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राजनीति

10 साल पहले नीतीश सरकार ने बंद की थी जो निधि वही कोरोना में बनी संजीवनी, पर बिहार में क्यों मचा घमासान

Janjwar Desk
4 Jun 2021 10:22 AM GMT
10 साल पहले नीतीश सरकार ने बंद की थी जो निधि वही कोरोना में बनी संजीवनी, पर बिहार में क्यों मचा घमासान
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नीतीश सरकार द्वारा बिना सहमति के दो दो करोड़ रुपए अधिग्रहित करने का भूख हड़ताल पर बैठ कर विरोध जताते भाकपा माले के विधायक व कार्यकर्ता

विधायकों का कहना है पिछले साल भी कोरोना से निपटने के नाम पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिना उनकी अनुमति के 50-50 लाख रुपये निकाल लिए थे और बार बार हिसाब मांगे जाने के बावजूद आज तक कोई लेखा-जोखा नहीं प्रस्तुत किया गया...

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। बिहार में मुख्यमंत्री क्षेत्रीय विकास निधि अर्थात विधायक निधि को लेकर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। नीतीश सरकार ने दस वर्ष पूर्व इसी निधि को बंद की थी, अब यही योजना कोरोना काल में सरकार के लिए संजीवनी बनी है। अब फर्क बस इतना है कि उस समय सरकार भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए योजना पर रोक लगाई थी, अब सरकार योजना का बड़ा हिस्सा स्वयं खर्च करना चाहती है।

इसको लेकर विपक्षी विधायकों में नाराजगी है। इनका कहना है कि पूर्व में ली गई धनराशि का सरकार ने हिसाब नहीं दिया और एक बार फिर विधायकों के प्रस्ताव पर खर्च होने वाली धनराशि को सरकार अधिग्रहित कर अलोकतांत्रिक कदम उठाई है। साथ ही अधिकांश विधायक कह रहे हैं कि एक करोड़ की धनराशि हम लोगों के प्रस्ताव पर विधानसभा क्षेत्र में कोरोना से राहत के लिए खर्च किया जाए। खास बात यह भी है कि निधि का विरोध करने वाली सरकार में ही अब तक दो बार धनराशि में बढ़ोतरी करते हुए 3 करोड़ रुपए कर दी गई है।

विपक्षी दलों के विधायकों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बिना स्वीकृति लिए निधि की धनराशि कोरोना रिलीफ फंड में जमा करने को लेकर विरोध जताया है। इन विधायकों का कहना है कि पिछले साल भी कोरोना से निपटने के नाम पर मुख्यमंत्री ने बिना उनकी अनुशंसा व अनुमति के 50-50 लाख रुपये निकाल लिए थे और बार बार हिसाब मांगे जाने के बावजूद आज तक कोई लेखा-जोखा नहीं प्रस्तुत किया गया।

इस बार फिर से मुख्यमंत्री द्वारा बिना विधायकों से कोई सलाह लिए दो दो करोड़ रुपये ले लिया गया। इसके खिलाफ माले के सभी 12 विधायकों ने 21 मई को राज्यव्यापी अनशन और भूख हड़ताल कर अपना आक्रोश जताया था। इन नेताओं ने आरोप लगाया कि आपदा के भयावह संकट की स्थिति में भी भाजपा–जदयू की सरकार ओछी राजनीति कर विपक्ष के विधायकों की भूमिका सीमित करने मैं लगी है। साथ ही कहा है कि बिहार में महामारी संक्रमण के शुरुआत के समय से ही प्रदेश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को फ़ौरन दुरुस्त करने की बार-बार मांग उठाने और अत्यावश्यक सुझाव देने के बावजूद सरकार लापरवाह बनी रही।

तेजस्वी यादव : नीतीश सरकार की मनसा पर संदेह जताते हुए पिछले वर्ष सदस्यों से निधि की ली गई पचास पचास लाख रुपए का मांगा हिसाब

नेताओं का कहना है कि अब झूठी सक्रियता दिखाकर मुख्यमंत्री ने विधायकों और विधान पार्षदों से बिना किसी बातचीत के बेहद अलोकतांत्रिक तरीके से वित्तीय वर्ष 2020–21 के विकास मद से दो-दो करोड़ की राशि जबरन अधिग्रहित करने की मनमानी की है। आंदोलनकारी माले विधायकों ने यह मांग भी उठाई है कि इस राशि का कम से कम 50 % हिस्से को सभी जनप्रतिनिधियों के क्षेत्रों में जनता के स्वास्थ्य सेवाओं को उन्नत करने में खर्च किया जाए तथा उक्त राशि आवंटन की पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाय। इसके लिए सभी विधायकों व पार्षदों की सहमति और उनके सुझावों को प्राथमिक महत्व दिया जाए।

