्मिंदा किए जाने, वाहन जलाए जाने से लेकर धमकाए जाने और जबरन धार्मिक नारे लगवाए जाने जैसे उत्पीड़न शामिल हैं। हमलावरों में पुलिस से लेकर उन्मादी भीड़ तक बराबर शामिल है।
यह बात पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) द्वारा सोमवार को जारी की गयी एक रिपोर्ट में सामने आयी है। “रिपब्लिक इन पेरिल” नामक यह रिपोर्ट दिल्ली के प्रेस क्लब आफ इंडिया में जारी की गयी। वरिष्ठ पत्रकार और कमेटी के संरक्षक आनंदस्वरूप वर्मा, अंग्रेज़ी पत्रिका कारवां के राजनीतिक संपादक हरतोश सिंह बल और आल इंडिया विमेंस प्रेस कॉर्प्स की अध्यक्ष टीके राजलक्ष्मी ने रिपोर्ट को रिलीज़ करते हुए प्रेस को संबोधित किया।
रिपोर्ट में दिसंबर से लेकर फरवरी के बीच पत्रकारों पर हमले के तीन चरण गिनाए गए हैं। पहला चरण नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद जामिया के प्रोटेस्ट से शुरू होता है। इस बीच प्रेस पर सबसे ज्यादा हमले 15 दिसंबर से 20 दिसंबर के बीच हुए। इन हमलों में भीड़ और पुलिस दोनों की बराबर भूमिका रही।
हमले का दूसरा चरण 5 जनवरी को जेएनयू परिसर में नकाबपोशों के हमले के दौरान सामने आया जब जेएनयू गेट के बाहर घटना की कवरेज करने गए पत्रकारों को भीड़ द्वारा डराया धमकाया गया, धक्कामुक्की की गयी, नारे लगाने को बाध्य किया गया। प्रताड़ित पत्रकारों की गवाहियों से सामने आया कि इस समूचे प्रकरण में पुलिस मूकदर्शक बनकर खड़ी रही।
रिपोर्ट कहती है कि दिसंबर और जनवरी की ये घटनाएं ही मिलकर फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई व्यापक हिंसा में तब्दील हो गयीं, जब खुलेआम पत्रकारों को उनकी धार्मिक पहचान साबित करने तक को बाध्य किया गया। दो दिनों 24 और 25 फरवरी के बीच ही कम से कम डेढ़ दर्जन रिपोर्टरों को कवरेज के दौरान हमलों का सामना करना पड़ा। जेके न्यूज़ 24 के आकाश नापा को तो सीधे गोली ही मार दी गयी।
दिल्ली की इस हिंसा के दौरान सताये गये राष्ट्रीय मीडिया के पत्रकारों ने अपनी आपबीती अलग अलग मंचों और सोशल मीडिया पर सुनायी है। समिति की यह रिपोर्ट इन्हीं आपबीतियों और रिपोर्टों पर आधारित है।
पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति जल्द ही 2019 में पत्रकारों पर हुए हमलों की एक समग्र सालाना रिपोर्ट प्रकाशित करने जा रही है। इससे पहले दिसंबर 2020 के अंत में CAA विरोधी आंदोलन में प्रताड़ित पत्रकारों की एक संक्षिप्त सूची समिति ने प्रकाशित की थी।