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राजनीति

वक्फ बोर्ड ने किया अयोध्या के राम चबूतरे को राम का जन्मस्थान मानने से इंकार

Prema Negi
26 Sep 2019 8:52 AM GMT
वक्फ बोर्ड ने किया अयोध्या के राम चबूतरे को राम का जन्मस्थान मानने से इंकार
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सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वकील ने कहा कि बोर्ड को यह कतई स्वीकार नहीं कि राम चबूतरा भगवान राम का जन्मस्थान है, यह केवल हिंदुओं का विश्वास है...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

योध्या भूमि विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय के संविधान पीठ के समक्ष बुधवार 25 सितंबर को 31वें दिन की सुनवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को यह कतई स्वीकार नहीं कि राम चबूतरा भगवान राम का जन्मस्थान है। यह केवल हिंदुओं का विश्वास है। इस मामले में जिला जज के ऑब्जरवेशन के बाद हमने इस संदर्भ में कोई कदम नहीं उठाया।

जिलानी ने हाईकोर्ट के फैसले में गजेटियर रिपोर्ट के संदर्भ में पढ़ते हुए कहा कि गजेटियर रिपोर्ट लोगों के उस विश्वास को सपोर्ट नहीं करती, जिसके तहत वे ये मानते हैं कि विवादित स्थल पर मंदिर था। जिलानी ने कहा कि मंगलवार 24 सितबंर को हमने यह नहीं कहा कि राम चबूतरा जन्मस्थान है। हमने कहा था कि 1886 में फैजाबाद कोर्ट के जज ने कहा था कि राम चबूतरा भगवान राम का जन्मस्थान है। हमने उस फैसले को कभी चुनौती नहीं दी। हमने अपनी ओर से नहीं कहा कि ये जन्मस्थान है। 1950 से 1989 के दौर से पहले जन्मस्थान को लेकर यह विवाद नहीं था कि वह मस्जिद के भीतर है।

मुस्लिम पक्ष ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की उस रिपोर्ट पर हमला बोला जिसमें सुझाव दिया गया है कि यह ढांचा बाबरी मस्जिद से पहले स्थित था। मुस्लिम पक्ष ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि उसके इस रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है कि इस बात के कोई साक्ष्य नहीं है कि 2.27 एकड़ का विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान था।

मुस्लिम पक्ष ने एएसआई की 2003 की उस रिपोर्ट पर हमला बोला, जिसमें पाए गए अवशेषों, प्रतिमाओं एवं कलाकृतियों के आधार पर यह सुझाव दिया गया है कि बाबरी मस्जिद से पहले एक ढांचा था। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि इसमें पुष्टि योग्य कोई भी निष्कर्ष नहीं है तथा यह अधिकतर आशयों पर अधारित है।

संविधान पीठ ने कहा कि यदि एएसआई रिपोर्ट पर कोई आपत्ति थी तो विरोध करने वाले पक्ष को उसे उच्च न्यायालय के समक्ष उठाना चाहिए था, क्योंकि कानून के तहत कानूनी समाधान उपलब्ध हैं। पीठ ने कहा कि आपकी जो भी आपत्ति हो, भले ही वह कितनी भी मजबूत हो, उसकी सुनवाई हम नहीं कर सकते। पीठ ने दिवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों की चर्चा करते हुए यह बात कही। इन प्रावधानों के तहत स्वामित्व वाले मुकदमे के पक्षकार अदालत के आयुक्त की रिपोर्ट पर आपत्ति उठा सकते हैं।

जिलानी ने हवेनत्सांग की यात्रा का वृतांत बताते हुए विक्रमादित्य के बनाए मंदिर और बौद्ध मठ स्मारकों का अयोध्या में होने का ज़िक्र किया। मंदिरों के इस शहर में सारे मंदिर हिंदुओं के नहीं थे। इस दौरान जिलानी ने 1862 की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें जन्मस्थान को एक अलग मंदिर बताया गया।

यह भी पढ़ें : अयोध्या भूमि विवाद में मुस्लिम पक्ष ने कहा मंदिर तोड़कर नहीं बनाई गई थी बाबरी मस्जिद

रिपोर्ट में कहा गया है कि रामकोट भगवान राम का जन्मस्थान है। इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि उनके गजेटियर में कहा गया है कि रामचबूतरा ही राम का जन्मस्थान है और जो कि केंद्रीय गुंबद से 40 से 50 फीट दूर है। जिलानी ने जवाब दिया कि ये उनका विश्वास है हमारा नहीं है। जिलानी ने कहा कि 1865 में पहली बार निहंग सिख मस्जिद वाली इमारत में जबरन घुसे और पाठ शुरू किया था। मना करने पर वो नहीं हटे तो दरोगा और पुलिस ने उनको जबरन बाहर किया था। तब पहली बार कोई गैरमुस्लिम उस इमारत में उपासना के लिए दाखिल हुआ था।

मुस्लिम पक्ष की दलीलें खत्म होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की तरफ से मीनाक्षी अरोड़ा ने संविधान पीठ के समक्ष कहा कि मस्जिद 1528 से थी, लेकिन वहां पर कई सबूत मिले हैं। कुछ लोगों का विश्वास है कि वहां रामजन्मस्थान था, लेकिन तब 1528 में कुछ हुआ था। मीनाक्षी अरोड़ा ने दलील दी कि हिंदू पक्ष ने जन्मस्थान को लेकर पुरातात्विक सबूतों (एएसआई) को नकार दिया था। हिंदू पक्ष ने कहा था कि पुरातत्व विज्ञान, भौतिकी और रसायन विज्ञान की तरह नहीं है। यह एक सामाजिक विज्ञान है और इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

मीनाक्षी अरोड़ा ने हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया, उन्होंने कहा कि 1885 में जिला जज ने पाया था कि महंत रघुबर दास ने मंदिर बनाया था। मस्जिद ऐसी जगह बनाई गई, जो हिंदुओं के लिए पवित्र थी, इसको 356 साल हो गए हैं। ऐसे में इस मामले में कुछ करने से शांति भंग होगी, इसलिए दोनों पक्ष यथास्थिति बनाए रखें।

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