विधायक प्रतिवाद अभियान का नेतृत्व कर रहे माले विधायक दल नेता और बलरामपुर विधायक महबूब आलम ने कहा है कि आज पूरे देश और बिहार की जनता ने खुली आँखों से देख लिया कि किस तरह से केंद्र व राज्यों में सत्ताशीन भाजपा–जदयू सरकार कोरोना महामारी से मुकाबले में पूरी तरह से फेल साबित हुई है। संक्रमण के दूसरी लहर ने गांवों को भी भयावह चपेट में ले लिया है। गंगा से लेकर गावों में लाशों की कतारें इन सरकारों के मानवहंता और जनविरोधी चरित्र को हर दिन उजागर कर रही है।

सरकार की आपराधिक लापरवाही के कारण पूर्व से ही लचर स्वास्थ्य व्यवस्था महामारी संक्रमण के आगे पूरी तरह से ध्वस्त साबित होकर एक एक साँस के लिए जनता को तड़पा-तड़पा कर मार रही है। फिर भी पूरी बेशर्मी से हर दिन झूठा रिकवरी रेट प्रचारित कर समय पर जाँच व समुचित इलाज़ के अभाव में मर रहे लोगों के सही आंकड़े छुपाने का घिनौना खेल जारी है। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है ऐसे संगीन हालात में भी लोगों की जान बचाने की फ़िक्र छोड़ कर प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद विधायक मद की जिस राशि को क्षेत्र की जनता के स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में खर्च होना था, कोरोना के नाम पर उसे हड़पने में लिप्त हैं।

विधायक गोपाल रविदास व पालीगंज युवा विधायक संदीप सौरभ ने मीडिया से कहा कि हमारी आपत्ति इस बात से नहीं है कि मुख्यमंत्री और भाजपा जदयू सरकार ने विधायक मद के दो-दो करोड़ रुपये जबरन ले लिया है, बल्कि आपत्ति इस बात पर है कि इसके लिए किसी भी विधायक से कोई रायशुमारी नहीं की गयी। पिछली बार भी ऐसे ही बिना कुछ पूछे 50-50 लाख रुपये की जबरन निकासी कर ली गयी थी, लेकिन हम लोगों के बार-बार मांग उठाये जाने के बावजूद आज तक उसका कोई हिसाब नहीं दिया गया है।

उन्होंने आगे कहा, हम लोगों ने कोरोना महामारी से जूझ रही अपने क्षेत्रों की जनता के ज़रूरी इलाज़ के लिए जीर्ण—शीर्ण अवस्था में पड़े सभी स्थानीय अस्पतालों की हालत तत्काल दुरुस्त करने के ज़रूरी उपायों के लिए अपने विधायक मद की राशि खर्च करने की अनुशंसा की है। ताकि वहां डॉक्टर-नर्स व स्वस्थ्यकर्मियों की उपलब्धता से लेकर ऑक्सीजन, बेड, वेंटिलेटर और सभी आवश्यक दावों व चिकित्सीय उपकरणों की ज़ल्द से ज़ल्द उपलब्धता हो, लेकिन सरकार उसमें अड़ंगा डालने के लिए अपने पूरे स्वस्थ्य महकमे और प्रशासन को सुस्त बनाये हुए है।

फुलवारीशरीफ के माले विधायक गोपाल रविदास ने सरकार पर आरोप लगाया है कि जब ऑक्सीजन संकट की भयावह स्थितियों को देखकर ही उन्होंने जब अपने क्षेत्र फुलवारीशरीफ में तत्काल ऑक्सीजन प्लांट लगाने की अनुशंसा की तो सरकार ने उस पर सीधा रोक लगाते हुए कह दिया कि ऐसी अनुशंसा का प्रावधान ही नहीं है। यानी सरकार और उसके मंत्री-विधायक जो खुद तो समय पर ऑक्सिजन उपलब्ध कराकर लोगों की जानें बचाने के सवाल पर सीन से गायब रहे, लेकिन जब विपक्ष के विधायक लोगों की जान बचाने के लिए कुछ करना चाहते हैं तो उस पर रोक लगा दी जा रही है, ऐसे में सरकार और उसके सत्ताधारी दल बतायें कि विधायकों से लिया गए पैसों का क्या होना है? जिरादेई के विधायक अमरजीत कुशवाहा ने भी ऐसी ही मांग की है।

23 मई को विपक्षी महागठबंधन के नेताओं ने मुख्यमंत्री को विशेष स्मरण पत्र भेजकर कोविड अस्पतालों व कम्युनिटी किचेन के सर्वेक्षण से जनप्रतिनिधियों को रोके जाने को सरकार का अलोकतांत्रिक और जन विरोधी क़दम करार दिया है। सरकार द्वारा विधायक मद कि राशि का जबरन अधिग्रहण किये जाने की भी तीखी निंदा करते हुए विधायक मद की राशि को क्षेत्र विशेष की ज़रूरतों को चिन्हित कर राशि आबंटन की पूरी प्रक्रिया में विधायकों और पार्षदों की सहभागिता तथा सलाह को सर्वोपरि बनाने की मांग की गयी।

