नीतीश कुमार के नेतृत्व में मोदी को मात देने की फुल तैयारी, पटना में आज होगी 2014 के बाद से विपक्षी नेताओं की अब तक की सबसे बड़ी बैठक
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Election 2024 : बिहार की राजधानी पटना में आज 22 जून को विपक्षी दलों की एक बड़ी बैठक होने जा रही है, जिसकी बेचैनी विदेश पहुंचे प्रधानमंत्री के भीतर भी साफ-साफ दिखायी दे रही है। माना जा रहा है कि चुनाव 2024 में मोदी सरकार को मात देने के लिए विपक्षी दलों का यह एका अगर काम कर गया तो अगली सरकार भाजपा की नहीं बन पायेगी। इसी बैठक से पहले की छटपटाहट है कि मोदी सरकार के अंडर काम करने वाली ईडी का छापा कल 21 जून केा विपक्षी दलों के प्रमुख चेहरों में शामिल संजय राउत और उद्धव ठाकरे की करीबियों के यहां छापेमारी जारी है। जैसा कि राहुल गांधी समेत विपक्ष के तमाम नेता कहते आ रहे हैं यह विपक्ष को डराने का मोदी सरकार का बड़ा हथकंडा है।
विपक्षी दलों की यह बैठक जदयू मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुलाई है और माना जा रहा है कि यह बैठक 2024 का सारा रोडमैप तैयार कर देगी। ऐसा पहली दफा है जब विपक्ष के पंद्रह बड़े नेता एक साथ बैठने वाले हैं। इनमें तेजस्वी यादव, राहुल गांधी, शरद पवार, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव समेत कई चेहरे शामिल होंगे।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यानी 2014 से लेकर 2023 बीच ऐसी कोई बैठक नहीं हुई है, जिसमें विपक्ष के ये सभी नेता एक साथ मौजूद रहे हों। यह पहली बार है जब पटना में सारे विपक्षी नेता मौजूद रहेंगे। ऐसे में यह समझना बहुत आसान है कि इस बैठक के लिए नीतीश कुमार ने किस तरह तैयारी कर रखी है, ताकि भाजपा को 2024 में टक्कर दी जा सके।
यह बैठक उसी बिहार में होने जा रही ह जहाँ से इंदिरा गांधी के तानाशाही वाली सरकार की जड़ें हिल गई थीं और वह काम जयप्रकाश नारायण ने विपक्ष को एक करके किया था। कम्युनिस्ट, समाजवादी, संघी, जनसंघी और तमाम निर्दलीय तथा देश की बेहतरी चाहने वाले लोग उस समय एक हो गए थे, क्योंकि इंदिरा गांधी उस समय उस रूप में दिखाई दे रही थीं जिस रोल को आजकल प्रधानमंत्री मोदी निभा रहे हैं।
यह बैठक कितनी असरकारी होगी इस बात का अंदाजा सिर्फ इससे लगाया जा सकता है कि भाजपा के भीतर इसको लेकर भयंकर बेचैनी है। प्रधानमंत्री मोदी इन दिनों जो बाइडन के बुलावे पर अमेरिकी यात्रा पर हैं, लेकिन उनकी चिंताएं और उनका मन पटना में अटका हुआ है। पटना में जो होने जा रहा है, उसकी उम्मीद भाजपा ने नहीं की थी। भाजपा मानकर चल रही थी कि अखिलेश यादव और ममता बनर्जी ने अलग से बैठक की थी और जदयू, राजद, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां दूसरी तरफ दिखाई दे रही थीं।
असल में यह भाजपा की ये चाहत है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदीभाषी राज्य जहाँ से 120 लोकसभा की सीटें आती हैं, अगर यहां विपक्ष को मात दे दी जाये तो उत्तर भारत का कोई दूसरा राज्य ऐसा नहीं बचेगा जहां भाजपा कमजोर पड़ेगी। भाजपा की इस चाहत को नीतीश कुमार बखूबी समझते हैं और इस बात को और ताकतपूर्वक मल्लिकाअर्जुन खड़गे जैसा नेता समझता है जो अनेकों बार मोदी जैसे नेताओं से टकराता रहा है। इस बात का अहसास युवा राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरे राहुल गांधी को है और बिहार में राजद की डोर संभाल रहे तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव को भी है। इसी बात का एहसास ममता बनर्जी को भी है, तभी विपक्ष के इस एक तराजू पर आने को कहा जा रहा था। विपक्ष के इस एका से आने वाले समय में सिर्फ मोदी की चिंता की लकीरें ही नहीं बढ़ेंगी, बल्कि आरएसएस को अपनी रणनीति भी बदलनी पड़ जाएगी।
