Begin typing your search above and press return to search.
संस्कृति

इक्कीसवीं सदी का दलित

Prema Negi
23 Aug 2018 1:30 PM GMT
भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करने में 5 साल में 347 लोगों की गई जान, सबसे ज्यादा UP में हुई 47 मौतें
x

भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करने में 5 साल में 347 लोगों की गई जान, सबसे ज्यादा UP में हुई 47 मौतें

नेपाली—हिंदी भाषा की चर्चित तथा लोकप्रिय कवि पवित्रा लामा की कविता 'इक्कीसवीं सदी का दलित'

सीवर के पानी में नहाकर

जूठन से लेकर जीने की ऊर्जा

आँखों में भरकर स्वच्छ भारत की तस्वीर

इक्कीसवीं सदी का दलित

देखता है सपने देश निर्माण की।

फटे नीकर से फटे जूतों तक

गन्दे नालों से खाली फाँकों तक

लबालब बाढ़ से सूखे खेतों तक

लड़खड़ाते सपनों से टूटती दीवारों तक

रख दिल के पास अपना दायाँ हाथ

इक्कीसवीं सदी का दलित

खाता है कसमें देश गढ़ने की।

इक्कीसवीं सदी का दलित, खरीदता है

एक ढीली सी सेकेण्ड हैंड कमीज

ढकता है अपना अस्थि पिंजर सा तन

ताकि उतार न सके कोई उसकी हाइपिक्सेल तस्वीर।

देश की फिक्र पहले, अपनी बाद में करता है

वायरल होती अपनी बेढंगी तस्वीर से डरता है।

एक जून की रोटी के बदले

घुमाता रहता है चौबीस घण्टे

प्रगति का नीला चक्र।

कोई कहे अगर जय जन गण की नहीं,

अधिनायक की होती है

बहुत बहुत बुरा मान जाता है

पहले से भी ऊँची आवाज में

वह जयगान गाता जाता है।

खेलते खेलते साम्प्रदायिकता की गोटियाँ

सेंकते सेंकते राजनीति की रोटियाँ

देश जब थक जाता है

तब गोद में उठा लाता है

एक गंदा सा कुपोषित बच्चा

और कानों में उसकी फूँक देता है

देशभक्ति का अमोघ मंत्र।

देश को मालूम है उसके होने के मायने,

देश को मालूम है उसके होने के फायदे,

सत्ता की बाजी खेलते वक्त,

जब सबकुछ प्रतिकूल बन जाता है

उसकी उपेक्षित उपस्थिति मात्र भी

कैसे तुरूप का पत्ता बन जाता है।

Next Story