महागठबंधन नेताओं ने वेंटिलेटर, ऑक्सीजन और एम्बुलेंस की अद्यतन स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग उठाते हुए आरोप लगाया है कि पीएम केयर्स फंड के तहत हुए रद्दी वेंटिलेटर सप्लाई होने के कारण उनमें से अधिकांश बेकार साबित हो गए हैं। पिछल 15 वर्षों में एमपी, एमएलए व एमएलसी व अन्य कोटे से ख़रीदे गए एम्बुलेंसों की ठोस जानकारी नहीं बतायी जा रही है। इसलिए सरकार पूरे मामले को प्रदेश की जनता के सामने रखे और महामारी की संभावित तीसरी लहर की कारगर तैयारी अभी से ही करे।

पत्र लिखकर विपक्ष सरकार से मांग रहा जवाब

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने सरकार की मनसा पर संदेह जताते हुए पिछले वर्ष सदस्यों से निधि की ली गई पचास पचास लाख रुपए का हिसाब मांगा है। इस पर सरकार के तरफ से नीतीश कुमार के मंत्री ने जवाब दिया है।

योजना एवं विकास मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव ने बताया, "अस्सी करोड़ रुपये की राशि बिहार चिकित्सा आधारभूत संरचना निगम के माध्यम से खर्च की गई है। शव वाहनों पर 273 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। कर्मचारी राज्य बीमा निगम अस्पताल, बिहटा को 2.3659 करोड़ रुपये की राशि दी गई है।"

तेजस्वी को लिखे पत्र में योजना एवं विकास मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव ने बताया, "यह कथन सत्य नहीं है कि कोरोना महामारी के पहले चरण साल 2020 में मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना की निधि से ली गई राशि का सदुपयोग नहीं हुआ है। वास्तव में महामारी के पहले चरण में मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना मद से 181.4194 करोड़ रुपये की राशि कोरोना उन्मूलन कोष में हस्तांतरित की गई थी, जिसके विरूद्ध 179.963 करोड़ रुपये का व्यय किया गया है। इन स्वीकृत योजनाओं से विभिन्न जिलों और चिकित्सा महाविद्यालय अस्पतालों में 50.0489 करोड़ रुपये से आवश्यक सुविधाएं और उपकरण उपलब्ध कराया गया है।

इसके अलावा 13.9865 करोड़ रुपये की लागत से ऑक्सीजन गैस भंडारण के लिए टंकी भी लगाई गई है। विभिन्न जिला पदाधिकारियों के माध्यम से 29.8806 करोड़ रुपये की राशि कोरोना महामारी से लड़ने के लिए खर्च की गई है. महामारी पर नियंत्रण के लिए आवश्यक उपकरण और सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। राज्य के विभिन्न जिलों में मौजूदा समय में चिकित्सा महाविद्यालयों और जिला, अनुमंडल, प्रखंड स्तरीय अस्पतालों में अलग-अलग प्रकार की चिकित्सा सुविधाएं और उपकरण उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

विधायक निधि में भ्रष्टाचार को लेकर एक बार बंद हो चुकी है योजना

बिहार सरकार ने विधायकों को उनके क्षेत्र के विकास के लिए दिए जाने वाली निधि पर वर्ष 2010 में रोक लगा दी थी। उस समय विधायक निधि में एक करोड़ रुपए दिया जाता था। इस फैसले को वर्ष 2011 - 2012 मैं अमल में लाया गया। अपनी दूसरी पारी की शुरुआत करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए यह कदम उठाई है। यह हिसाब लगाया गया कि विधानसभा में 243 और विधान परिषद में 75 सदस्य हैं।इस तरह बिहार में कुल मिलाकर 318 विधायक हैं। जिस पर सालाना 318 करोड़ रुपए खर्च होते थे। सरकार कि दलील थी कि इस 'फ़ंड' का अधिकांश हिस्सा कमीशन के रुप में बंट जाता है।

जानकार भी कहते रहे हैं कि कुछ अपवाद को छोड़ बाक़ी सभी विधायक कथित विकास के कार्य स्वीकृत करने के बाद इस कुल स्वीकृत योजना राशि का एक हिस्सा स्वयं के अलावा इंजीनियर-अधिकायों और ठेकेदारों में बँटती रही है। इस तरह संबंधित योजना पर आवंटित राशि में से मात्र 20-25 प्रतिशत ही सही मायने में खर्च की जाती है। कहा जा रहा है कि 'विधायक फ़ंड' में ऐसी लूट या भ्रष्टाचार की आम शिकायतों के बाद और इस झंझट में नहीं पड़ने वाले कुछ साफ़-सुथरी छवि वाले विधायकों की सलाह पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे बंद करने का निर्णय लिया था।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस फंड को 10 साल पहले बंद करने का लिया था निर्णय, अब उसकी का उपयोग क्यों हो रहा है कोरोना फंड के लिए

