राममंदिर मुद्दे पर सिवाय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने के नहीं है कोई विकल्प
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष बोले, हमने उच्चतम न्यायालय में नहीं दिया है केस को वापस लेने का कोई हलफनामा, दूसरा जो हमने मध्यस्थता पैनल से कहा वह नहीं कर सकते हैं उसकी जानकारी सार्वजनिक...
जेपी सिंह
अयोध्या मामले में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ़ के लिए उच्चतम न्यायालय ने सभी पक्षों से अर्ज़ी मांगी है। सुप्रीम कोर्ट संविधान के आर्टिकल 142 और सीपीसी की धारा 151 के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल करता है। 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' का मतलब हुआ कि याचिकाकर्ता ने जो मांग कोर्ट से की है, अगर वो नहीं मिलती है तो विकल्प क्या है जो उसे दिया जा सके। मतलब साफ है अब आधिकारिक न्यायिक मध्यस्थता से फैसला होगा, क्योंकि विवादित भूमि का मालिकाना किसी के पास नहीं है।
अब इस मामले को लेकर गुरुवार 24 अक्टूबर को पांच जजों की पीठ चेंबर में बैठेगी। इसमें मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट को लेकर आगे के रास्ते पर भी विचार हो सकता है।इस मामले पर आने वाले कुछ हफ्तों में फैसला आ सकता है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं, इससे पहले फैसला आने की पूरी उम्मीद है।
इस बीच सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी ने अयोध्या मामले को वापस लेने की खबरों को सिरे से खारिज किया है। जुफर फारुकी ने कहा है कि हमने उच्चतम न्यायालय में ऐसा कोई आवेदन नहीं दिया है, जिसमें यह कहा गया हो कि हम केस को वापस कर रहे हैं। जहां तक मध्यस्थता पैनल का सवाल है, तो जो हमने मध्यस्थता पैनल से कहा है, वह जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं।
जुफर फारूकी ने कहा कि केस वापस लेने का कोई आवेदन उच्चतम न्यायालय में नहीं दिया गया है, जो भी दिया है, वह मध्यस्थता पैनल को दिया है। हालांकि हम इसकी जानकारी नहीं दे सकते हैं कि उसमें क्या कहा है? फारूकी ने बताया कि हमने एक प्रस्ताव सेटलमेंट के रूप में मध्यस्थता पैनल को दिया है। जाहिर है कि मध्यस्थता पैनल ने उसे उच्चतम न्यायालय को भेजा होगा, लेकिन इसके भीतर क्या लिखा है, यह हम नहीं बता सकते है,क्योंकि उच्चतम न्यायालय की गाइडलाइन थी कि मध्यस्थता पैनल की बात सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए।
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दूसरी ओर राममंदिर मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल द्वारा सुझाई गई समझौता योजना हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के लिए ही जीत वाली स्थिति होगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता शाहिद रिज़वी ने कहा कि हमने मध्यस्थता पैनल को अपने विचार दिए हैं, लेकिन हम अदालत में प्रस्तुत किए गए निपटारण योजना का खुलासा नहीं कर सकते हैं। यह सकारात्मक है और सभी लोग, हिंदू और मुसलमान खुश होंगे।
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगातार 40 दिन सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, लेकिन सुनवाई पूरी होने से पहले ही एक खबर तेजी से फैलनी शुरू हो गई, जिसमें दावा किया गया कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से प्रमुख याचिकाकर्ता सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जमीन पर दावा वापस ले लिया है। अब ये भी कहा जा रहा है कि मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट में समझौते की बात कही गई है, लेकिन अभी तक ये सभी दावे हवाई साबित हो रहे हैं।
दरअसल सुनवाई के आखिरी दिन मध्यस्थता समिति ने अपनी रिपोर्ट पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपी, जिसमें 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर राममंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने के लिए तीन शर्तें रखी गई हैं। इन्हें यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड की शर्त के तौर पर भी देखा जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि शर्त में कहा गया है कि(1) धार्मिक स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 को देशभर में लागू कर इसका सम्मान किया जाए।
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद इस कानून के दायरे में नहीं आता है। यह कानून कहता है कि देशभर में धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त, 1947 से पहले जैसी ही कायम रखी जाए। (2)मुस्लिम अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर अपना दावा छोड़ देंगे, लेकिन सरकार को अयोध्या की सारी मस्जिदों का कायाकल्प करवाना होगा। यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड किसी वैकल्पिक स्थल पर मस्जिद बनाएगा। (3) अदालत द्वारा नियुक्त समिति विभिन्न पक्षों की राय जानकर उन मस्जिदों का चुनाव करे जिसे एएसआई मैनेजमेंट के अंदर मुसलमानों के लिए फिर से खोला जा सके।
कहा जा रहा है कि मध्यस्थता समिति की सिफारिश पर यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के अलावा निर्मोही अखाड़े की पैतृक संस्था निर्वाणी अखाड़ा, हिंदू महासभा और रामजन्म स्थान पुनरुद्धार समिति के हस्ताक्षर हैं। हालांकि विश्व हिंदू परिषद समर्थित राम जन्मभूमि न्यास और जमायत उलेमा ने इस पर दस्तखत नहीं किया।
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अयोध्या केस में अकेले यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ही मुस्लिम पक्षकार नहीं है। उसके अलावा भी मुस्लिम पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में दावा ठोंक रखा है। अगर सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता पैनल के जरिए पेश यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड की शर्त पर आगे बढ़ता है तो बाकी मुस्लिम पक्षकार उसका विरोध करेंगे। ऐसे में मुस्लिम पक्ष के बीच ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाएगा। एक तथ्य यह भी है कि अगर शेष मुसलमान पक्षकार भी वक्फ बोर्ड के ऑफर पर सहमत हो जाते हैं तो क्या सारे हिंदू पक्षकार भी इसे मान लेंगे?
ऐसे में उच्चतम न्यायालय के फैसले का इंतजार करने के आलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।