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NRC-CAA के खिलाफ ट्रांसजेंडर समुदाय और 22 महिला संगठनों का हल्ला बोल, मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक निकाली बड़ी रैली

Nirmal kant
4 Jan 2020 6:31 AM GMT
NRC-CAA के खिलाफ ट्रांसजेंडर समुदाय और 22 महिला संगठनों का हल्ला बोल, मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक निकाली बड़ी रैली
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महिलाओं, दलितों और ट्रांसजेंडर्स समुदाय ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ निकाली रैली, कहा ये कानून संविधान खिलाफ है, धर्म के आधार पर देश का बंटवारा करना चाहती है सरकार...

विकास राणा की रिपोर्ट

जनज्वार। दिल्ली में नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के विरोध में मंडी हाउस से जंतर मंतर तक महिलाओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों ने रैली निकाली। रैली में 22 महिला संगठन और ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों ने हिस्सा लेकर इस कानून का विरोध किया। उन्होंने नागरिकता संशोधित अधिनियम को संविधान विरोधी बताया।

नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर महिलाओं का कहना था कि ये कानून पूरी तरह से महिलाओं के विरोध में हैं। हमारे देश में कई ऐसी गरीब, दलित और वंचित महिलाएं जिनके पास किसी तरह का कोई कागजात नहीं है। लेकिन ये सरकार अब दस्तावेज के आधार पर ये पता लगाएगी कि कौन देश का नागरिक हैं और कौन देश का नागरिक नहीं हैं।

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रटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने जनज्वार से बातचीत में कहा कि सरकार द्वारा सीएए और एनआरसी जैसे कानून लाकर जिस तरह का भेदभाव वाला समाज बनाया जा रहा है, उसके विरोध करने के लिए लोग, महिलाएं, ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग सड़कों पर उतरे हैं। हम लोग नहीं चाहते है कि सरकार ऐसा कोई भी कानून लाने की कोशिश करे जो कुछ जाति के लोगों को बाहर करने या नागरिकों से कागजात मांगने की बात करता हो। हमारे देश में काफी गरीब, पिछड़े और हाशिए के लोग हैं जो ऐसे कानूनों के आने के कारण काफी कुछ खोते हैं और इस बार खोने के लिए उनके पास नागरिकता की बात है जिसके लिए हम लोग सड़कों पर उतरे हैं।

भारद्वाज ने आगे कहती हैं, 'कानून से महिलाओं के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव पर बताते हैं कि हमारे देश में जो महिलाएं हैं, खासकर जो आदिवासी और गरीब वर्ग की महिलाएं होती हैं। उनमें से ज्यादातर के पास किसी प्रकार की कोई संपत्ति नहीं होती है। उनके दस्तावेज नहीं होते है। ऐसी महिलाओं के लिए अपने और अपने मां बाप के दस्तावेज दिखा पाना कहीं से भी संभव नहीं है। इसलिए इस कानून से महिलाओं के ऊपर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ने वाला हैं। कानून से कई महिलाएं अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएगी।

णि्पुर से आयी पाल्लव कहती हैं, 'इस कानून से सरकार हमारे देश को धर्म के आधार पर बांटना चाहती है। ये कानून हमारे संविधान के खिलाफ है। जब हम लोग स्कूल में पढ़ते थे तो हम लोगों को बताया जाता था कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है। हमें कभी भी नहीं बताया गया कि हमारा देश एक राष्ट्र और एक धर्म के आधार पर चलता है। हमे ये ही बताया गया है कि हमारे देश में विभिन्नताएं हैं। इस कानून में एक तरह का हिंदू-मुस्लिम दिखता है। ये कानून कहता है कि देश में सिर्फ मुस्लिम को छोड़कर अन्य देश के धर्म के लोगों को नागरिकता दी जा सकती है जिसके कारण इस कानून में पूरी तरह से भेदभाव दिखता है।

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पाल्लव आगे कहती हैं, 'सरकार जो कागजात मांग रही है वो पूरी तरह से महिलाओं के विरोध में है। हमारे देश में कई ऐसी महिलाएं है जो शिक्षित नहीं हैं। पितृसत्ता होने के कारण उनको शिक्षित नहीं होने दिया जाता है। हम ग्रामीण लोगों को देखते हैं वहां भी किसी तरह की कोई सुविधा नहीं है जिस कारण किसी के पास कागजात नहीं हैं।

आगे कहा, 'अगर हम ट्रांसजेंडर्स की बात करें तो हम जैसे कई लोग अपने घर को छोड़ कर आते हैं क्योंकि हमारे यहां घरेलु हिंसा होती है। इसलिए हम लोगों को अपना घर छोड़ कर आना पड़ता है। जिसके कारण हमारे पास कोई कागज नहीं रह पाता है और कानून में कागजात मांगे गए है जबकि हमारे देश के संविधान में लिखा गया है कि जो इस देश में पैदा हुआ है, वो इस देश के निवासी हैं। ये कानून सिर्फ महिलाओं, ट्रांसजेंडर, दलित समुदाय के खिलाफ ही नहीं, बल्कि संविधान के खिलाफ भी है।'

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