उन्नाव बलात्कार के आरोपी विधायक को जेल पहुंचाने वाले पत्रकार की सरकार के दबाव में गयी नौकरी
पहली बार पढ़िए साहसी पत्रकार वीरेंद्र यादव की पूरी कहानी कि कैसे भाजपा के बलात्कारी विधायक और योगी सरकार के दबाव में न्यूज नेशन ने निकाला नौकरी से...
उन्नाव, जनज्वार। उन्नाव रेप कांड में सीबीआई की चार्जशीट ने जहां एक बार फिर ये साबित कर दिया कि न्याय अभी जिंदा है। चार्जशीट में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर बलात्कार का दोषी पाया गया। सीबीआई की रिपोर्ट के बाद पीड़िता और उसका परिवार बेहद खुश भी है, क्योंकि भाजपा का बाहुबली विधायक को उसके घिनौने अपराध के लिए सजा मिलनी तय मानी जा रही है।
इंसाफ की इस जंग में जहां एक पीड़िता को न्याय मिला, वहीं इन सबके बीच एक ऐसा भी चेहरा है, जिसके साथ पूरी तरह अन्याय किया गया। हम बात कर रहे हैं उस पत्रकार की जिसने सबसे पहले पीड़िता के साथ हुई दरिंदगी और भाजपा विधायक और उसके भाई की हैवानियत का सच चैनल पर दिखाया था।
सच दिखाने की एवज में न सिर्फ उसे डराया—धमकाया गया बल्कि न्यूज नेशन चैनल पर दबाव बनाकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने उसके बलात्कार विधायक का सच लोगों को दिखाने के लिए नौकरी से निकाल बाहर कर दिया।
गौरतलब है कि उन्नाव से News Nation चैनल के रिपोर्टर वीरेंद्र यादव ने बिना डरे विधायक के गुंडों की धमकी के बाद भी दरिंदगी का शिकार हुई पीड़िता की आवाज़ को उठाने का काम किया। 3 अप्रैल, 2018 को रात लगभग 9 बजे पत्रकार वीरेंद्र यादव को जब माँखी गांव के रहने वाले पप्पू सिंह पर भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के भाई और उसके गुंडों द्वारा बेरहमी से पीटे जाने की खबर पता लगी तो पत्रकार तुरंत जिला अस्पताल पहुंचा, जहां पुलिस उसे मेडिकल के लिए लाई थी।
पत्रकार वीरेंद्र ने घायल पप्पू सिंह का बयान लिया, जिसमे पप्पू ने अपने साथ हुई मारपीट और बेटी के साथ हुआ दरिंदगी के बाद इंसाफ न मिलने की बात कही। यही नहीं पप्पू ने विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और उसके भाई अतुल सेंगर पर गंभीर आरोप लगाए। कहा कि इन दोनों ने उसकी बेटी का सामूहिक बलात्कार किया है। फिर क्या था खबर पूरी करने के बाद पत्रकार ने पूरी घटना की बाईट के लिए जब तत्कालीन एसपी पुष्पांजलि से बात की तो मामला विधायक से जुड़ा होने पर उन्होंने बात से इनकार कर दिया।
इसी खबर को करने की कीमत चुकाई वीरेंद्र यादव ने नौकरी गंवाकर
दूसरे दिन सुबह 4 अप्रैल, 2018 को चैनल ने जब खबर चलानी शुरू की तो आॅफिस से एसपी उन्नाव पुष्पांजलि की बाईट मांगी जाने लगी, जिसके बाद 4 अप्रैल सुबह 10 बजे फिर उन्नाव एसपी पुष्पांजलि से बाईट के लिए कहा, लेकिन बाईट नही मिली। उसके थोड़ी देर बाद ब्लाक प्रमुख अरुण सिंह का फोन आया और पत्रकार को धमकाते हुए अधिकरियों की बाईट के लिए न कहने की बात कही। फिर क्या था एसपी उन्नाव और विधायक की मिलीभगत की ख़बर पत्रकार वीरेंद्र ने चैनल में बताई, जिसके बाद चैनल ने पूरी खबर प्रमुखता से दिखाई।
9 अप्रैल को हुई बलात्कार पीड़िता के पिता की मौत के बाद पूरा मामले ने तूल पकड़ लिया, जिसके बाद विधायक कुलदीप सेंगर सीबीआई के शिकंजे में आ गया। वहीं विधायक समर्थक लगातार पत्रकार वीरेंद्र को सबक सिखाने की योजना बनाने लगे। इसकी भनक जब पत्रकार को लगी तो उसने 26 अप्रैल को लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सभी को पत्र भेजकर अपने लिए सुरक्षा की मांग की। इसी बीच बौखलाए समर्थकों ने षडयंत्र रचकर पत्रकार को चैनल से बाहर निकलवा दिया और इसमें योगी सरकार के लोगों ने भी उनका पूरा साथ दिया।
जब वीरेंद्र यादव अपने चैनल के सीईओ सर्वेश तिवारी से बात करने नोएडा आॅफिस गया, तो जहां उसे बताया गया कि मुख्यमंत्री योगी के करीबी और मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने इसी खबर को लेकर तुम्हें हटाने ले लिए बोला, इसीलिए हटाया गया।
शासन—प्रशासन से कौन लड़ पायेगा। यानी सत्ता के आगे नतमस्तक हो चुके लोकतंत्र के चौथे स्तंभ ने एक पत्रकार की सच दिखाने के नाम पर बलि दे दी।
पीड़ित पत्रकार ने निर्भीक और सच्ची पत्रकारिता करने की एवज में खुद के साथ हुए अन्याय को लेकर एक पत्र प्रधानमंत्री मोदी को भी लिखा है। इस पत्र की जानकारी जब सीबीआई को हुई तो 4 जुलाई को इंस्पेक्टर अनिल ने पत्रकार वीरेंद्र को मामले की जानकारी के लिए फ़ोन किया और लखनऊ आफिस बुलाया। वीरेंद्र 5 जुलाई को सीबीआई दफ्तर लखनऊ पहुचा, इंस्पेक्टर अनिल ने उनके बयान दर्ज किए।
प्रधानमंत्री के नाम लिखा गया पीड़ित पत्रकार वीरेंद्र यादव का पत्र
यही नही सीबीआई प्रमुख ने वीरेंद्र यादव से बातचीत की और चैनल से हटाए जाने को लेकर शासन स्तर से दबाव की जांच का आश्वासन दिया। इसके बाद सीबीआई प्रमुख ने चैनल मालिक संजय कुलश्रेष्ठ और सीईओ सर्वेश तिवारी से पूछताछ के लिए नोटिस भेजने के आदेश भी दिए।
जो पत्रकार निर्भीक और साहसी पत्रकारिता के लिए सम्मान का हकदार था, उसे डर के कारण चैनल ने नौकरी से निकाल बाहर किया। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया शासन—प्रशासन के आगे किस तरह नतमस्तक है यह उसकी एक बानगी भी है। यह भी कि अगर मीडिया संस्थानों और मालिकान का यह हाल रहा तो कौन पत्रकार साहसिक पत्रकारिता का साहस करेगा, ऐसी परिस्थितियों में वह पीत पत्रकारिता के जाल में ही उलझेगा।