टेस्ट किट्स के अभाव में भारत में नहीं पता लग पा रहे कोरोनावायरस पीड़ितों के कुल मामले
11 राज्यों में किए गए परीक्षणों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद यह बात सामने आई है कि COVID-19 के अधिक मामले भारत के उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आ रहे हैं, जिनके पास लैब्स और किट्स के रूप में अधिक परीक्षण सुविधाएं हैं और जहां अधिक लोगों की जांच की जा रही है...
वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत का विश्लेषण
जनज्वार। हमारे देश में COVID-19 से संक्रमित और मारे जाने वाले लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। 28 मार्च की दोपहर तक संक्रमित लोगों की संख्या 906 तक पहुंच गई है। इनमें से 83 लोगों ने रिकवर कर लिया गया है जबकि 20 लोगों की मौत हो चुकी है। दूसरी ओर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने अपने अंकगणितीय अध्ययन के आधार पर चेतावनी दी है कि अगले 72 घंटे भारत के लिए महत्वपूर्ण होंगे। इस समय के दौरान अगर लोग खुद को पूरी तरह से घर के अंदर नहीं रखते हैं, तो यह बीमारी देश में सामुदायिक संक्रमण के तीसरे स्तर तक पहुंच जाएगी।
वैसे भी विदेशों से भारत आए लोगों के एक अध्ययन के आधार पर आईसीएमआर का अनुमान कहता है कि ऐसी भयानक स्थिति तब भी पैदा हो सकती है जब संक्रमण से प्रभावित लोगों की संख्या दिल्ली में 1 करोड़ और मुंबई में 40 लाख तक पहुंच जाए। दरअसल हमारे देश में कोरोनावायरस से प्रभावित लोगों की संख्या बहुत धीरे-धीरे सामने आ रही है। इसका मुख्य कारण परीक्षण किटों की कमी और जनसंख्या के अनुपात में कम संख्या में परीक्षण किया जाना है।
'इंडिया स्पेंड' नामक संस्था द्वारा 11 राज्यों में किए गए परीक्षणों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद यह बात सामने आई है। इस संस्था की रिपोर्ट में कहा गया है कि COVID-19 के अधिक मामले भारत के उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आ रहे हैं, जिनके पास लैब्स और किट्स के रूप में अधिक परीक्षण सुविधाएं हैं और जहां अधिक लोगों की जांच की जा रही है।
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विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अन्य देशों की तुलना में भारत में कोरोनावायरस से प्रभावित लोगों की संख्या कम होने का एक कारण यह है कि यहां कम सैम्पल्स की जाँच की जा रही है। उनका मानना है कि संक्रमित लोगों की संख्या बहुत अधिक हो सकती है। चीन, अमेरिका, इटली, इंग्लैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में भारत की तुलना में परीक्षण दर बहुत ऊंची हैं। गौरतलब है कि ये ऐसे देश हैं जिनमें कोरोनोवायरस संक्रमित रोगियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है।
अमेरिकी सरकार की COVID ट्रैकिंग परियोजना के अनुसार, अमेरिका ने प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 1,280 परीक्षण किये हैं। वहां लगभग 60,000 लोग संक्रमित पाए गए हैं। जहां तक भारत का सवाल है, अगर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की मानें तो हमारे देश में 25 मार्च को रात 8 बजे तक 24,254 लोगों पर 25,144 परीक्षण किए गए। यानी प्रति 10 लाख आबादी पर केवल 18 परीक्षण। इन लोगों में 581 लोग वायरस से पीड़ित पाए गए।
'इंडिया स्पेंड' की रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि जिन राज्यों में परीक्षण की दर अधिक थी, वहां कोरोनवायरस से पीड़ित लोगों की बड़ी संख्या पाई गई। इसके अनुसार केरल राज्य में 4,516 नमूनों का परीक्षण किया गया और वहां के 101 लोगों में वायरस का संक्रमण पाया गया। महाराष्ट्र ने 18 जनवरी 2020 से कुल 2,144 नमूनों का परीक्षण किया। यहां 101 लोग संक्रमित पाए गए थे। कुछ समय पहले तक संक्रमित लोगों के चार्ट में केरल सबसे आगे था। फिर महाराष्ट्र ने यह खिताब हासिल किया था और अब 27 मार्च को, केरल राज्य एक बार फिर 163 पीड़ितों के साथ पहले स्थान पर पहुंच गया है। जबकि 153 संक्रमित लोगों के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है।
