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राजनीति

प्रधानमंत्री मोदी की इस चुप्पी के क्या हैं मायने

Prema Negi
22 May 2019 4:43 PM IST
प्रधानमंत्री मोदी की इस चुप्पी के क्या हैं मायने
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लोकसभा चुनाव खत्म होते ही उद्योगपति अनिल अंबानी का भी हृदय परिवर्तन होता दिख रहा है। राफेल सौदे पर एक लेख को लेकर कांग्रेस नेताओं और नेशनल हेराल्ड के खिलाफ दायर अहमदाबाद की अदालत में दर्ज 5000 करोड़ का मानहानि का मुकदमा उन्होंने वापस लेने का फैसला किया है। आखिर इस क्षमा भाव पीछे कौन सी भावना है? क्या अंबानी को सत्ता परिवर्तन की आहट मिल रही है...

जेपी सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

अंबानी ने राहुल गांधी पर से केस वापस लिया। मुलायम और अखिलेश को सीबीआई की क्लीन चिट मिली। देश के बड़े अखबारों ने स्वीकार किया कि भारतीय वायु सेना ने अपना हेलीकॉप्टर खुद गिराया। गुलाम नबी के अगल बगल रामगोपाल यादव और सतीश चंद्र मिश्रा बैठे। प्रणब मुखर्जी ने पत्र लिखकर कहा कि उन्हें जनमत के संरक्षण की चिंता है।यह देखने में जितना सरल लग रहा है दरअसल उतना सरल है नहीं। राजनीतिक प्रेक्षक इसे एग्जिट पोल के उल्टा होने की आहट मान रहे हैं। ऐसा भाजपा के सन्नाटे और विपक्ष की सक्रियता से भी अभाषित हो रहा है।

चुनाव प्रचार खत्म होने के दिन पीएम मोदी और अमित शाह की प्रेस कॉन्फ्रेंस के मंच से दावा किया गया कि भाजपा को 300 से ज्यादा सीटें मिलेंगी। फिर भी जश्न नहीं दिख रहा है। वो ऊर्जा, वो उत्साह क्यों गायब है? हर चीज को लार्जर दैन लाइफ बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रहस्यमय चुप्पी क्यों ओढ़ रखी है?

मुलायम और अखिलेश यादव के आय से अधिक मामले मे सीबीआई ने शपथ पत्र देकर कहा दोनो के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला। नतीजे आने से 48 घंटे पहले सीबीआई के इस ह्रदय परिवर्तन पर राजनीतिक चर्चा तेज़ हो गयी है। सियासी गलियारों में दो तरह की चर्चा है। एक तो यह है कि वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष के बजाय अपना प्रत्याशी उतारकर कांग्रेस से प्रियंका गांधी की चुनाव लड़ने की योजना को पलीता लगाने के लिए मुलायम-अखिलेश को सत्ता पक्ष से शुक्राना अदा किया है और दूसरी चर्चा यह है कि सीबीआई ने सत्ता परिवर्तन की आहट से सबूत न होने की बात कहकर अपना दामन बचाया है। फिर तीसरी बात भी है कि अल्पमत सरकार की स्थिति में लोकसभा में विश्वास मत के दौरान सदन का बहिष्कार करके परोक्ष मदद के लिए सत्ता पक्ष ने एक खिड़की खोली है।

लोकसभा चुनाव खत्म होते ही उद्योगपति अनिल अंबानी का भी हृदय परिवर्तन होता दिख रहा है। अनिल अंबानी की मालिकाना हक वाली रिलायंस ग्रुप ने फैसला लिया है कि राफेल सौदे पर एक लेख को लेकर कांग्रेस नेताओं और नेशनल हेराल्ड अखबार के खिलाफ दायर मानहानि का मुकदमा वापस लिया जाएगा। ये मानहानि का मुकदमा 5000 करोड़ का है और अहमदाबाद की अदालत में दर्ज है। अब अनिल अंबानी के इस क्षमा भाव पीछे कौन सी भावना है? क्या सत्ता परिवर्तन की आहट अंबानी को मिल गयी है?

