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उत्तराखंड: लॉकडाउन से अल्मोड़ा के सुदूरवर्ती गांवों के दिहाड़ी मजदूरों को नहीं मिल रहा राशन

Nirmal kant
5 May 2020 3:31 PM IST
उत्तराखंड: लॉकडाउन से अल्मोड़ा के सुदूरवर्ती गांवों के दिहाड़ी मजदूरों को नहीं मिल रहा राशन
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दिहाड़ी मजदूर भुवन चंद्र बताते हैं कि किसी ने कहा कि रोड पर राशन मिल रहा है और मैं दौड़ते हुए चला आया। लेकिन वहां जाकर पता चला कुछ भी नहीं मिल रहा है। मैने कल से खाना नहीं खाया। घर में 7 लोग हैं खाने वाले। पांच बच्चे और हम दो पति-पत्नी। गांव में बहुत से ऐसे परिवार हैं जो भूखे भी सोए हैं...

अल्मोड़ा से विमला की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सुदूरवर्ती पनुवाघोखन गांव के ग्रामीणों ने कहा कि लॉकडाउन के चलते उन्हें किसी भी सरकारी सहायता योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि 10 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस गांव में ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं जो दिनभर मजदूरी करके शाम को दो वक्त का खाना जुटा पाते हैं। लॉकडाउन के कारण काम न मिल पाने से बहुत से घरों में चूल्हा भी नहीं जल रहा है।

कैलाश राम कहते हैं, 'मैं दिहाड़ी मजदूर हूं जब दिनभर मजदूरी करता हूँ तब कहीं जाके अपने बच्चों के लिए दो वक्त के खाने का इंतजाम कर पाता हूं। लॉकडाउन को एक महीने से भी ऊपर हो गया है। ना तो काम है ना ही सरकार से कोई सहायता मिल रही है। पहाड़ों में खेती-किसानी तो पहले ही चौपट है।

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ह आगे बताते हैं, 'गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने के बावजूद हमारा राशनकार्ड ए.पी.एल. में बना है। मेरा ही नहीं बल्कि लगभग 50 परिवार हैं जो दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, उनको ए.पी. एल की श्रेणी में रखा गया है। एक डेढ़ महीना बीत जाने के बाद भी हमें सरकारी सहायता के नाम पर ढाई किलो चावल और पांच किलो गेहूं मिला है। कन्ट्रोल से वो भी 12 व 15 रुपये दर पर। यहां से मुख्य बाजार भतरोजखान 16 कलोमीटर दूर है। गाड़ी नहीं होने के कारण वहां जाना संभव नहीं है, स्थानीय बाजार भी लगभग 10 किलोमीटर दूर है। यहां भी दुकानदार दोगुने-तिगुने कीमत पर सामान दे रहे हैं, वो भी उस को ही मिलता है जिसके पास पैसे हों।'

दूसरे दिहाड़ी मजदूर मोहन राम कहते हैं कि कुछ समय पहले उधार सामान लाया था जिससे कुछ दिन गुजर बसर हो पाया। अब दुकानवालों ने भी देना बंद कर दिया है। वो कहते हैं पहले पैसे दो तब ही मिलेगा। खेती-बाड़ी होती नहीं, जानवर (बकरी) के भी खरीददार नहीं मिल रहे हैं। इस लॉकडाउन ने हमारा जीवन तो जैसे छीन ही लिया है।

भुवन चंद्र बातचीत में बताते हैं कि किसी ने कहा कि रोड पर राशन मिल रहा है और मैं दौड़ते हुए चला आया। लेकिन वहां जाकर पता चला कुछ भी नहीं मिल रहा है। वह आगे कहते हैं कि मैने कल से खाना नहीं खाया। केवल आधी रोटी खायी है। घर में सात लोग हैं खाने वाले। पांच बच्चे और हम दो पति-पत्नी। वह यह भी कहते हैं कि मुझे तो आधी रोटी मिली पर गांव में बहुत से ऐसे परिवार हैं जो भूखे भी सोए हैं। प्रधानमंत्री ने जनधन खाते में 500 रुपये डालने की बात कही थी वो भी हम गरीबों को नहीं मिला।

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ता दें कि केन्द्र सरकार द्धारा जारी आकडों के अनुसार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत 33 करोड़ से भी ज्यादा गरीबों की मदद की गई है। आकड़ों के मुताबिक 31,235 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गयी है। किसान और महिलाओं के जनधन खातों में 500 रुपये,जो 20,05 करोड़ महिला जनधन खाता धारकों को सीधे पैसा ट्रांसफर किया गया है। 22अप्रैल तक के आकडों के हिसाब से 10,025 करोड़ रुपये विवरण किए गए हैं लेकिन पहाड़ों के सुदूरवर्ती गांव तो आज भी भूखे हैं।

कुमार कहते हैं कि गांव के लोगों के लिए राशन की व्यवस्था करने के सम्बंध में मैने अल्मोड़ा के जिलाधिकारी को एक पत्र 19 अप्रैल को भेजा गया था। उसके बाद भी गांव में किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है। जगदीश कुमार आगे बताते हैं कि हमारा दलित गांव हैं। यहां एक भी परिवार सवर्ण नहीं है। हम दलित और पिछड़े लोगों के साथ सरकार इस तरह क्यों भेदभाव करती है पता नहीं।

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