Source: Covid19india.org
गौरतलब है कि हमारे देश में स्थिति विस्फोटक ना हो जाये, इसलिए प्रधानमंत्री द्वारा 21 दिनों के लॉकआउन की घोषणा की गई और लोगों से अपील की गई कि वे घर से बाहर न निकलें। सरकार मानती है कि उसकी जिम्मेदारी इस विश्वास के तहत समाप्त हो जाती है कि 21 दिनों के लॉकआउट से संक्रमण की श्रृंखला टूट जाएगी और फिर खतरा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
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हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे कई मामले हैं जिनकी रिपोर्ट नहीं की गई है और व्यापक परीक्षण के माध्यम से उनकी पहचान करना नितांत आवश्यक है। लेकिन समस्या यह है कि न तो सरकार आवश्यक संख्या में परीक्षण कर रही है और न ही इसके पास बड़ी संख्या में परीक्षण प्रयोगशाला और किट हैं। दूसरी ओर, राज्य सरकारों ने भी परीक्षण की अवधि बढ़ाने में असमर्थता जताते हुए कहा कि उनके पास परीक्षण किटों की कमी है।
16 मार्च को छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री सिंह देव ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखा जिसमें परीक्षण किट की कमी के बारे में शिकायत की गई थी। वहीं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्ष के नेता की परीक्षण सुविधाओं को बढ़ाने की मांग को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि सरकार चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि राज्य में केवल 40 किट ही उपलब्ध हैं। दूसरी ओर परीक्षण का पूरा तंत्र केंद्रीकरण का शिकार हो गया है।
दरअसल, भारत में कोरोनोवायरस परीक्षण की प्रक्रिया इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के निर्देशन में चल रही है। शुरू-शुरू में जब संक्रमण के बारे में कुछ लोगों पर संदेह उत्पन्न हुआ तो उन लोगों का सैम्पल पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (National Institute of Virology) में परीक्षण के लिए भेजा। लेकिन बाद में दूसरी सरकारी लैब्स में इस्तेमाल करने के लिए परीक्षण किट्स के निर्माण की ज़िम्मेदारी भी इस संस्था को दे दी गयी। परिणाम यह हुआ कि परीक्षण प्रक्रिया दौड़ने की बजाय रेंग रही थी। लिहाजा सरकार की आलोचना होने लगी। उधर कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। सरकार ने आईसीएमआर के माध्यम से 17 मार्च को घोषणा की कि प्राइवेट लैब्स भी कोरोनावायरस का परीक्षण कर सकती हैं लेकिन प्राइवेट लैब्स को टैस्टिंग किट्स बाजार से ही खरीदने होंगे।
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इस विवाद का ये फायदा हुआ कि सरकार ने लाइसेंस देने की प्रक्रिया तेज कर दी। प्राइवेट लैब्स को कोरोनावायरस के टेस्ट करने की अनुमति देने के बाद अब प्राइवेट कंपनियों द्वारा बनाये गए 18 परीक्षण किट्स को बेचने की अनुमति दे दी है। इनमें से तीन किट्स पुणे स्थित सरकारी संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी द्वारा संस्तुति प्राप्त हैं लेकिन 15 किट्स को अनुमति विदेशी लाइसेंस के आधार पर दे दी गई है। इन कंपनियों के नाम को लेकर पारदर्शिता भी नहीं बरती जा रही है।
उधर भारत सरकार के कैबिनेट सचिव राजीव गाबा ने यह कह कर केंद्र सरकार का सिर दर्द और बढ़ा दिया है कि विदेश से आने वाले यात्रियों की ठीक से जांच नहीं की गयी थी। उनका मानना है कि इससे कोरोनावायरस के खिलाफ सरकारी प्रयासों को धक्का पहुँच सकता है। गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के पास विदेश से भारत आये 15 लाख यात्रियों की सूची गहन जांच के लिए भेजी है। साफ़ है कि आने वाले दिनों में खतरा अधिक बड़ा रूप ले सकता है।