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शिक्षा

75 प्रतिशत स्ववित्तपोषित कॉलेजों में नहीं हैं शिक्षक

Janjwar Team
18 Jun 2018 3:22 PM GMT
75 प्रतिशत स्ववित्तपोषित कॉलेजों में नहीं हैं शिक्षक
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प्रतीकात्मक फोटो

योगीराज में शिक्षकविहीन महाविद्यालयों में पिछले साल से ही दिखावटी दबाव बनाने का सुनियोजित ड्रामा बड़े बहुत सुंदर तरीके से खेला जा रहा है....

हरेन्द्र कुमार राय

गोरखपुर, जनज्वार। उत्तर प्रदेश में सत्तासीन योगी सरकार की खासियत है कि वह जनता के असल मुद्दों को सामने नहीं आने दे​ती। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। इससे इसी बात से समझा जा सकता है कि 75 स्ववित्तपोषित कॉलेज शिक्षकविहीन हैं, मगर योगी सरकार दावा करती है कि वह उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा को समग्र रूप से सुधार रही है।

पूर्व कुलपति एवं महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो. यूपी सिंह ने कहा कि प्रदेश के स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों में 80 से 90 फीसदी विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, मगर उच्च शिक्षण संस्थानों को कहीं भी प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है। विश्वविद्यालयों की कार्य परिषद, विद्या परिषद, पाठ्यक्रम समिति, प्रवेश समिति, परीक्षा समिति में स्ववित्तपोषित ​महाविद्यालयों के अध्यापकों का न होना बहुत दुखद है।

यह बात प्रो यूपी सिंह ने महायोगी गुरु गोरखनाथ योग संस्थान एवं महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के साप्ताहिक योग प्रशिक्षण शिविर में 16 जून को महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों के संस्थापकों को संबोधित करने के दौरान कही।

यहां यूपी सिंह यह भूल गए कि उपरोक्त् समितियों में स्ववित्तपोषित शिक्षकों का चयन करना भी है तो आधार क्या बनायेंगे? जब कोई अर्हता प्राप्त शिक्षक स्थायी रूप से कार्यरत ही नहीं होते हैं तो यह किस आधार पर होगा। यूपी सिंह विद्वान हैं, मंदिर के माध्यम से समाज सेवा में भी सहयोग कर रहे हैं। योगी जी का सहयोगी और सम्पर्क में होने के कारण कायदे से उन्हें यह बात उठानी चाहिए थी कि स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में संस्तुत पदों पर स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए और ऐसा डेटाबेस प्रदेश स्तर पर बनना चाहिए, जिससे एक व्यक्ति एक ही महाविद्यालय में शिक्षक बन सके।

मगर बजाय इसके यूपी सिंह प्रदेश में स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों की बदहाली को कितनी चालाकी से दरकिनार कर गए, यह काबिलेगौर था। स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों की बदहाली से प्रदेश का बच्चा—बच्चा वाकिफ है, वैसे में यूपी सिंह का यह कहना कि स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों के शिक्षकों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, सिवाय एक भद्दे मजाक के कुछ नहीं है। क्योंकि वो इस से भली—भांति परिचित हैं कि प्रदेश के 75 फीसदी स्ववित्तपोषित कॉलेज बिना शिक्षकों के चल रहे हैं। यहां बात सिर्फ यूपी सिंह की नहीं है, इस सरकार की ही यह खासियत है कि वह जनता को असली मुद्दे पर आने ही नहीं देती।

प्रदेश में उच्च शिक्षा के केंद्र स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों में केवल प्रवेश और परीक्षाएं होती हैं। लेज़र विधि से सभी परीक्षार्थियों को अच्छे अंक भी प्राप्त होते हैं, मगर यह सब होता है बिना शिक्षकों के पढ़ाए लिखाए, क्योंकि 75 स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में शिक्षक ही नहीं हैं।

सवाल उठता है कि उपरोक्त समितियों में चयन करना भी है तो आधार करता बनायेंगे? जब कोई अर्हता प्राप्त शिक्षक स्थायी रूप से कार्यरत ही नहीं होते हैं तो किसे बनायेंगे। यह तो और बात है। स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में संस्तुत पदों पर स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए और ऐसा डेटाबेस प्रदेश स्तर पर बनना चाहिए, जिससे एक व्यक्ति एक ही महाविद्यालय में शिक्षक बन सके।

प्रदेश के 75% महाविद्यालयों में शिक्षण हेतु शिक्षक नहीं हैं। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सम्बद्धता प्राप्त करने वाले तथाकथित शिक्षाविद और समाजसेवी प्रबंधकों का विश्वविद्यालयों के अधिकारियों-कर्मचारियों पर इतना प्यार और प्रभाव रहता है कि उनकी मिलीभगत से सबकुछ मशीनी रूप से संचालित होकर सम्पन्न हो जाता है। विद्वान और अति ईमानदार कुलाधिपति और शिक्षा मंत्री भी सभी परिस्थितियों से भलीभांति अवगत हैं। यह लोग भ्रष्टाचार के इस खेल में या तो बखूबी सम्मिलित हैं या इनके सामने लाचार और नतमस्तक हैं।

निरक्षर डिग्रीधारकों की फौज पैदा करने वाले यह महाविद्यालय और इसके लिए जिम्मेदार शिक्षा मंत्री, कुलाधिपति, माननीय मुख्यमंत्री और शासन के अधिकारी अब इस मामले से बच नहीं सकते और निरक्षर डिग्री धारकों की यह फौज प्रदेश के निर्माण में अराजकता और अशांति का वातावरण ही निर्मित करेंगे।

इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि इस व्यवस्था में कड़ा सुधार किया जाए और इसी की मांग भी सब तरफ़ से होनी चाहिए। कुलाधिपति महोदय भी प्रत्येक विश्वविद्यालय में कन्वोकेशन कराकर अपनी पीठ स्वयं ठोंक लेते हैं और अपने कर्त्तव्य की पूर्ति मान लेते हैं। उन्हीं के द्वारा नियुक्त कुलपतियों के संरक्षण में यह सारा खेल चल रहा है। शिक्षकविहीन महाविद्यालयों में पिछले साल से ही दिखावटी दबाव बनाने का सुनियोजित ड्रामा बड़े सुंदर तरीके से खेला जा रहा है।

इन्तजार है उच्च शिक्षा के अच्छे दिन आने का, देखते हैं यह कब आते हैं?

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