वीडियोकॉन पर 90 हजार करोड़ का कर्ज, इतिहास के सबसे बड़े कॉरपोरेट बैंकरप्सी की संभावना
2015-16 के दौरान भाजपा की सहयोगी शिवसेना को मिले कुल 86.84 करोड़ रुपए के चंदे में से अकेले वीडियोकॉन ने पार्टी को दिया था 85 करोड़ का चंदा, 2017-18 के दौरान वीडियोकॉन ने शिवसेना को दिया कुल 2.83 करोड़ का चंदा...
स्वतंत्र टिप्पणीकार गिरीश मालवीय की टिप्पणी
अब भी 31 प्रतिशत लोगों की आंखें नहीं खुल रही हैं तो इस देश का अब भगवान ही मालिक है। कल 4 अप्रैल की शाम अचानक पता चला कि वीडियोकॉन में बैंकों का फंसा हुआ कर्ज कोई 10 या 15 हजार करोड़ नहीं है, यह रकम 5 गुना से भी अधिक करीब 90 हजार करोड़ है। कल कंपनी रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल ने वीडियोकॉन के विभिन्न वित्तीय संस्थानों के फंसे हुए कर्ज के आंकड़ों को सार्वजनिक कर दिया।
अब कोई इस बात का जवाब दे कि इतनी बड़ी रकम दांव पर लगी थी तो साढ़े चार सालों से यह आंकड़े जनता से क्यों छिपाए जा रहे थे। यदि वीडियोकॉन का ही मामला इतना बड़ा है तो जेट एयरवेज को भी तो दीवालिया घोषित होने से बचाया जा रहा है? क्या यह मामला भी 50 से 60 हजार करोड़ का है?
और भी सैकड़ों बड़ी कम्पनियां जो नोटबन्दी के बाद बर्बाद होकर बन्द हो गयी हैं, उसकी जिम्मेदार कौन लेगा?
न्यूज वेबसाइट ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक वीडियोकॉन के मालिक वेणुगोपाल धूत ने साफ साफ अपने ऊपर चढ़े कर्ज के लिए पीएम मोदी की नोटबंदी को अहम वजह बताया था। उन्होंने कहा था कि 'नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू होने के बाद से टेलीविजन बनाने में काम आने वाले कैथोड रे ट्यूब की सप्लाई पूरी तरह से ठप पड़ गई है। इससे कंपनी को काफी नुकसान झेलना पड़ा और अपना कारोबार बंद करना पड़ा।'
कुछ लोग यह जरूर कहेंगे कि यह कर्ज तो कांग्रेस के टाइम दिया गया होगा? तो वह लोग इस प्रश्न का जवाब जरूर दें कि मोदी सरकार से जब सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कहा था कि बैंकों के फंसे हुए कर्ज पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का पत्र सार्वजनिक कर देना चाहिए तो उन्होंने यह बात क्यों नही मानी, यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट की डिफाल्टरों की पहचान सार्वजनिक करने बात को दबा दिया गया।
साफ है कि डिफाल्टरों द्वारा भारी चन्दा बीजेपी को दिया गया और इन्हीं पैसों से बीसियों शहरों में आलीशान कार्यालय तैयार किये गए। वीडियोकॉन में चल रहे घोटाले के व्हिसल ब्लोअर अरविंद गुप्ता ने 15 मार्च, 2016 को प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखा था। उस पत्र में जिक्र किया गया था कि वेणुगोपाल एन धूत ने साल 2014 के दौरान भारतीय जनता पार्टी चंदा दिया है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड मैनेजिंग डायरेक्टर वेणुगोपाल धूत के भाई राज कुमार धूत शिवसेना से राज्यसभा सांसद हैं। राज्यसभा में उनका तीसरा कार्यकाल चल रहा है।
अखबारों की औकात नहीं है कि छाती ठोककर यह बात बड़ी—बड़ी हेडलाइन में छाप सकें, टीवी की तो बात करना ही बेकार है।
2015-16 के दौरान भाजपा की सहयोगी शिवसेना को मिले कुल 86.84 करोड़ रुपए के चंदे में से अकेले वीडियोकॉन ने पार्टी को 85 करोड़ का चंदा दिया था। 2017-18 के दौरान वीडियोकॉन ने शिवसेना को 2.83 करोड़ का चंदा दिया।
वेणुगोपाल धूत से जब आईसीआईसीआई की चन्दा कोचर के बारे में एक टीवी इंटरव्यू में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं लोन मंजूर करने वाली समिति के सभी 12 सदस्यों को जानते हूं। बैंक के पूर्व चेयरमैन केवी कामत (समिति के प्रमुख) के साथ तो मैं अक्सर लंच करता रहा हूं।
सुधांशु मिश्रा जो सीबीआई की बैंकिंग ऐंड सिक्योरिटीज फ्रॉड सेल के एसपी थे, उन्होंने ही आईसीआईसी-वीडियोकॉन मामले में 22 जनवरी-2019 को चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर, वीएन धूत और अन्य के खिलाफ एफआईआर पर दस्तखत किये थे। उनका तुरंत रांची ट्रांसफर कर दिया गया।
वित्तमंत्री अरुण जेटली जो अमेरिका ने बिस्तर पर पड़े होकर इलाज करवा रहे थे, उसी वक्त एक ब्लॉग लिखा और सीबीआई को 'दुस्साहस' से बचने और सिर्फ दोषियों पर ध्यान देने की सलाह दी थी।
सीबीआई का दुस्साहस यह था कि उसने इस मामले में पूछताछ के लिए बैंकिंग क्षेत्र के जाने-माने दिग्गज के वी कामत और अन्य लोगों से पूछताछ के लिए नामित किया था, आईसीआईसीआई बैंक के सीईओ रहे केवी कामथ, धीरूभाई के जिगरी दोस्त थे और मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच बंटवारे में मध्यस्थता में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने और उनकी शिष्या चन्दा कोचर ने ही सारे कागजात अपनी देखभाल में तैयार करवाए थे।
मोदी सरकार ने के वी. कामत को ‘ब्रिक्स’ देशों द्वारा स्थापित किए जा रहे 50 अरब डॉलर के 'न्यू डिवेलपमेंट बैंक' (एनडीबी) का प्रमुख नियुक्त करवाया है।
90 हजार करोड़ की डिफॉल्टर वीडियोकोन का मामला भारत के बैंकिंग इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा दिवालिया मामला हो सकता है। वीडियोकॉन के इस बड़े खेल में ऐसे ऐसे लोग इन्वॉल्व हैं, जिनके चेहरे से नकाब हटे तो जनता की आंखें फ़टी की फटी रह जाएंगी, मगर मछलियां फंस जाती हैं और मगरमच्छ बच जाते हैं जिन्हें बचपन में मोदी जी बगल में दबाकर अपने घर भी ले आते थे।