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आंदोलन

किसानों के हत्यारों को बचाने और मंदसौर पुलिस गोलीकांड को जायज ठहराने के लिए तैयार की गई जैन आयोग की रिपोर्ट

Janjwar Team
21 Jun 2018 4:10 PM GMT
किसानों के हत्यारों को बचाने और मंदसौर पुलिस गोलीकांड को जायज ठहराने के लिए तैयार की गई जैन आयोग की रिपोर्ट
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रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि भीड़ के पास किसी तरह के हथियार नहीं थे। सीआरपीएफ के किसी की सिपाही या अफसर को चोट नहीं लगी, फिर भी कहा गया कि पुलिस ने खुद को बचाने के लिए आत्मरक्षा में गोलियां चलाईं...

भोपाल। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय व किसान संघर्ष समिति ने जैन आयोग द्वारा मंदसौर में किसानों पर पुलिस अधिकारियों के गोली चलाने को न्यायसंगत और नितांत आवश्यक ठहराने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की। कहा कि ​दिनदहाड़े 6 निर्दोष किसानों की हत्या को न्यायसंगत कहना न्याय की विकृतपूर्ण नई परिभाषा तैयार करने का प्रयास है, जिसे कोई भी सभ्य समाज और देश स्वीकार और बर्दाश्त नहीं करेगा। मंदसौर गोलीकांड को लेकर जैन आयोग की रिपोर्ट असल में किसानों के हत्यारों को बचाने और गोलीकांड को जायज ठहराने के लिए तैयार की गई है।

रिपोर्ट ने यदि कलेक्टर, एसपी, प्रशासन, पुलिस, सीआरपीएफ सभी को क्लीनचिट दे दी है तो हत्याओं के लिए कौन जिम्मेदार है? इस रिपोर्ट में आयोग ने न तो किसानों के उचित दाम या कर्ज़ा मुक्ति की मांग को किसानों के आंदोलन का मूल कारण माना गया है, न ही इन दोनों मांगों को स्वीकार करने की सरकार से कोई सिफारिश की गई है। गोलीकांड की पुनरावृत्ति रोकने के लिए पुलिस द्वारा की जाने वाली गोलीबारी पर भी कानूनी प्रतिबंध की सिफारिश नहीं की गई है, जबकि इन्हीं बिंदुओं पर जांच करने के लिए आयोग बनाया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार आयोग के पास इस बात के साफ सबूत थे कि पुलिस और सीआरपीएफ ने निहत्थे किसानों पर गोलियां चलाई हैं। यहां तक कि रिपोर्ट में विजय कुमार नामक एक सिपाही का नाम गोली चलाने के लिए लिया गया है, जिसकी गोली से कन्हैया लाल पाटीदार और पूनम चंद (बबलू) मारे गए। फिर भी सभी आरोपियों को क्लीनचिट दे दी गई।

जैन आयोग की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि भीड़ के पास किसी तरह के हथियार नहीं थे। सीआरपीएफ के किसी की सिपाही या अफसर को चोट नहीं लगी, फिर भी कहा गया कि पुलिस ने खुद को बचाने के लिए आत्मरक्षा में गोलियां चलाईं। अगर 2000 असमाजिक तत्वों की भीड़ होती तो कोई पुलिस वाला दोनों स्थानों से जीवित नहीं बच सकता था।

गोलीकांड के वक्त राज्य सरकार के अधिकारी और मंत्री इस घटना के पीछे असामाजिक तत्वों का हाथ बता रहे थे। इस रिपोर्ट में भी उसकी पुष्टि करने की कोशिश की गई है, जबकि सभी जानते हैं कि मारे गए सभी शहीद किसान थे, जिनका कोई पुराना आपराधिक रिकार्ड नहीं था। रिपोर्ट के अनुसार साफ है कि किसान उनके अनाज की सही कीमत न मिलने के कारण आंदोलन कर रहे थे, लेकिन अधिकारियों ने किसानों की समस्या समझने की कोशिश करना तो दूर संवाद करने की भी जरूरत नहीं समझी।

इसमें प्रशासन और पुलिस के बीच भी संवादहीनता सामने आई है। इतना ही नहीं पुलिस मैन्युअल का भी यहां पालन नहीं किया गया। गोलियां घुटनों के ऊपर चलाई गई हैं। यानी षड्यंत्रपूर्वक हत्याएं की गई हैं। इससे स्पष्ट होता है कि रिपोर्ट पूर्वाग्रह से प्रेरित है, जिसमें सभी फर्जी मुकदमों से पीड़ित परिवारों या 6 जून 2017 को उपस्थित 2000 किसानों को गवाह नहीं बनाया गया। पूरी रिपोर्ट 211 गवाहों की गवाही के आधार पर बनाई गई, जबकि आयोग ने 3 महीने की जगह 4 बार कार्यकाल बढ़ाकर 1 साल बाद रिपोर्ट दी।

जैन आयोग की रिपोर्ट में यह भी साफ नहीं है, क किन किन किसानों पर कितने फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए हैं तथा पुलिस पर हत्या के मुकदमे क्यों दर्ज नहीं किये गए। विधानसभा चुनाव हो जाने के बाद मध्य प्रदेश पुलिस की इन आंदोलनकारी किसानों को प्रताड़ित करने की मंशा साफ़ है। यह स्पष्ट हो गया है कि पिछले 10 साल में 9 से अधिक जांच आयोग बने हैं, वे सभी लोगों को न्याय देने के लिए नहीं, बल्कि लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए बनाए गए साबित हुई हैं।

जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय ने मांग की है कि दोषी अधिकारियों पर हत्या के मुकदमे दर्ज किये जाएँ और मृतक किसानों के परिजनो को स्थाई नौकरी दी जाये। इसके साथ ही आयोग की रिपोर्ट तत्काल सार्वजनिक करने की भी मांग की गई है।

शहीद स्मारक बनाने, किसानों पर लादे गए फर्जी मुकदमे वापस लेने और किसानों का सम्पूर्ण कर्ज़ा माफ करने और लाभकारी मूल्य की गारन्टी देने की किसानों की मांगें पूरी की जाने की सिफारिश जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय द्वारा की गई है।

साथ ही कहा गया है कि विधानसभा सत्र के पहले दिन इस मुद्दे पर सरकार बहस कराए। मध्य प्रदेश सरकार को यह बताना चाहिए कि वह रिपोर्ट को लेकर कब तक और क्या कार्यवाही करेगी? तब इस आंदोलन को तस्करों तथा कांग्रेसियों का आंदोलन बताया गया था, लेकिन जांच रिपोर्ट में ऐसे लोगों को नामजद नहीं किया गया है जिससे सरकार के झूठ का पर्दाफाश भी हुआ है।

(फोटो : दिनेश कुमार और उनकी पत्नी अल्का पाटीदार अपने 17 वर्षीय बेटे अभिषेक पाटीदार की फोटो के साथ, जो 6 जून, 2017 को मंदसौर गोलीकांड में पुलिस की गोली का शिकार हो गया था। climatechangenews.com से साभार।)

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