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शासन-प्रशासन के आदेश पर उजड़ गया शिब्बन घाट के लोगों का घरौंदा, अब कहां जायें ये गरीब-मजबूर
चाहे पार्षदी का चुनाव हो या सांसदी का, हर कैंडिडेट शिब्बन घाट बस्ती में नये—नये सपने दिखाकर आता रहा है वोट मांगने, लेकिन जब उजाड़ा जा रहा था इनका घरौंदा, तब पार्षद से लेकर सांसद तक लगाई गई इनकी गुहार नहीं सुनाई दी किसी को भी…
इलाहाबाद से सुशील मानव की ग्राउंड रिपोर्ट
जनज्वार। 24 मई की शाम पांच बज रहे थे, जब हीरालाल प्रयागराज स्थित शिब्बन घाट करेलाबाग नगर निगम की नई गैरेज की चारदीवारी से लगे गली में मूंज की चारपाई पर लेटे हुए थे। वहीं बगल में मंजू देवी अपने चार बच्चों को लेकर बैठी थी। बच्चे होमवर्क कर रहे थे जो उनकी बस्ती में आकर मुफ्त पढ़ाने वाले टीचर देकर गए थे। तभी पीछे से आकर नगर निगम की गाड़ी ने चारदीवार में ठोकर मारी, चारदीवारी गिर पड़ी।
हीरालाल खटिया छोड़कर भागे न होते तो उनका मरना तय था, हां उनकी खटिया चारदीवारी के नीचे चकनाचूर हो गई। मंजू देवी और उनके बच्चे बाल बाल बचे थे। गुड्डी देवी अपने आसरे (पुराने कपड़े और फटे पन्नी का टेंट) का परदेनुमा चद्दर उठाकर दिखाते हुए बताती हैं, 'साहेब वो देखो पंद्रह रोज पहले भी चारदीवारी पर ड्राईवर ने गाड़ी से ठोका था, उस वक्त मैं कूड़ा बीनने गई हुई थी। गैरेज की पूरी चारदीवारी जिधर कूड़ा बीनने वाले डेरा डालकर रह रहे हैं, नगर निगम की गाड़ी से ठोके जाने के चलते उसमें जगह जगह से ईंटें गिर गई हैं।'
आखिर कौन हैं ये लोग, जो जान जोखिम में डालकर नई गैरेज की उसी चारदीवारी के पास रह रहे हैं, जिस पर आए दिन नगर निगम के ड्राईवर ठोकर मारते रहते हैं।
शासन प्रशासन द्वारा गरीबों के घरौंदे उजाड़कर बनाये गये नये गैराज की चारदीवारी किनारे रहने को मजबूर शिब्बनघाट वासी
70-80 साल से रहते आए हैं ये लोग
प्रयागराज के शिब्बन घाट करेलाबाग में ये लोग 70-80 साल से रहते आए हैं। यहीं रहते इनकी 3-4 पीढ़ियां मर खप गई। यहीं उनका नारा-खेड़ी गड़ा है। इसी पते पर उनका वोटरकार्ड, आधारकार्ड, राशनकार्ड आदि बना हुआ है। यहीं ये लोग अपना सुख-दुःख जीते आए हैं।
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वहां रहने वाली लक्ष्मी कहती हैं, 'चाहे पार्षदी का चुनाव हो चाहे सांसदी का, हर कैंडिडेट यहां वोट मांगने आता रहा है, लेकिन जब हमारा घरौंदा तोड़ा जा रहा था तब हमने पार्षद से लेकर सांसद तक गुहार लगाई, पर हमारी आवाज़ किसी ने नहीं सुनी। इलाहाबाद की मेयर अभिलाषा गुप्ता नंदी ने कहा, आप लोगों की बस्ती अवैध है, हम कुछ नहीं कर सकते। इस जगह को छोड़कर कहीं और चले जाओ, जबकि वोट मांगने के टाइम इन्हें हम और हमारी बस्ती अवैध नहीं लगी।' बता दें कि मेयर अभिलाषा गुप्ता के पति नंद गोपाल नंदी सूबे की योगी सरकार में मंत्री हैं।
शादी के कुछ दिन बाद ही ढहा दिया गया था राधा का घरौंदा
फटी चिथड़ी साड़ियों को लपेटकर अपना वैवाहिक जीवन जी रही राधा बताती हैं कि उन्हें ब्याहकर आए एक पखवाड़ा भी नहीं बीता था कि नगर निगम के बुलडोजरों ने उनकी खुशहाल ज़िंदग़ी के सपने को रौंद डाला। नगर निगम के अधिकारियों के अनुसार ये झोपड़पट्टी अवैध रूप से बसी थी। यह सरकारी ज़मीन थी।
