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अर्बन नक्सल का नारा गढ़ती भाजपा सरकार और राज्यवाद फैलाते मोदी
![अर्बन नक्सल का नारा गढ़ती भाजपा सरकार और राज्यवाद फैलाते मोदी अर्बन नक्सल का नारा गढ़ती भाजपा सरकार और राज्यवाद फैलाते मोदी](https://janjwar.com/h-upload/old_feeds//178597-8JLPMUsigkYrFR2HCUOeN4PSuYiDQ0.jpg)
चरखे के साथ फोटो खिंचाने, आईएनए की टोपी पहनने, मूर्ति बनवा लेने से या फिर लगातार विपक्ष को कोसने को अगर विकास कहते हैं तो यह सिवाय मानसिक दिवालियापन के कुछ नहीं है....
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की तल्ख टिप्पणी
एक अरसा बीत गया सच को सुने हुए। पहले प्रधानमंत्री या मंत्री कोई भी वाक्य या आंकड़े अपने भाषणों में कहते थे तब उसी को पत्थर की लकीर माना जाता था। वही आंकड़े अगले दिन समाचार पत्रों में आते थे और फिर सभी उन आंकड़ों को या तथ्यों को पूरी तरह सत्य माना जाता था। आंकड़ों या तत्थ्यों पर बहस होती थी, पर ये सही हैं या गलत इस पर कभी बहस नहीं होती थी, पर अब दौर पूरी तरह बदल चुका है।
दिनभर दरबारी टीवी चैनल या पिट्ठू समाचार पत्र, वेबसाइट या भक्तों की फ़ौज जिस आंकड़े या तथ्यों को दिखाती है उस पर भी कोई भरोसा नहीं करता। हमारे देश की अर्थव्यवस्था के आंकड़े इसके उदाहरण हैं।
किसी भी आंकड़े को देखें तो पायेंगे कि प्रधानमंत्री कुछ कहते हैं, वित्त मंत्री कुछ और कहते हैं, गृह मंत्री कुछ अलग कहते हैं, पार्टी अध्यक्ष अपना अलग दावा करते हैं, और इन सबके बाद रिज़र्व बैंक सांसें अलग कहता है. पता नहीं किसपर भरोसा करें और नहीं करें, हां पार्टी प्रवक्ता भी कुछ अलग ही सब्जबाग दिखाते हैं।
रोजगार के आंकड़ों का भी यही हाल है। इस समय बेरोजगारों की पूरी फ़ौज खडी है और प्रधानमंत्री जी समय-समय पर अपनी सुविधा के अनुसार रोजगार के आंकड़े पेश करते रहते हैं। फिर कहते भी हैं, रोजगार के आंकड़े जुटाने पड़ेंगे, इसके आंकड़े हैं ही नहीं। सैमसंग की नॉएडा में फैक्ट्री के उदघाटन के समय रोजगार के आंकड़ों की बाजीगरी तो पूरे देश ने देखी थी।
प्रधानमंत्री जी ने कहा, इस फैक्ट्री से 20000 लोगों को रोजगार मिलेगा, राज्य के मुख्यमंत्री ने कहा 5000 लोगों को रोजगार मिलेगा और फिर अंत में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने कहा इस फैक्ट्री में महज 2000 लोगों को रोजगार मिलेगा। नोटबंदी के आंकड़ों की लीपा-पोती तो हम लगातार देखते आये हैं।
नोटबंदी के समय फायदे ही फायदे गिनाये गए थे, इससे आतंकवाद ख़तम होना था। हो सकता है सरकार की नजर में यह ख़त्म भी हो गया हो पर हरेक दिन तो हम जम्मू कश्मीर में सैनिकों की मौत देख रहे हैं। बीच-बीच में राज्यों में नक्सली हमले भी हो जाते हैं, पर सरकार तो अर्बन नक्सल का नया नारा गढ़ रही है।
अभी अपने देश में, जहां दुनिया में सबसे अधिक भूखे लोग हैं और प्रदूषण से मरने वाले भी, जब सरदार पटेल की तथाकथित दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा लगेगी तब हवा में हाथ लहराकर भी बहुत सारे आंकड़े और तथ्य सुनने को मिलेंगे। यह तथ्य जरूर होगा कि जिन्होंने 60 वर्ष तक शासन किया उन्होंने एक परिवार को छोड़कर किसी और नेता का नाम लोगों को नहीं याद रहने दिया। यही, पिछले चार वर्षों से सबको बताया जा रहा है।
पर, जरा सोचिये क्या हमें सरदार पटेल, सुभाष चन्द्र बोस या फिर लोकमान्य तिलक का नाम नहीं मालूम है, या फिर इस सरकार के आने के बाद ही हमें ये नाम पता चले हैं? हंसी तो तब आती है, जब हम यह सब ऐसे लोगों से सुनते हैं, जो हरेक समय राष्ट्रवाद नहीं बल्कि राज्यवाद की बात करते नहीं अघाते हैं। याद कीजिये, मैं असम की चाय बेचता हूं, इसलिए असम का हूं; गुरु नानक जी के पंचप्यारों में एक गुजराती भी थे इसलिए मैं पंजाब का हूं; हिमालय घूमकर आया हूं इसलिए हिमाचल और उत्तराखंड का हूं। कभी सुना है, मैं भारत का हूं?
जरा सोचिये, सरदार पटेल जब ऊंचाई से देश की भूखी-नंगी जनता को देखेंगे, नर्मदा के बेहाल विस्थापितों को देखेंगे, आदिवासियों की भूमि पर पूंजीपतियों का अधिपत्य देखेंगे, बेरोजगारे देखेंगे, तब कितने खुश होंगे? क्या ऐसा ही उनके सपनों का भारत था जिसमें करोड़ों लोग भूखे रहते हैं और करोड़ों की मूर्तियां खड़ी कर दी जाती हैं?
गांधी जी, नेता जी और सरदार पटेल को अगर सही में याद करना है तो देश को उनके सपनों के अनुकूल बनाना होगा – चरखे के साथ फोटो खिंचाने से, आईएनए की टोपी पहनने से, मूर्ति बनवा लेने से या फिर लगातार विपक्ष को कोसने से कुछ लोग यदि सोचते हैं कि विकास हो गया, तब इसे मानसिक दिवालियापन से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता।