योगी कैबिनेट 1 में डिप्टी CM रहे दिनेश शर्मा को आखिर क्यों नहीं किया गया योगी कैबिनेट 2 में शामिल?
योगी कैबिनेट 1 में डिप्टी CM रहे दिनेश शर्मा को आखिर क्यों नहीं किया गया योगी कैबिनेट 2 में शामिल? (Photo : facebook)
Dr. Dinesh Sharma Former Deputy CM Dropped From Yogi Cabinet : डॉ. दिनेश शर्मा को 2017 में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर यूपी में भाजपा ने डिप्टी सीएम बनाया था। सोशल इंजीनियरिंग को साधने के लिए भाजपा ने दो डिप्टी सीएम बनाए। इनमें एक पिछड़ा वर्ग से और दूसरा ब्राह्मण वर्ग था। इस बार भी ऐसा ही है। बस ब्राह्मण चेहरा बदल गया है।
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय सिंह कहते हैं, 'भाजपा ने जिस उम्मीद के साथ दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया था, वे उस पर खरे नहीं उतरे सके। जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप लग रहे थे, तब दिनेश शर्मा आक्रमता के साथ उसका जवाब नहीं दे पा रहे थे। उनकी जगह ब्रजेश पाठक ने कमान संभाली और योगी पर लग रहे हर तरह के आरोपों का खुलकर जवाब दिया। मंत्रिमंडल में इसका असर देखने को मिल रहा है। पाठक के प्रमोशन की बड़ी वजह यही है।'
दिनेश शर्मा के बाद अब दूसरा सवाल ये है कि योगी कैबिनेट से केशव प्रसाद मौर्य को क्यों नहीं हटाया गया? वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव कहते हैं, 'केशव मौर्य 2017 के चुनाव के समय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में ही भाजपा ने 300 से ज्यादा सीटें जीतीं। तब वह मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में थे, लेकिन उन्हें डिप्टी सीएम का पद मिला। केशव पिछड़ा वर्ग के बड़े नेता बन चुके हैं। 2017 और फिर 2019 में भी उन्होंने पार्टी के लिए बहुत मेहनत की।'
श्रीवास्तव आगे बताते हैं, 'इस बार भी जब पिछड़े वर्ग के कई नेता पार्टी छोड़ रहे थे, तो केशव प्रसाद ने मजबूती के साथ पार्टी का ग्राफ बढ़ाया। वह अपनी सीट की बजाय पूरे प्रदेश में प्रचार करते रहे। चुनाव प्रचार में उनकी डिमांड भी काफी थी। चुनावी माहौल में उन्होंने 100 से ज्यादा रैलियां अकेले कीं। तमाम विरोधी लहर के बावजूद भाजपा ने जीत हासिल की। ये अलग बात है कि वे खुद अपनी सीट पर हार गए। ऐसे में पार्टी उनकी अहमियत अच्छी तरह से जानती है। इसलिए उन्हें वापस वही सम्मान दिया गया।'
सब कुछ परफॉर्मेंस और राजनीतिक गुणा गणित से जुड़ा है। इसके लिए पिछले चुनावों को याद करना होगा। तब 15 साल बाद यूपी में सत्ता में बीजेपी की वापसी हुई थी। योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाया गया था। हालांकि, जातिगत समीकरणों का संतुलन साधने के लिए उनके साथ दो डिप्टी सीएम को भी गद्दी पर बैठाया गया था। इनमें एक थे केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे थे दिनेश शर्मा। केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी का बड़ा ओबीसी चेहरा माने जाते हैं। वहीं, लखनऊ के मेयर रहे दिनेश शर्मा को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर 2017 में योगी सरकार में जगह मिली थी।
जहां तक ब्रजेश पाठक का सवाल है तो वह 2017 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। इसके पहले वह बहुजन समाज पार्टी में थे। योगी सरकार बनने के बाद पाठक के कंधों पर न्याय और कानून का विभाग सौंपा गया था। इस दौरान लगातार उनकी छवि ब्राह्मण नेता के तौर पर मजबूत होती गई। बीजेपी के आलाकमान को उनके काम करने का तरीका भी पसंद आया। योगी सरकार की सत्ता में वापसी होने पर उन्हें दिनेश शर्मा की जगह डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया।
दूसरी तरफ दिनेश शर्मा डिप्टी सीएम के तौर पर अपनी वैसी आक्रामक छवि नहीं बना पाए, जिसकी उनसे अपेक्षा थी। चुनावी कैंपेन के दौरान योगी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप लगे। विपक्ष ने उन पर तीखा हमला किया। यह अलग बात है कि दिनेश शर्मा इसका जवाब देने में नाकाम साबित हुए। बीजेपी को दिनेश शर्मा के बजाय ब्रजेश पाठक में वो खूबियां दिखाई दीं। वह ब्राह्मणों के मुद्दों पर ज्यादा आक्रामक रहे हैं।