Lockdown में खाली टाइम का गांववालों ने किया इस्तेमाल, 3 किलोमीटर लंबी सड़क का किया निर्माण
गांव को मुख्यमार्ग से जोड़ने वाली सड़क पर अभी दो पहिया वाहन आसानी से आने जाने लगे हैं और जल्द ही फोर व्हीलर वाहनों के सफर की तैयारी भी जोरों पर है...
हल्द्वानी से संजय रावत की रिपोर्ट
नैनताल, जनज्वार: लॉक डाउन के दौरान घरों में बंद जीवन मनोविज्ञान के हिसाब से बहुत कष्टकारी है जो आम आदमी को अवसाद की चपेट में लेते जा रहा है । ऐसे में रचनात्मकता बड़ा सहारा है विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का ।
इसी सहारे को हथियार बना कर उत्तराखंड में नैनीताल जनपद के खड़की गांव ( नॉकुचियताल ) वासियों ने पहाड़ खोद सड़क बना डाली । इस सड़क पर अभी दो पहिया वाहन आसानी से आने जाने लगे हैं और जल्द ही चौपहिया वाहनों के सफर की तैयारी भी जोरों पर है. खड़की गांव से मुख्यमार्ग को जोड़ने वाले इस मोटरमार्ग की लंबाई ग्रामवासियों ने तीन किलोमीटर बताई है ।
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ग्रामवासी बताते हैं कि करीब दस वर्ष पूर्व ब्लॉक प्रमुख हरीश द्वारा 6 लाख की लागत से इस पगडंडी का निर्माण कराया गया था जो देख रेख, रख रखाव और आवजाही के अभाव में झाड़ झंकाड़ और दरकते पहाड़ के मलवे से बंद हो चुकी थी ।
लॉक डाउन के दौरान ग्रामवासियों ने मिल कर इसके पुनर्निर्माण की योजना बनाई और श्रमदान शुरू कर दिया । लॉक डाउन में नैनीताल जिला रैड जोन में आने के चलते यहां सुबह 7 बजे से दिन में 1 बजे तक कि छूट है.
छूट के इस समय के दौरान ग्रामवासियों के करीब 40 परिवारों ने मिल कर सोशियल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए श्रमदान किया और मोटरमार्ग का निर्माण कर दिखाया जिसमें वाहनों की आवाजाही भी शनिवार से शुरू हो चुकी है ।
जहां लोग प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत सड़कों की बाट जोहते रहते है वहां इन ग्राम वासियों ने लॉक डाउन में समय का सदुपयोग करते हुए वो सराहनीय कार्य कर दिखाया जिसकी चर्चा गांव गांव होने लगी है ।
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लॉक डाउन के दौरान इस तरह ऊर्जा के सदुपयोग पर हमने मनोवैज्ञानिक डॉ युवराज पंत से बात की तो उन्होंने कहा, 'लॉक डाउन मानसिक स्वास्थ्य की नजर से है तो कष्टकारी, मगर हर आदमी अपनी मष्तिष्क और व्यक्तित्व की बनावट के हिसाब से इससे लड़ता और पार पाता है । यहां ये सामुहिक रूप से हुआ है ये बहुत आशाजनक बात है ।'
डॉ. पंत ने कहा कि कुछ लोग मानसिक तनाव से निजात पाने को अपनी ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करते हैं इसका फायदा यह होता है कि शारीरिक श्रम हमारे शरीर में स्ट्रेस हार्मोन्स को कम कर हैप्पी हार्मोन्स का सेक्रेशन बढ़ता है जिससे पोजेटिव इंफोर्समेंट होता है । इससे एक फायदा और होता है वह यह कि रचनात्मक कार्य के बाद हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है जो दूसरे कामो को अंजाम देने में उत्प्रेरक का काम करता है ।
उन्होंने कहा, 'आपने देखा होगा जो लोग श्रम करते हैं, दौड़ाते हैं या स्पोर्स में होते हैं वो औरों की बनस्पत ज्यादा खुश या संतुलित होते है, और ये पहाड़ में आम बात भी है । बहरहाल ये खबर लॉक डाउन में अवसाद से बाहर लाने वाली है और दूसरों को प्रेरित करने वाली है कि हम अपनी ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग कर स्ट्रेस से बच भी सकते हैं.'