उत्तराखंड सरकार ने पूंजीपतियों के लिए जमीन खरीद के खोले द्वार, आम लोगों की जमीन बेदखली पर साधी चुप्पी
उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने पूंजीपतियों के सामने फिर एक बार साबित किया है कि उनके असली आका संसाधनों के लुटेरे ही हैं, आम जनता का उनके लिए न कोई महत्व है, न कद्र....
मुकुल, वरिष्ठ मजदूर नेता
जनज्वार। उत्तराखंड सरकार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह किसके पक्ष में खड़ी है। पिछले दिनों उत्तराखंड में इन्वेस्टर समिट का आयोजन हुआ। इस आयोजन से 1 दिन पूर्व आनन-फानन में प्रदेश मंत्रिमंडल ने पर्वतीय क्षेत्र में भूमि खरीद के लिए विशेष अध्यादेश लाने को मंजूरी दे दी। ऐलान किया कि अब पहाड़ में कहीं भी कोई भी जमीन कोई भी उद्योगपति जब चाहे खरीद सकता है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड भूमि कानून के तहत बाहरी लोगों को राज्य में जमीन खरीदने पर पाबंदी रही है। इस संशोधन के साथ केवल पूंजीपतियों के लिए ही जमीन को खरीदने छूट दी गई है।
ठीक जिस वक्त उत्तराखंड की भाजपा सरकार पूंजीपतियों के लिए भूमि कानून बदल रही थी, उसी समय राज्य के उधमसिंह नगर जिले के रुद्रपुर और खटीमा क्षेत्र के हजारों परिवार के सिर पर बेदखली की तलवार लटक गई।
दरअसल, राज्य में दशकों से रहने वाली आबादी को नैनीताल हाईकोर्ट ने बेदखल करने के लगातार कई फरमान सुनाए हैं। इसमें पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार हो या वर्तमान भाजपा सरकार किसी ने भी ठीक से पैरवी नहीं की। बसी आबादी के पक्ष में कोई तर्क नही दिया गया, केवल कथित पुनर्वास का कमजोर तर्क देकर पल्ला झाड़ लिया और आदेश पारित करने दिया।
हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार द्वारा नजूल नीति संशोधन से पूरे प्रदेश के करीब 20 हजार एकड़ नजूल भूमि अवैध कब्जेदारों के पक्ष में फ्री होल्ड हुई है। इसमें 1900 एकड़ भूमि केवल नगर निगम रुद्रपुर में है।
उल्लेखनीय है कि रुद्रपुर शहर का 70 से 80 फ़ीसदी हिस्सा नजूल भूमि पर बसा हुआ है, जहां कई परिवार तो अपनी तीसरी-चौथी पीढ़ी के साथ रह रहे हैं। नैनीताल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में 19 सौ एकड़ जमीन में बसे इस पूरी आबादी को मवाली, गुंडा और अपराधी करार देते हुए उनसे तत्काल जमीन खाली कराने का आदेश दे दिया। उसने राज्य सरकार द्वारा नजूल एक्ट में 2009 में किए उस संशोधन को भी खारिज कर दिया, जिसके तहत जिन्होंने ज़मीने फ्री होल्ड कराई थीं, वे भी अवैध घोषित हो गए। यहाँ न्यायपालिका ने विधायिका के क्षेत्र का अतिक्रमण किया, लेकिन सरकार ने कोई प्रतिवाद नही किया।
राज्य सरकार ने जितनी तत्परता पूंजीपतियों के लिए दिखाई उसके एक छोटे हिस्से की भी तत्परता यदि आम जनता के प्रति दिखती तो उत्तर प्रदेश नजूल एक्ट 1973 में संशोधन पारित करती और जिस जमीन पर जो परिवार रह रहा है, वह उसके नाम हो सकता था।
यहां स्पष्ट है कि भी पूंजीवादी मुनाफाखोर व्यवस्था में आम मेहनतकश ग़रीब जनता के आवास की कोई गारंटी नहीं होती। इसके विपरीत उसको बेदखल करने का सिलसिला चलता रहता है। ठीक वहीं पूंजीपतियों के लिए उनकी मनमर्जी के अनुसार जमीन से लेकर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए हर रुकावट को दूर करने की तत्परता बनी रहती है। ताजा उदाहरण से भी इसे समझा जा सकता है।
दो दिन के इन्वेस्टर्स समिट में केंद्र व राज्य, दोनो सरकारों ने कहा- राज्य तैयार है, सस्ता श्रम और सस्ते प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं। आओ निवेश करो, मुनाफा कमाओ और मनमर्जी लूटकर पलायन कर जाओ!
नैनीताल हाई कोर्ट का नजूल नीति पर मुख्य फैसला 19 जून 2018 को आया था। इसके बाद जुलाई व अगस्त में DM व आवास सचिव को कोर्ट ने तलब करके ध्वस्तीकरण का निर्देश दिया।