विश्व मीडिया ने कहा मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के लिए मोदी सरकार ला रही नागरिकता संशोधन बिल
न्यूयार्क टाइम्स लिखता है कि मिस्टर मोदी और इनकी पार्टी की विचारधारा गहरे स्तर पर भारत को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में देखती है। मई में भाजपा की विशाल जीत ने इसे हिंदू राष्ट्र के विजय के उत्सव रूप में मनाया। इनकी विजय का हर शंखनाद मुसलमानों को हताश करने वाला....
दि गार्जियन अखबार अमेरिका के कमीशन ऑन इंटनेशनल रिलिजिएस फ्रीडम के हवाले से नागरिकता संशोधन बिल के बारे में कहता है- “यह गलत दिशा में खतरनाक परिवर्तन है।” और कमीशन द्वारा शाह (गृहमंत्री अमित शाह) के खिलाफ प्रतिबंध के आह्वान की भी सूचना देता है.....
नागरिकता संशोधन बिल पर डॉ. सिद्धार्थ की टिप्पणी
जनज्वार। विश्व मीडिया ने कमोवेश एक स्वर में 9 दिसंबर 2019 को लोकसभा द्वारा पारित नागरिकता संशोधन बिल (2019) को हिंदू राष्ट्र की परियोजना को आगे बढ़ाने वाला और भारत में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक ठहराने वाला माना है। यह बिल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुसलमानों शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है। विशेष तौर इस बिल में मुसलमानों को नागरिकता के अधिकार से बाहर रखने का प्रावधान किया गया है।
ब्रिटिश अखबार दि गार्जियन इस बिल को भारत की हिंदू पहचान को स्थापित करने की मोदी सरकार की कोशिशों की एक श्रंखला के रूप में देखता है। अखबार ने शीर्षक लगाया है- 'नार्थ-ईस्ट इंडिया ग्रिप्ड बाई प्रोटेस्ट ओवर सिटिजनशीप बिल एक्सक्लूडिंग मुस्लिम'
इसमें लिखा है- “अगस्त में मोदी सरकार ने जम्मू और कश्मीर की आंशिक स्वायत्ता को खत्म कर दिया। मुस्लिम बहुंख्यक राज्य को दो राज्यों में बांट दिया।” और अब यह बिल लेकर आई है। अखबार मानवाधिकार समूहों, विपक्षी पार्टियों और मुस्लिम समूहों के हवाले से लिखता है- “यह प्रधानमंत्री मोदी का हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा है, जिसका उद्देश्य भारत के 20 करोड़ मुसलमानों को किनारे लगाना है।”
दि गार्जियन अखबार अमेरिका के कमीशन ऑन इंटनेशनल रिलिजिएस फ्रीडम के हवाले से इस बिल के बारे में कहता है- “यह गलत दिशा में खतरनाक परिवर्तन है।” और कमीशन द्वारा शाह (गृहमंत्री अमित शाह) के खिलाफ प्रतिबंध के आह्वान की भी सूचना देता है। अखबार कमीशन के हवाले से यह भी लिखता है- “यह कानून (नागरिकता संशोधन कानून) प्रस्तावित एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) के साथ मिलकर एक ऐसा धार्मिक परीक्षण का आधार खड़ा करने जा रहा है, जो लाखों मुसलमानों को नागरिकता से वंचित कर देगा।” अखबार लिखता है- पूर्वोत्तर के लोग भिन्न कारणों से इसका विरोध कर रहे हैं। उनको यह डर सता रहा है कि इस बिल के माध्यम से लाखों बांग्लादेशी हिंदू प्रवासियों को नागरिक का दर्जा दे दिया जायेगा। जिन्होंने घुसपैठिये के रूप में प्रवेश किया था।”
न्यूयार्क टाइम्स में जेफ्रे जेटलमन और सुहानी राज ने इसे “1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के संस्थापक नेताओं द्वारा भारत में स्थापित धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बदलने की दिशा में उठाया गया सबसे बड़ा कदम बताया हैं। “इंडिया स्टेप टूवार्ड मेकिंग नेचुरालाइजेशन हार्डर फॉर मुस्लिम।” या नागरिकीकरण की दिशा में उठाया गया भारत का यह कदम मुसलमानों के लिए मुश्किल भरा है।
(photo : washington post)
