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राजनीति

अनुच्छेद 370 को चुनौती देने वाली याचिका पर 2 मार्च को फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट

Janjwar Team
1 March 2020 2:25 PM GMT
अनुच्छेद 370 को चुनौती देने वाली याचिका पर 2 मार्च को फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट
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5 अगस्त की राष्ट्रपति की अधिसूचना ने धारा 370 को निरस्त करके विशेष दर्जा को समाप्त कर दिया था जो कि जम्मू-कश्मीर के राजा और भारत सरकार के बीच हस्ताक्षरित इंस्टूमेंट ऑफ एक्सेशन के द्वारा तब राज्य को दिया गया था...

जनज्वार। जस्टिस एन.वी. रमना की पांच की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ कल 2 मार्च को उस याचिका पर सुनवाई करेगी जिनमें जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती दी गई है।

हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक खंडपीठ ने रविवार को दलीलें सुनीं और इस पर अपना फैसला सुरक्षित रखा कि क्या हाईकोर्ट का 1959 का प्रेमनाथ कौल बनाम जम्मू कश्मीर का फैसला और 1970 में संपत प्रकाश बनाम जम्मू कश्मीर मामले में अनुच्छेद 370 से जुड़ा फैसला एक-दूसरे के 'विरोधाभासी' हैं।

अगस्त की राष्ट्रपति की अधिसूचना ने धारा 370 को निरस्त करके विशेष दर्जा को समाप्त कर दिया था जो कि जम्मू-कश्मीर के राजा और भारत सरकार के बीच हस्ताक्षरित इंस्टूमेंट ऑफ एक्सेशन के द्वारा तब राज्य को दिया गया था।

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हालांकि 370 पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच द्वारा दोनों फैसलों पर विरोधाभासी विचार रखे गए थे। एक 1959 के प्रेम नाथ कौल बनाम जम्मू और कश्मीर राज्य केस में संकेत दिया गया था कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर में 26 जनवरी 1957 को संविधान लागू होने तक लागू था। इसके बाद भारत और जम्मू-कश्मीर के संबंधों में कोई बदलाव नहीं किया जा सका।

लेकिन 1970 के संपत प्रकाश बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य मामले में जो फैसला दिया गया उसमें 1959 के फैसले को नजरअंदराज कर दिया गया और यह निष्कर्ष निकाला कि अनुच्छेद 370 स्थायी थी।

अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी ने तर्क दिया था कि जस्टिस रमना की बेंच अनुच्छेद 370 के उपयोग से संबंधित मामले की जांच करने वाली तीसरी पांच-न्यायाधीश बेंच है। उन्होंने आग्रह किया था कि याचिकाओं को एक बड़ी पीठ के पास भेजा जाए।

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संविधान पीठ ने प्रासंगिक सवाल पूछे थे जिसमें जम्मू और कश्मीर की विलुप्त संविधान सभा को वापस जीवन में लाने के लिए सक्षम अधिकारी भी शामिल था। जम्मू और कश्मीर संविधान आने के साथ ही जनवरी 1957 में संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया था। संविधान सभा ने धारा 370 को निरस्त करने के पक्ष में निर्णय नहीं लिया था कि इससे पहले कि यह भंग हो गई थी।

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