Delhi MCD Election : सत्ता विरोधी लहर में एमसीडी से बाहर हो जाएगी BJP या वोटर्स में मन में कुछ और ही है!
Delhi MCD Election : एंटी इंकम्बेंसी में एमसीडी की सत्ता से बाहर हो जाएगी भाजपा, या वोटर्स में मन में कुछ और ही है!
सत्ता विरोधी लहर के बीच एमसीडी चुनाव पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट
Delhi MCD Election : इस बार दिल्ली नगर निगम चुनाव ( MCD Election Delhi ) भाजपा ( BJP ) और आम आदमी पार्टी ( AAP ) दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। भाजपा एमसीडी ( MCD ) में पिछले 15 साल से काबिज है। वहीं पिछले आठ साल से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है। शीला दीक्षित सरकार की प्रचंड लोकप्रियता के दौरान भी भाजपा ने एमसीडी पर अपनी पकड़ बरकरार रखी थी, लेकिन इस बार मेयर्स और पार्षदों के भ्रष्टाचार ( Corruption ) की वजह से सियासी माहौल पार्टी के अनुकूल नहीं है। इस बात को सीएम केजरीवाल बखूबी जानते हैं। यही वजह है कि उन्होंने गाजीपुर कूड़े के एमसीडी में भ्रष्टाचार का प्रतीक बताकर इस मुद्दे को उछाल दिया है। उनकी मंशा से साफ है कि चौथी बार एमसीडी में भाजपा ( BJP ) की वापसी मुश्किल है।
सत्ता विरोधी लहर का लाभ उठाने के फिराक में है AAP
हालांकि, दिल्ली सरकार ( Delhi Government ) में काबिज होने के बावजूद केजरीवाल ( Arvind Kejriwal ) पांच साल पहले संपन्न चुनाव में एमसीडी को भाजपा से मुक्त नहीं करा पाये थे। इस बार वह निगम से भाजपा को उखाड़ फेंकने के लिए पूरी शिद्दत से जुटे हैं। केजरीवाल की चुनावी आक्रामकता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि उन्होंने गाजीपुर के कचरे के पहाड़ पर पहुंचकर ही एमसीडी चुनावी अभियान की शुरुआत की थी। साथ ही भाजपा को दिल्ली की गंदगी के लिए जिम्मेदार ठहराया था। यानि AAP कुशासन को मुद्दा बनाकर भाजपा के खिलाफ निगम चुनाव में बढ़त हासिल करने की कोशिश करेगी। चूंकि, एमसीडी में भाजपा सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। इतना ही नहीं, बड़ी संख्या में भाजपा नेतृत्व ने मौजूदा पार्षदों के टिकट भी काटे हैं, जिसकी वजह से पार्टी को भीतरघात का भी सामना करना पड़ सकता है। आप भाजपा के अंदर व्याप्त इस असंतोष का भी लाभ उठाने की कोशिश में जुटी है। आम आदमी पार्टी इसी का लाभ उठाकर मोदी और शाह की भाजपा को सत्ता से बेदखल करना चाहती है। आप को जीत दिलाने के लिए आप दिल्ली सरकार की बेहतर स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएं देने के साथ-साथ मुफ्त बिजली-पानी, पार्कों में योगा और मुफ्त यात्राओं पर दांव लगा रही है। इसके पीछे आप की योजना न केवल आप की सत्ता पर काबिज कराने की है।
ये है BJP की जवाबी रणनीति
केजरीवाल वाल की सियासी रणनीति के जवाब में यमुना की गंदगी, केजरीवाल सरकार में शिक्षा घोटाला, जेल मंत्री सत्येंद्र जैन की जेल में अय्याशी, स्कूलों में क्लासरूम घोटाला, शराब घोटाले जैसे मुद्दों को उछालकर केजरीवाल सरकार के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है। भाजपा नेता केंद्र सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का लोगों के बीच गुणगान कर रहे हैं। भाजपा ने पीएम मोदी, अमित शाह के साथ-साथ नेताओं की भारी भरकम टीम भी मैदान में उतार दी है। बाहरी राज्यों से आने वाले नेता योगी आदित्यनाथ, पुष्कर सिंह धामी और शिवराज सिंह चौहान भी यहां अपने राज्यों के मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में मोड़ने की भरपूर कोशिश कर रहे है। भाजपा को इस बात का भी भरोसा है कि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की धूमिल छवि का लाभ मिल सकता है। फिर भाजपा ने राजेंद्र पाल गौतम जैसे नेताओं ने हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने वाली घटना को भी चुनाव प्रचार के दौरान जोर शोर से उछाल रही है। इस सबके बीच कांग्रेस भी इस चुनाव में अपने लिए वापसी की कोशिश में जुटी है, लेकिन संगठन मजबूत न होने की वजह से उसे ज्यादा लाभ मिलने की उम्मीद बहुत कम है।