आशियाना उजाड़े जाने के बाद सड़क पर सोने को मजबूर लोग
सवाल यह है कि क्या इस देश का नागरिक जिसके पास कोई जमीन या आवास नहीं है, जिसके पास सिर छिपाने की जगह नहीं है, अगर वह सरकारी ज़मीन पर नहीं रहेगा तो कहाँ रहेगा? नगर निगम की गाड़ियों का गैरेज बनाने के लिये प्रयागराज के करैल बाग़ (शिब्बन घाट) की झोपड़पट्टियों को उजाड़ दिया गया था।
नई गैरेज की चारदीवारी से सटी सड़कों पर धोती, साड़ी, चादर तानकर सड़कों पर रह रहे हैं लोग
नगर निगम की जमीन से उजड़ने के बाद लोगों ने पार्किंग की चारदीवारी से लगाकर चादर, धोती और साड़ी तानकर गुजारा कर रहे हैं, जबकि कुछ लोग तपते दिन में भी खुले आसमान के नीचे ही रह रहे हैं। गली की सड़क पर बर्तन माँजती बच्चियां हिना, नीलम और मालती कहती हैं- “साहेब शरीर के सारे जख्म तो मिट गए हैं और मन के जख्म आपके मोबाइल के कैमरे में नहीं आयेंगे।”
आशा देवी अपना जला हुआ आशियाना दिखाकर कहती हैं, “साहेब सरकार के बुलडोजर से कुचले जाने के बाद कपड़े लत्ते से जो नया आशियाना भी बनाया था, उसमें किसी ने आग लगा दी है, अब उन्हें और उनके तीन छोटे—छोटे बच्चों को खुली सड़क पर ‘लू’ में खाकर दिन बिताना पड़ रहा है।” लोग खुले सड़क पर ही खाट बिछाकर सोते हैं, खुले सड़क पर खुले आसमान तले ही खाते बनाते हैं।
कूड़ा बीनकर गुजारा करते आए हैं लोग
इस बस्ती के अधिकांश लोग दलित समुदाय के हैं और कूड़ा बीनकर गुजारा करते हैं। अनिल कुमार बताते हैं कि कूड़ा बीनकर दिनभर में 70-80 रुपए की कमाई हो जाती है, उसी में किसी तरह से परिवार का पेट पाल लेते हैं। दाल-चावल सरकारी दुकान से मिल जाता है, नून, तेल, लकड़ी खरीदनी पड़ती है।
राधा देवी बताती हैं, वो कुछ मुस्लिम घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन धोने का काम करती हैं, जबकि अछूत होने के नाते उन्हें हिंदू घरों में काम नहीं मिलता है। सोमनाथ बताते हैं, कूड़ा बीनने के अलावा कभी कभार मिल जाने पर मजदूरी भी कर लेते हैं। घरेलू कामगार महिला संगठन की मदद से बस्ती की दो स्त्रियों ने बतख, मुर्गी और कबूतर भी पालने शुरू किए हैं।
बस्ती उजाड़कर बनाकर बनाया गया नया गैरेज दिखाते अनिल
नगर निगम की गाड़ियों के लिए एक बड़ा गैराज पहले से है मौजूद
जिस जगह से लोगों की बस्ती को उजाड़कर नगर निगम की गाड़ियों के लिए नया गैराज बनाया गया है, उसके ठीक बगल में ही नगर निगम का एक गैराज बहुत पहले से मौजूद है। उसमें नगर निगम की गाड़ियां आज भी खड़ी होती हैं। ऐसे में सवाल है कि फिर ऐसी क्या ज़रूरत आ पड़ी नया गैराज बनाना पड़ा।
दरअसल ‘दिव्य कुम्भ भव्य कुंभ’ 2019 के नगर निगम ने हजारों नई गाड़ियां खरीदी थीं। कुम्भ खत्म होने के बाद अचानक से हजारों गाड़ियों को एक जगह खड़ा करने का संकट पैदा हो गया। पुराने गैराज में ये सब नहीं आ सकती थी, अतः इन गाड़ियों को खड़ा करने के लिए लोगों की बस्ती को उजाड़कर नया गैराज बना दिया गया।