न्यूयार्क टाइम्स ने इसे “भारतीय मुसलमानों को गहरे स्तर पर हिला देने वाला कदम” कहा है। न्यूयार्क टाइम्स भाजपा के इस प्रयास को भारतीय मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक ठहराने वाला कहते हुए लिखता है, “भारतीय मुसलमान बुरी तरह से हिल गए हैं। नागरिकता संशोधन बिल नामक यह नया उपाय शासक पार्टी द्वारा भारत के 20 करोड़ मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक ठहराने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है। भारत विश्व के उन देशों में शामिल है, जहां सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी रहती है। यह (बिल) इनमें से बहुत सारे लोगों को राज्यविहीन बना देगा।”
न्यूयार्क टाइम्स लिखता है कि मिस्टर मोदी और इनकी पार्टी की विचारधारा गहरे स्तर पर भारत को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में देखती है। मई में भाजपा की विशाल जीत ने इसे हिंदू राष्ट्र के विजय के उत्सव रूप में मनाया। इनकी विजय का हर शंखनाद मुसलमानों को हताश करने वाला है।
बीबीसी ने इस बिल को मुस्लिम विरोधी करार देते हुए शीर्षक लगाया है- “सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल : इंडियाज न्यू ‘एंटी मुस्लिम’ लॉ कॉज अपरोर”। यह रिपोर्ट विभिन्न विशेषज्ञों के हवाले से इसके असली मकसद को सामने लाती है।
इतिहासकार मुकुल केसवन के हवाले से यह रिपोर्ट कहती है- “इस बिल का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों की नागरिकता को गैर-कानूनी बनाना है।” समाजशास्त्री नीरजा गोपाल जया के हवाले से रिपोर्ट में लिखा गया है, “एनआरसी और कैब दोनों एक साथ मिलकर नागरिकता के अधिकार का श्रेणीक्रम करके भारत को बहुसंख्यकवादी शासन में रूपान्तरित कर देने की क्षमता रखते हैं।”
इस बिल के आलोचकों को उद्धृत करते हुए बीबीसी इस बिल की मंशा पर सवाल उठाते हुए लिखता है- “यदि वास्तव में इस बिल का उद्देश्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करना होता, तो इसमें उन मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भी शामिल किया जाता, जिन्हें अपने देशों में प्रताड़ित किया जाता है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान के अहमदिया और म्यांमार के रोहिंग्या (भारत सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को भारत से निकालने के लिए सर्वोच्च न्यायालय गई थी।)।”
वाशिंगटन पोस्ट की वैश्विक स्तंभकार बरखा वाशिंगटन पोस्ट में लिखती हैं- “भारत के बाहर और भारत के भीतर बहुत सारे लोग इसे ( नागरिकता संशोधन बिल) भारत को ‘हिंदू पाकिस्तान’ बनाने की कोशिश से जोड़कर देख रहे हैं।” वाशिंगटन पोस्ट के अपने इसी स्तंभ में वे लिखती हैं कि भारत की विविधता को किनारे लगाकर पहली बार भारत खुद को पाकिस्तान की तरह बनाने की ओर बढ़ रहा है।
दि टाइम मैंगजीन ने लिखा है कि “मोदी के नेतृत्व में भाजपा 2014 में सत्ता में आई थी, लेकिन मई (2019) में विशाल जीत हासिल कर भारी बहुमत प्राप्त किया। उसके बाद लगातार वह अपनी विचारधारा के अनुसार बड़े कदम उठा रही है और इस प्रक्रिया में मुसलमानों को किनारे लगा रही है।अपने हिंदू राष्टवादी विश्वासों के अनुसार भारत के धार्मिक और सामाजिक स्वरूप को बदलने के लिए नागरिकता संशोधन बिल मोदी द्वारा उठाया गया सबसे बड़ा कदम है।”
अलजजीरा इस कदम को 6 वर्ष पहले सत्ता में आई मोदी सरकार द्वारा अपने हिंदू वर्चस्ववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के एक हिस्से के रूप देखता है। पहले भी अलजजीरा नागरिकता संशोधन अधिनियम को भारतीय जनता पार्टी के विचारधारात्मक और राजनीतिक एजेंडे के रूप में देखा था। जिस एजेंडे का उद्देश्य भारत को ‘हिंदुओं के घर’ के रूप में रूपांतरित करना है, क्योंकि सत्तारूढ़ सरकार भारत को हिंदुओं के घर के रूप में देखती है और अन्य सभी लोगों को घुसपैठिया मानती है।