अब अहम सवाल यह है कि क्या दिल्ली की जनता एमसीडी में 15 सालों से भाजपा निकम्मेपन के बावजूद चौथी बार उसे वापसी करने का मौका देगी। इसकी उम्मीद बहुत कम है। कांग्रेस अभी दिल्ली में सशक्त नहीं है। इसलिए भाजपा के खिलाफ जारी एंटी इंकम्बेंसी का लाभ आप को मिल सकता है।
15 साल से MCD में काबिज है भाजपा
दरअसल, दिल्ली नगर निगम (MCD) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) पिछले 15 सालों से शासन कर रही है। पिछले एमसीडी चुनाव में (2017) भाजपा ने कुल वार्डों में से दो-तिहाई पर जीत हासिल की थी। 2017 में BJP ने न सिर्फ जीत की हैट्रिक बनाई, बल्कि 2017 में (181 सीट) 2012 (138 सीट) से भी ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया। आम आदमी पार्टी ने पहली बार 2017 के एमसीडी चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई थी। पार्टी 49 वार्डों में जीतने में सफल भी रही थी। आप चुनाव तो नहीं जीत पाई, लेकिन उसने दिल्ली एमसीडी से कांग्रेस की विपक्ष की भूमिका जरूर छीन ली। कांग्रेस ने 2017 में केवल 31 वार्ड जीते थे। 2017 में दिल्ली में आप की मजबूती से भाजपा को उसका लाभ मिला था। पहले एमसीडी में भाजपा और कांग्रेस के बीच बाइपोलर मुकाबला हुआ करता था, लेकिन आप के आने के बाद यह त्रिकोणीय संघर्ष बन गया। पिछली बार AAP ने सीट और वोट शेयर दोनों के मामले में कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया था। बसपा जो एक महत्वपूर्ण वोट शेयर के साथ दिल्ली में तीसरी पार्टी हुआ करती थी, लगभग गायब ही हो गई है। 2019 के लोकसभा चुनावों को छोड़कर AAP वोट शेयर और सीट शेयर के मामले में लगातार दो बार शामिल रही। दोनों बार आप और भाजपा के बीच ही मुकाबला देखने को मिला। यही वजह है कि इस बार एमसीडी चुनाव में भी भाजपा ओर आप के बीच ही मुकाबला है। इस बार आप की संभावना इसलिए ज्यादा है कि अगर आप अपने पिछले 26 प्रतिशत मतदाताओं से ज्यादा समर्थन हासिल कर पाई तो वो भाजपा का सीधे नुकसान होगा। चूंकि दिल्ली में केजरीवाल की सरकार है, इसलिए निकाय चुनावों में लाभ उठाना उसके लिए कठिन नहीं है।
2017 में AAP को न केवल बसपा की कीमत पर फायदा हुआ था, बल्कि कांग्रेस ( Congress ) के लगभग 10 फीसदी और निर्दलीय वोट शेयर का पांच फीसदी हिस्सा भी मिल गया। यानि इस बार आप के जनाधान में बढ़ोतरी का मतलब होगा भाजपा का जनाधर सिकुड़ना। आप इसी फिराक में है कि कैसे भी वोट प्रतिशत के मामले इस बार भाजपा को पीछे छोड़ा जाए। अगर ऐसा हुआ तो आप की जीत भी लगभग तय है। AAP ने अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में 2015 और 2020 में दो विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की लेकिन जब भी लोकसभा और नगर निगम चुनाव जैसे अन्य चुनावों की बात आई, तो यह लड़खड़ा गया। इस मामले में आप कोई चूक नहीं करना चाहती है।
आप के सामने भाजपा के वोटबैंक में सेंध लगाने की चुनौती
Delhi MCD Election : AAP ने पिछले दो दिल्ली विधानसभा चुनावों में मुस्लिम और दलित वोट हासिल किए, जिससे पार्टी को दोनों बार व्यापक बहुमत हासिल करने में मदद मिली। गुजरात में केजरीवाल का हिंदुत्व कार्ड दिल्ली में पार्टी को महंगा पड़ सकता है, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी में मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग आप की राजनीति के डिजाइन से नाखुश है। लगभग एक महीने पहले, AAP ने सीएम केजरीवाल को किसी भी विवाद से दूर रखने के लिए अपने दलित चेहरे और मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को हटा दिया। इससे गुजरात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता था लेकिन ऐसा लगता है कि इस कदम से दलित मतदाताओं का एक वर्ग नाराज हैं। यानि आप को एमसीडी में जीत हासिल करने के लिए भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की जरूरत है। ये काम आप भाजपा के अंदर टिकट आवंटन को लेकर दर्जनों सीटों पर अंतरविरोध का लाभ उठाकर कर सकती है। यहां पर सवाल यह है कि क्या केजरीवाल अपनी सेना के दम पर ऐसा कर पाएंगे?