पूर्व पार्षद शिव प्रकाश बताते हैं कि गाड़ी में बड़ा कमीशन मिलता है, इसलिए महंगे दामों पर और ज़रूरत से कहीं ज्यादा गाड़ियां खरीदी गईं। चूंकि गाड़ियां जरूरत से ज्यादा हैं और इस्तेमाल में नहीं आ रही हैं तो इन्हें खड़ा करने के लिए जगह चाहिए तो गरीबों की झोपड़पट्टियों को उजाड़कर पार्किंग बनवा दी गई। इसके अलावा जोनल कार्यालयों, वर्कशाप और अस्पतालों में खड़ी कर दी गई।
30 मार्च को ‘अवैध’ कहकर नगर निगम ने रौंद डाली थी बस्ती
30 मार्च 2019 को सरकार का ‘विकास’ और स्वच्छता अभियान अपने लाव लश्कर यानि बुलडोजर, जेसीबी और करेली, कोतवाली, शाहगंज और खुल्दाबाद की फोर्स के डेढ़ सौ पुलिस वालों के साथ चलकर इलाहाबाद के सिब्बन घाट बस्ती (करेला बाग) पहुँचा था। विकास के पहुंचते ही 70-80 साल से इस जगह रह रहे लोगों को उजाड़कर बेघर कर दिया गया।
पीड़ितों के मुताबिक न तो उन्हें कोई पूर्व सूचना दी गई, न ही अपना सामान निकालने का समय। जो कुछ भी उनके पास थोड़ा बहुत सामान बर्तन था, उसे उनके अस्तित्व की तरह बुलडोजर के नीचे कुचलकर नष्ट कर दिया गया। विरोध करने पर उन्हें बर्बरतापूर्वक मारा-पीटा गया। सूचना मिलने पर विरोध की अगुवाई कर रहे पूर्व पार्षद शिव सेवक सिंह को भी मारा-पीटा गया और उन्हें सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में जेल में डाल दिया गया।
नाक मुंह बांधे बस्ती तुड़वाते करेला थाना इंस्पेक्टर और नगर निगम अधिकारी अजय कुमार
कच्ची बस्तियां अवैध और पक्के मकान वैध
पूर्व पार्षद शिव प्रकाश बताते हैं कि नगर निगम इलाहाबाद के पास पौने तीन सौ एकड़ जमीन थी, लेकिन मौजूदा समय में सिर्फ तीन एकड़ जमीन ही बची है। बाकी जमीन भू-माफियाओं ने अवैध रूप से कब्जा करके बाकायदा प्लाटिंग करके और पक्के मकान बनाकर बेच दिए। नगर निगम उन जमीनों को अवैध कब्जे से क्यों नहीं मुक्त करवाता? क्या पक्के मकान बनने से वो कब्जा वैध हो गया? शिव प्रकाश बताते हैं कि अगर सिब्बनघाट की नगरनिगम की जमीन पर झुग्गी बस्तियां नहीं होती तो वो जमीन भी पक्के मकान बनकर बिक गई होती फिर वो अवैध नहीं होती। इस व्यवस्था में पक्के मकान वैध और कच्ची झुग्गियां अवैध हैं।
भूमिहीनों के साथ अपराधियों जैसा सलूक़
बता दें कि शिब्बन घाट पर पैंतालीस से पचास झोपड़पट्टियों की बस्ती थी, जोकि ढाई सौ लोगों के सिर पर छत देती थी। नगर निगम के लोगों के साथ सीओ और सिटी मजिस्ट्रेट भी मौके पर नाक दबाए खड़े थे। उनकी मौजूदगी में मलिन बस्ती वासियों को पुलिस तथा प्रशासन ने क्रूरता तथा बेशर्मी के साथ उनकी झोपड़ियों से बेदख़ल करके जेसीबी से ढहा दिया गया। महिलाओं, लड़कियों, बच्चों तथा वृद्धों तक को निर्लज्जतापूर्वक पीटा गया। रोती—कलपती महिलाओं तथा बिलखते बच्चों तथा लड़कियों पर किसी को भी दया नहीं आई।
नगर निगम की गाड़ी से टूटी चारदीवारी दिखाती गुड्डी
इस देश में भूमिहीनों के साथ नगर निगम और प्रशासन अपराधियों जैसा सलूक करता है। उन्हें बार—बार उजाड़ा जाता है। जिनके पास अपनी कोई भूमि नहीं है, वो किस राष्ट्र के लोग हैं? आखिर भूमिविहीन लोगों की नागरिकता क्या है? पिछले काफी दिनों से हमारे देश में जिस राष्ट्र की धुन बज रही है क्या उसमें भूमिहीन लोगों के हित भी शामिल हैं?