नीतीश कुमार ने कहा है सभी विधायकों से अपील करते हुए कहा था कि वो इस फ़ंड के कारण बिगड़ रही अपनी छवि और राजनीति की गिरती जा रही साख को बचाने के लिए साहस के साथ आगे आएं। "हालात मुख्यमंत्री के फैसले को लेकर सत्ताधारी दल के कुछ विधायकों में भी नाराजगी थी। इसे ऐतिहासिक निर्णय बताते हुए उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि अब केंद्र सरकार को भी चाहिए कि भ्रष्टाचार से लांछित हो रहे प्रति सांसद सालाना दो करोड़ रुपए वाले 'सांसद फ़ंड' को भी समाप्त कर दे, ताकि लोगों के बीच राजनीति से जुड़े जन-प्रतिनिधियों की छवि सुधर सके। उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी। अब हालांकि केंद्र में राष्ट्रीय जन तांत्रिक गठबंधन की सरकार है तथा उच्च सदन के सुशील कुमार मोदी सदस्य भी हैं। इसके बाद भी इनकी चुप्पी बरकरार रहने से सवाल उठना स्वाभाविक है।

नाम बदलकर फिर शुरू हो गई योजना

नीतीश सरकार ने विधायक, विधानपार्षद स्थानीय क्षेत्र विकास निधि योजना की समाप्ति के बाद नियमों में कुछ बदलाव कर मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना की वर्ष 2012 - 13 में मार्गदर्शिका को मंजूरी दे दी। मंत्रीपरिषद् के निर्णय के बारे में मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के अपर सचिव उपेंद्र कुमार ने कहा था कि बिहार में क्षेत्रीय विकास में असंतुलन न हो, इसके लिए मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना तैयार की गई है। अब विधानसभा क्षेत्रवार विकास कार्य न होकर भौगोलिक इकाइयों के आधार पर काम होंगे।

इस निधि से 85 फीसदी विकास कार्य ग्रामीण क्षेत्रों में और शेष 15 फीसदी शहरी क्षेत्रों में होगा। योजना विकास विभाग संबंधित क्षेत्रों में पंचायत सरकार भवन, आंगनबाड़ी, भवन, सड़क निर्माण आदि संरचनात्मक कार्य के लिए नोडल एजेंसी होगा। योजनाओं को स्वीकृति संबंधित जिला समितियों द्वारा दी जाएगी। इसके प्रमुख जिलों के पालक मंत्री होंगे।साथ ही कुछ माह बाद ही निधि की धनराशि को बढ़ाकर दो करोड़ रुपए कर दी गई।

जुलाई 2018 से विधायक फंड हो गया 3 करोड़ सालाना

मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना (विधायक निधि) के तहत प्रत्येक विधायक और विधान पार्षद को अपने क्षेत्र के विकास के लिए मिलने वाली राशि को जुलाई 2018 में तीन करोड़ रुपए सरकार ने कर दी। खास बात यह है कि जिस सरकार ने निधि को बंद की थी, उसी ने दस वर्ष में एक करोड़ से तीन करोड़ कर दी है। साथ ही अब निधि बंद करने के बजाए इसे खर्च करने के अधिकारों को लेकर बहस हो रही है।

कोरोना उन्मूलन कोष में जमा होंगे 636 करोड़ रुपये

राज्य में कोरोना को देखते हुए चालू वित्तीय वर्ष में मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना में विधायकों व विधान पार्षदों को मिलने वाली राशि में दो-दो करोड़ रुपये की कटौती कर दी गयी है। वर्तमान में सभी विधायकों और विधान पार्षदों को मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के तहत सालाना तीन-तीन करोड़ रुपये मिलते हैं। इस बार दो-दो करोड़ रुपये की कटौती की गयी है। ये रुपये स्वास्थ्य विभाग में गठित कोरोना उन्मूलन कोष में जायेंगे, ताकि कोरोना से जारी जंग को प्रभावी ढंग से लड़ा जा सके। इस तरह सभी 243 विधायकों और करीब 75 विधान पार्षदों के फंड से दो-दो करोड़ रुपये की कटौती करने से कोरोना उन्मूलन कोष में 636 करोड़ रुपये जमा हो जायेंगे।

फिलहाल यह कटौती सिर्फ चालू वित्तीय वर्ष के लिए ही लागू की गयी है। इस बीच कटौती की आधी धनराशि विधायकों के प्रस्ताव पर खर्च करने की मांग पर सरकार द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया है।

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