यानी भाजपा सिर्फ हिंदुत्व के दम पर अगला चुनाव 2024 नहीं जीत पायेगी, लेकिन अभी प्रधानमंत्री मोदी मुगालते में हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि तीर से लेकर तलवार तक मैं ही हूँ, भाजपा में ग्राम प्रधान से लेकर सांसद तक मेरे ही नाम पर जीतते हैं फिर यह कैसे संभव है कि मैं तीसरी बार प्रधानमंत्री न चुना जाउं। मगर प्रधानमंत्री मोदी के इसी अहंकार को तोड़ने में मील का पत्थर साबित होने वाली है आज की बैठक, जो साबित कर देगी कि विपक्ष उत्तर भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और साथ ही पश्चिम के सबसे महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र में कैसी कैसी एकता बनाती है, क्योंकि इस बैठक में चाणक्य कहे जाने वाले विपक्ष के शरद पवार की मौजूदगी भी रहेगी।
अब तक जैसा लग रहा है, अगर विपक्ष इसी तेवर तैयारी के साथ रणनीतिगत तौर पर चुनाव लड़ता है तो आरएसएस की उन चालों को मात देने में सफल होगा और शहरी मध्यवर्ग का एक हिस्सा अपने पक्ष में करने में सफल रहा तो जाहिर तौर पर उसको कोई हरा नहीं पाएगा। मोदी जो तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं, वह चूर.चूर हो जाएगा। मगर इसकी पहली शर्त यह होगी कि विपक्ष की एकता बनी रहे और वह एकता सिर्फ सेकुलरिज्म के नाम पर भरमाने वाली न हो, बल्कि सही मायन में कल के बाद से मई 2024 से पहले तक अगर विपक्ष एक रहा और ताकतपूर्वक उसने महंगाई, बेरोजगारी, धार्मिक उन्माद और असुरक्षा-सुरक्षा, मणिपुर से लेकर कश्मीर जैसे सवाल को जनता के बीच ले जाने में सफल रहा तो यकीन मानिए कि मोदी कल की बात हो जाएंगे।
ऐसा इसलिए भी लग रहा है कि लोग चौतरफा परेशान हैं, लेकिन मोदी की पार्टी के पास मात्र एक दवा है जिसका नाम सांप्रदायिकता है। हिंदू संकट में है, कहकर जनता को भरमाना इनका एकमात्र काम है। देश का सही मायनों में विकास करना है तो यह जिम्मेदारी विपक्ष की है कि कैसे नीतीश कुमार का साथ जयप्रकाश नारायण की तरह दे। अभी तक तो देश का एक हिस्सा और खासकर भाजपा विपक्ष की तरफ से जो षड्यंत्रकारी प्रचार करवा रही है, उससे जनता के बीच यह संदेश जा रहा है कि नीतीश कुमार खुद प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। सवाल ये है कि अगर नीतीश कुमार खुद प्रधानमंत्री बनने की चाहत रखते हैं तो जाहिर तौर पर विपक्ष की एकता में दरार आएगी।
हालांकि नीतीश कुमार कह रहे हैं कि यह भाजपा की नीति है और वह प्रचारित करवा रही है कि मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं। विपक्ष की एकता न बन पाए, इसलिए वह ऐसा कर रही है। यही स्थिति ममता बनर्जी के साथ भी है। रणनीतिगत तौर पर भाजपा कोशिश करती रहती है कि ममता भी अपने को प्रधानमंत्री के तौर पर सामने लायें। विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री बनने की चाहत रखने के कई चेहरे जनता के सामने लाकर भाजपा इस एका का बंटाधार करना चाहती है, क्योंकि इससे आखिरकार जनता बंट जायेगी। जनता मान लेगी कि विपक्ष के जब इतने टुकड़े हैं तो आखिर प्रधानमंत्री के रूप में मोदी क्या बुरे हैं।
इन तमाम चालों के बीच जब आज विपक्ष एकजुट होता नजर आ रहा है तो प्रधानमंत्री मोदी के भी हाथ पांव फूल रहे हैं। पटना में विपक्ष की होने जा रही इस मेगा बैठक का अंदाजा न प्रधानमंत्री मोदी को था और न ही उनकी पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को। विपक्ष की आज की बैठक में बहुत कुछ तय हो जाएगा। यह बैठक 2024 का भविष्य तय करने में बेशक मील का पत्थर होगी। लोकतंत्र बहाली की जरूरत देश महसूस कर रहा है और हमारा देश एक बार फिर तानाशाही के के उस मोड़ पर है, जहाँ से बिहार की धरती से जन्मे जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी को दिन में तारे दिखा दिये थे।
देखना ये है कि क्या बिहार की धरती से ही जन्मे नीतीश कुमार ऐसा कोई कमाल कर पाते हैं या फिर आज की बैठक असफल होती है। आज की बैठक से उम्मीद की जानी चाहिए कि यह सही मायनों में युवाओं का एक नया नेतृत्व भारत को दे, इसकी उम्मीद की जानी चाहिए। भारत को एक नए और ताकतवर विपक्ष की जरूरत है। देश को लोकतंत्र की जरूरत है, तानाशाही और धार्मिक उन्माद से उबरने की जरूरत है, देश बिल्कुल नहीं चाहता कि यह कभी कश्मीर बने और कभी नया मणिपुर बने।