फिर फंसे अमरिंदर: सिद्धू के बाद अब पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ व दो मंत्रियों ने पूर्व कांग्रेस विधायकों के बेटों को नौकरी देने पर घेरा
(जाखड़ ने कहा- मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह को गलत फैसले को पलटना चाहिए.. फ़ैसला भी अमरिंदर सिंह और पूरी कांग्रेस पार्टी की तटस्थता और संस्कृति के खिलाफ है।)
जनज्वार ब्यूरो चंडीगढ़। ऐसा लग रहा है कि पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह की परेशानी कम नहीं होगी।जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, उनके प्रति पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ता ही जा रहा है। अभी तक नवजोत सिंह सिद्धू समेत कई विधायक उनके खिलाफ थे, इस कड़ी में अब पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ का नाम भी जुड़ गया है। उनके साथ दो और विधायकों ने भी अमरिंदर सिंह को घेरा है। ताजा विवाद है, दो पूर्व कांग्रेस विधायकों के बेटों को सरकारी नौकरी देना। इसके लिए पंजाब कैबिनेट ने शुक्रवार को प्रस्ताव पास किया है।
कैबिनेट ने शुक्रवार को कादियां विधायक फतेहजंग सिंह बाजवा के बेटे अर्जुन प्रताप सिंह बाजवा को पंजाब पुलिस में इंस्पेक्टर और लुधियाना के विधायक राकेश पांडे के बेटे भीष्म पांडे को राजस्व विभाग में नायब तहसीलदार नियुक्त किया है। अर्जुन और भीष्म को उनके दादा की हत्या के 34 साल बाद अनुकंपा के आधार पर विशेष मामलों के रूप में नियुक्ति दी गई थी।
सीएम ने स्पष्ट किया कि इस निर्णय से पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने इस निर्णय का विरोध करने वालों को आड़े हाथों लिया। पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दो विधायकों के बेटों को नौकरी देने के अपनी सरकार के फैसले को उनके दादाओं द्वारा किए गए बलिदान की मान्यता के रूप में करार दिया है, जिन्होंने देश के लिए अपना बलिदान दिया।"
हालांकि कैबिनेट में जब इस प्रस्ताव को रखा गया तभी भी इसका विरोध हुआ था। पांच मंत्रियों के विरोध के बावजूद अनुकंपा के आधार पर दो विधायकों के बेटों के लिए सरकारी नौकरी को मंजूरी दी गई थी। इन पांच मंत्रियों में रजिया सुल्ताना, सुखबिंदर सिंह सरकारिया, सुखजिंदर सिंह रंधावा, चरणजीत सिंह चन्नी और त्रिपत राजिंदर सिंह बाजवा शामिल हैं।
मंत्रियों ने तर्क दिया कि दोनों के पास करोड़ों की संपत्ति है और उन्हें सरकारी नौकरियों की जरूरत नहीं है। अब पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ और दो विधायकों ने कहा कि सरकार इस निर्णय को वापस ले। यह गलत सलाह है, जिसे पंजाब सरकार ने माना है। इससे गलत परंपराओं को जन्म मिल सकता है।
जाखड़ ने कहा, "मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह को गलत फैसले को पलटना चाहिए.. फ़ैसला भी अमरिंदर सिंह और पूरी कांग्रेस पार्टी की तटस्थता और संस्कृति के खिलाफ है।"
कांग्रेस विधायक कुलजीत नागरा ने कहा कि राज्य मंत्रिमंडल को इस फैसले को वापस लेना चाहिए। एक अन्य विधायक अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने बाजवा और पांडे से अपील की कि वे अपने बेटों के लिए नौकरी स्वीकार न करें।
शिरोमणि अकाली दल ने आरोप लगाया है कि यह निर्णय कांग्रेस विधायकों की "अपनी कुर्सी बचाने" की वफादारी को "खरीदने" का एक प्रयास है।
अमरेंदर सिंह के इस कदम का अपनी पार्टी और विपक्ष दोनो में ही विरोध हो रहा है। पार्टी के भीतर उनके विरोधी यह मान कर चल रहे हैं कि कैप्टन अपने विरोधियों को चुप कराने के लिए इस तरह के कदम उठा रहे हैं। उनके रोष की प्रमुख वजह यह है।
पंजाब कांग्रेस का एक धड़ा कैप्टन को घेरने की पूरी कोशिश कर रहा है। नवजोत सिंह सिद्धू जैसे मुखर नेता के साथ मिल कर वह जोर शोर से अपनी आवाज पार्टी आलाकमान के सामने उठा रहे थे।
इसके बाद भी कैप्टन आला कमान के सामने खुद को साबित कर गए है। इससे पार्टी के भीतर उनके विरोधी मौके की तलाश में थे। अब कैप्टन कैबिनेट ने दो विधायकों के बेटों को नौकरी देने का जो निर्णय लिया, इससे उन्हें बैठे बिठाए ही मुद्दा मिल गया।
कैप्टन विरोधियों को मानना है कि इस तरह से कैप्टन पार्टी के भीतर अपना वर्चस्व कायम करना चाह रहे हैं। इसके लिए वह जो कम विरोध है, उन्हें अपने साथ मिलाने के लिए इस तरह का लालच दे रहे हैं। जो मुखर विरोधी है, उन्हें साइड लाइन कर रहे हैं।
इस वजह से कैप्टन के विरोधी अब अमरिंदर सिंह पर हमलावर हो रहे हैं। हालांकि विधायकों के बेटों को नौकरी देने के पीछे कैप्टन के अपने तर्क हैं, उनका कहना है कि उनके दादाओं ने अपने जीवन का बलिदान दिया है। इसलिए नौकरी उनके बलिदान का सम्मान है। लेकिन विरोधी खेमे का कहना है कि विधायकों के पास सब कुछ है। वह अमीर लोग है। उन्हें नौकरी की जरूरत नहीं है।
इसलिए इस वक्त नौकरी देने का कोई तुक नहीं बनता है। इनका कहना है कि अमरिंदर सिंह पार्टी का अपनी मर्जी से और अपने तरीके से चला रहे हैं। यह गलत बात है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।
विधायकों के बेटे को नौकरी देने के मामले में पार्टी प्रदेशाध्यक्ष की नाराजगी कैप्टन की चिंता को थोड़ा बढ़ा सकती है। लेकिन जिस तरह से कैप्टन सिद्धू प्रकरण से आसानी से निकल कर बाहर बाहर आ गए, इस बार भी वह अपने विरोधियों को चुप करा देंगे।
फिर भी अब जबकि पंजाब में चुनाव में एक साल से कम का समय रह गया है, ऐसे में पंजाब कांग्रेस में यह उठक पठक पार्टी के लिए सही नहीं मानी जा रही है। इससे भले ही कैप्टन पार्टी के भीतर अपनी मजबूती दिखा दें, लेकिन मतदाता के बीच पार्टी की छवि पर विपरीत असर पड़ता है।