लोकसभा चुनावों को लेकर रविवार को आए एग्जिट पोल के बाद चल रही बयानबाजी के दौर में सोमवार को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी जुड़ गए थे। जहां एक तरफ उन्होंने सोमवार 20 मई को चुनाव आयोग और चुनाव आयुक्त की जमकर तारीफ की थी, वहीं मंगलवार 21 मई को उनका बयान कुछ पलटता हुआ दिखाई दिया।

उन्होंने ईवीएम को लेकर आ रही खबरों को चिंताजनक बताया और कहा कि उसकी सुरक्षा करना चुनाव आयोग की ‌जिम्मेदारी है। आयोग को लोगों का भरोसा नहीं टूटने देना चाहिए। प्रणव मुखर्जी के बयान के भी मायने निकाले जा रहे हैं। सम्भव है कि माहौल भांप कर प्रणव गैर भाजपा सरकार में अपने लिए दूसरी पारी की गुंजाइश देख रहे हों। ये गुंजाइश तभी पैदा होगी जब गैर भाजपा सरकार बनेगी।

मतदान खत्म होते ही खबर आई है कि बालाकोट में एयरस्ट्राइक की घटना के दौरान 27 फरवरी, 19 को भारतीय मिसाइल ने अपने ही एक हेलीकाप्टर को मार गिराया था,जिसमें वायु सेना के छह जवानों और एक नागरिक की मौत हो गयी थी। बड़गाम में हुए इस हादसे में ध्वस्त हुआ हेलीकाप्टर एमआई 17 वी 5 था। जांचकर्ता पूरे घटनाक्रम की जांच में जुट गए हैं और वायुसेना के अफसरों का कहना है कि इसमें दोषी पाए गए लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। जांचकर्ता इस बात की जांच कर रहे हैं कि आखिरी मौके पर लक्ष्य के दुश्मन या फिर दोस्त की पहचान करने वाला सिस्टम आन हुआ था या नहीं और अगर हुआ था तो उसमें क्या खामी रह गयी थी और उसके लिए कौन जिम्मेदार है।

36 सहयोगी दलों ने पीएम मोदी के नेतृत्व पर जताया भरोसा

23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने वाले हैं और इससे पहले मंगलवार 21 मई को भाजपा ने एनडीए के घटक दलों के नेताओं के लिए दिल्ली में डिनर का आयोजन किया। इस दौरान एक प्रस्ताव पास कर पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर सबने भरोसा भी जताया। डिनर बैठक में 36 घटक दलों के नेता शामिल हुए। केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता राजनाथ सिंह ने बताया कि 3 सहयोगी दल इस डिनर में नहीं पहुंच सके तो उन्होंने लिखित में अपना समर्थन दिया है।

खास बात यह है कि एनडीए की मीटिंग और डिनर डिप्लोमेसी के बाद एक प्रस्ताव पारित कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताया गया और उनकी प्रशंसा भी की गई। राजनाथ सिंह ने बताया कि बैठक में एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान के द्वारा प्रस्ताव पेश किया, जिसे सर्वसम्मति से पास किया गया। राजनितिक प्रेक्षकों की मानें तो यह एहतियातन किया गया है। यदि भाजपा नीत एनडीए को बहुमत नहीं मिला और भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी तो 23 मई की रात में ही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं।

यह कदम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उस सोच को पलीता लगाने के लिए भी उठाया गया है, जिसमे कहा जा रहा है कि बहुमत न आने की दशा में यदि भाजपा की सरकार बनती है तो मोदी नहीं बल्कि कोई अन्य नेतृत्व करेगा। बैठक के बहाने यूपीए और उसके बाहर के अन्य दलों के लिए चारा भी फेंका गया है ।प्रस्ताव कहा गया है कि पिछले 5 साल लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरे करने वाले थे, अब एनडीए ने तय किया है कि आनेवाले 5 वर्षों में लोगों की आकांक्षाओं को पूरा किया जाएगा।

विपक्ष सक्रिय

विपक्ष को भरोसा है कि मोदी सरकार जा रही है इसलिए विपक्ष आपसी एकता और ईवीएम की सुरक्षा को लेकर सजग है। मंगलवार 21 मई को चंद्रबाबू नायडू की अध्यक्षता में 22 विपक्षी दलों ने बैठक की। इसमें कांग्रेस से गुलाब नबी आजाद, टीएमसी से डेरेक ओब्रायन, सीपीएम से सीताराम येचुरी, आप से अरविंद केजरीवाल, बीएसपी से सतीश चंद्र मिश्र, एसपी से रामगोपाल यादव, डीएमके से कनिमोझी, सीपीआई से डी राजा, आरजेडी से मनोज झा, एनसीपी से मजीद मेमन और नेशनल कॉन्फ्रेंस से देविंदर राणा मौजूद थे। इस बैठक में गैर बीजेपी सरकार बनाने की गुंजाइश पर भी चर्चा हुई।

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