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समाज

कोर्ट ने 9 दिन में सुनाई बलात्कारी को उम्रकैद की सजा, लगाया 2 लाख का अर्थदंड

Prema Negi
3 Sep 2019 5:13 AM GMT
Uttar Pradesh Crime News : 4 वर्षीय मासूम को तांत्रिक ने दुष्कर्म के बाद जंगल में फेंका, इलाज के दौरान बच्ची की मौत
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Uttar Pradesh Crime News : 4 वर्षीय मासूम को तांत्रिक ने दुष्कर्म के बाद जंगल में फेंका, इलाज के दौरान बच्ची की मौत

चार साल की बच्ची के बलात्कार मामले में इतिहास दर्ज करते हुए 20 दिन में आरोप पत्र और 9 दिन में सुनवाई के बाद उत्तर प्रदेश के औरेया की एक विशेष अदालत ने दिया फैसला

जेपी सिंह की रिपोर्ट

त्तर प्रदेश के औरैया में चार साल की मासूम से बलात्कार मामले में कोर्ट ने 29 अगस्त को सुनवाई करते हुए सिर्फ 89दिन की सुनवाई कर बलात्कारी को उम्रकैद की सजा सुनायी है और 2 लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया है। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश चौधरी ने यह फैसला सुनाया। पुलिस ने मासूम बलात्कार मामले में 20 दिन के अंदर अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी पाक्सो अधिनियम, 2012 के तहत सजा का आदेश पारित कोर्ट ने एक रिकॉर्ड स्थापित करते किया है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और पोक्सो की धारा 5 और 6 के तहत 19 साल के श्यामवीर के खिलाफ एक अगस्त 2019 को एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें उस पर आरोप था कि उसने अपने घर में 4 साल की बच्ची का यौन उत्पीड़न किया। प्राथमिकी में खुलासा किया गया कि उसने बच्ची का यौन शोषण किया था, जिसके परिणामस्वरूप बच्ची को गंभीर रक्तस्राव हुआ। खून से लथपथ बच्ची किसी तरह घर पहुंची और मां को व्यथा सुनायी। बच्ची के पिता की शिकायत मिलने पर पुलिस ने आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया और धारा 161 सीआरपीसी के तहत पीड़िता का बयान दर्ज किया। तहरीर पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर आरोपित को कोर्ट में पेश किया था।

पुलिस ने 20 दिनों के भीतर जांच पूरी करने के बाद, 20 अगस्त 19 को "उत्तर प्रदेश राज्य बनाम श्यामवीर" के मामले में विशेष पाक्सो कोर्ट के समक्ष आरोप पत्र दायर किया गया। अदालत ने दिनांक 21 अगस्त को उपर्युक्त प्रावधानों के तहत आरोप तय किए और केवल 8 दिनों में ट्रायल को तेजी से पूरा किया। जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश चौधरी ने 29 अगस्त को सजा का आदेश पारित किया।

धारा 313 सीआरपीसी के तहत अभियुक्त का बयान दर्ज किया गया, जिसमें उसने सभी आरोपों से इनकार किया। आरोपी ने कहा कि उक्त प्राथमिकी, शिकायतकर्ता के निजी प्रतिशोध से प्रेरित थी। इसके अलावा उसने यह दावा किया कि पीड़िता महज 4 साल की बच्ची थी और उसके बयानों पर अदालत द्वारा भरोसा नहीं किया जा सकता था।

भियुक्तों द्वारा दिए गए तर्कों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि पाक्सो की धारा 29 के प्रावधान में यह कहा गया है कि जब किसी व्यक्ति पर पाक्सो की धारा 3, 5, 7 और 9 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया जाता है तो अदालत, अपराध साबित होने तक यह मान लेगी कि अभियुक्त ने उक्त अपराध किया था।

दालत ने कहा कि अभियुक्त ने उसके और शिकायतकर्ता के बीच दुश्मनी के बारे में गवाही देने के लिए कोई गवाह नहीं पेश किया। चूंकि अभियोजन पक्ष के एक गवाह ने अपराध के आरोप के समय से पहले पीड़िता के साथ आरोपी को देखा था, इसलिए उसके द्वारा अपराध किये जाने के प्रति संदेह बढ़ गया और अदालत ने इसे विजय रायकवार बनाम मध्य प्रदेश राज्य, (2019) 4 SCC 210 के मद्देनजर एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में माना।

रोपियों द्वारा उठाए गए दूसरे विवाद को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के अनुसार एक बच्चा एक सक्षम गवाह हो सकता है। इसको लेकर गुल सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य 2015 (88) एसीसी 358 (एससी) के मामले पर अदालत ने भरोसा किया। अदालत ने यह पाया कि अदालत में पीड़िता/बाल गवाह द्वारा दिए गए बयानों की, पुलिस के सामने दिए उसके बयानों के साथ अच्छी तरह से पुष्टि की गई थी।

स संबंध में अदालत ने कहा कि यदि बाल गवाह का बयान, यथोचित जांच के बाद, अदालत के आत्मविश्वास को प्रेरित करता है, तो सजा इस तरह के बयान पर आधारित हो सकती है। इसको लेकर सुदीप कुमार सेन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2016) 3 एससीसी 26 के मामले पर अदालत ने भरोसा किया। अदालत ने गंगा सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य, एआईआर 2013 एससी 3008 के मद्देनजर यह भी कहा कि केवल इसलिए कि किसी अन्य व्यक्ति ने अपराध को होते हुए नहीं देखा था, अभियोजन पक्ष की क्रेडिट-योग्यता को चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

दालत की यह राय थी कि घटना के बारे में अपनी मां को सूचित करने का पीड़िता का तुरंत बाद का आचरण, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 8 के तहत प्रासंगिक था। इसको लेकर असम राज्य बनाम रामेन डावराह, (2016) 3 एससीसी 19 के मामले पर अदालत ने भरोसा किया।

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