योगी सरकार को ‘वसूली पोस्टर’ पर सुप्रीम कोर्ट में भी मिली फटकार, मामला बड़ी बेंच में पहुंचा
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 9 मार्च को आदेश दिया था कि यूपी सरकार ने जिन लोगों के पोस्टर लखनऊ में लगाए हैं, उन्हें 16 मार्च से पहले हटा लिया जाए. सरकार ने आदेश का पालन करने के बदले सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी...
जनज्वार। नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में शरीक कथित उपद्रवियों के पोस्टर छापने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को कोई फौरी राहत नहीं दी है. कोर्ट ने यह मामला तीन सदस्यीय बड़ी बेंच को भेज दिया है. अब इस मामले पर अगले हफ़्ते सुनवाई होगी. असल में सोमवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने योगी सरकार को इन पोस्टरों को हटाने का आदेश दिया था. अदालत ने इसके लिए सरकार को 16 मार्च तक की मोहलत दी थी, लेकिन योगी सरकार ने हाई कोर्ट का फ़ैसला मानने के बजाए सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी. इसी अपील पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था.
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सुप्रीम कोर्ट ने भी योगी सरकार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरह ही फटकार लगाते हुए पूछा किस क़ानून के तहत सरकार ने दंगा के आरोपियों का बैनर लगाया? जस्टिस अनुरुद्ध बोस ने कहा कि सरकार क़ानून के बाहर जाकर काम नहीं कर सकती. विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण मामला है. न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या उसके पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है? सीएए विरोधी प्रदर्शकारियों के पोस्टरों पर उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि फ़िलहाल ऐसा कोई क़ानून नहीं है जो आपकी इस कार्रवाई का समर्थन करता हो.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान योगी सरकार ने अपने ऐक्शन का बचाव किया और दलीत दी कि सरेआम बंदूक लहराने वाले दंगाइयों की निजता का सवाल बेमानी है. लेकिन, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस दलील से अदालत संतुष्ट नहीं हुई. इस बीच अदालतत ने तुषार मेहता से पूछा कि क्या जिन लोगों के पोस्टर लगाए गए है उनकी तरफ़ से हर्जाना भरने की अंतिम तारीख़ गुजर चुकी है. जवाब में मेहता ने बताया कि उन लोगों ने हाई कोर्ट में सरकार के इस फ़ैसले को चुनौती दे रखी है.
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यूपी सरकार के इस जवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे में पोस्टर-बैनर लगाने की ज़रूरत क्यों पड़ी, ये बात समझ में नहीं आ रही है. सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल यूपी सरकार को कोई राहत नहीं दी और इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले पर कोई रोक नहीं लगाई है. इलाहादाब हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को ये आदेश दिया था कि क़ानूनी प्रावधान के बगैर ऐसे पोस्टर नहीं लगाये जाएं. अदालत ने आरोपियों के नाम और फोटो के साथ लखनऊ में सड़क किनारे लगाए गये इन पोस्टरों को तुरंत हटाने का निर्देश देते हुये टिप्पणी की थी कि पुलिस की यह कार्रवाई जनता की निजता में अनावश्यक हस्तक्षेप है. अदालत ने लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त को 16 मार्च या इससे पहले अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया था.