Harish Rawat : हरदा करना चाहे एक तीर से तीन शिकार, प्रीतम-दलित और हरिद्वार!
Harish Rawat : हरदा करना चाहे एक तीर से तीन शिकार, प्रीतम-दलित और हरिद्वार!
सलीम मलिक की रिपोर्ट
Harish Rawat : बिना नेता-प्रतिपक्ष का चुनाव किये पांचवी विधानसभा के पहले सत्र में हिस्सा ले रही कांग्रेस (Congress) में नेता-प्रतिपक्ष का चयन टेढ़ी खीर साबित होता जा रहा है। हरीश रावत (Harish Rawat) की तीखी बयानबाजी के तीरों से सकपकाई कांग्रेस पार्टी कांग्रेस विधायक मण्डल द्वारा नेता-प्रतिपक्ष चुनने का अधिकार राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को दिए जाने के बाद भी पार्टी नेता-प्रतिपक्ष के चयन का साहस नहीं जुटा पा रही है।
सूत्रों के अनुसार उम्र के इस ढलान पर खड़े कांग्रेस (Congress) के दिग्गज नेता के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। निकट भविष्य में भी उनके लिए कुछ खास नहीं है। इसलिए अब वह खुलकर अपना आखिरी दांव चलने में कोई परहेज नहीं कर रहे हैं। नेता-प्रतिपक्ष के लिए हरीश रावत यह पद विरोधी कैम्प को न दिए जाने पर खुलकर अड़ चुके हैं। अपने ऊपर पैसे लेकर टिकट बांटने से तिलमिलाए हरीश रावत अब एक ही तीर से तीन शिकार करने के मूंड में आ चुके हैं। टिकट बेचने के आरोपों की जांच के लिए कांग्रेस भवन पर धरना देने की घोषणा कर पार्टी हाईकमान को दबाव में लेकर हरीश अब विरोधी प्रीतम कैम्प को निपटाने के साथ-साथ अपने कैम्प के विधायक को नेता-प्रतिपक्ष बनाकर अपने भविष्य का भी रास्ता साफ करना चाह रहे हैं।
मालूम हो कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी में गुटबाजी चरम पर पहुंच गई है। हरीश रावत विरोधियों पर भीतरघात के तो विरोधी उन पर चुनाव के दौरान टिकट बेचने के इल्जाम लगा रहें हैं। अपने ऊपर टिकट बेचने के आरोप से आगबबूला हरीश रावत ने जांच के लिए अपनी ही पार्टी के प्रदेश कार्यालय पर धरना देने की चेतावनी दे दी है। हरीश रावत के तल्ख तेवरों से उन्हें राजनैतिक संजीवनी देने वाले हरिद्वार का भी राजनैतिक पारा चढ़ गया है।
अल्मोड़ा लोकसभा से लगातार हार मिलने के बाद वर्ष 2009 में हरिद्वार गंगा मैय्या की शरण में पहुंचे हरीश रावत के राजनैतिक जीवन को उस समय संजीवनी मिली थी, जब यहां की जनता ने उन्हें फिर से चुनकर संसद में भेजा था। इसके बाद केंद्र सरकार में हरीश रावत को राज्यमंत्री फिर केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी से नवाजा गया था। लेकिन हरीश रावत के सांसद बनने के बाद से ही दूसरा धड़ा सक्रिय हो जाने से उनकी पत्नी के 2014 में यहां से लोकसभा चुनाव लड़ने पर उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। उस दौरान भी भीतरघात को लेकर काफी हल्ला हुआ था। तीन साल बाद विधानसभा चुनाव में भी हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण सीट से चुनाव हार गए थे।
इसके बाद से यहां कांग्रेस दो गुटों में बंटती चली गई। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में भीतरघात के बाद अपनी पुत्री अनुपमा रावत के चुनाव जीतने से उत्साहित हरीश रावत ने बदली परिस्थिति में अपनी रणनीति बदल दी। मुख्यमंत्री न बनने की टीस को कम करने के लिए वह अब हरिद्वार लोकसभा सीट पर नजर जमा चुके हैं। हरिद्वार में हरीश रावत का अनुभव कुमाउं व तराई के मुकाबले कम खट्टा रहने की वजह से दलित-मुस्लिम समीकरण साधकर हरिद्वार के रास्ते संसद जाने की जुगत में जुट गए हैं। इस मार्ग को प्रशस्त करने के लिए वह हाईकमान को नेता-प्रतिपक्ष मुद्दे पर पूरा दबाव में लेने की जुगत में हैं।
नेता-प्रतिपक्ष के लिए उनकी ओर से हरिद्वार जिले की भगवानपुर सीट से विधायक ममता राकेश के नाम की पैरवी भी इसीलिए होने लगी है, जिससे हरिद्वार के दलित वोटों को भी साधा जा सके। कांग्रेस भवन पर धरना देने की धमकी के पीछे भी उनकी यही रणनीति काम कर रही है। ममता राकेश के नेता-प्रतिपक्ष बनने से जहां प्रीतम कैम्प टूट की कगार पर पहुंचेगा तो वहीं हरिद्वार के दलित वोटर्स को भी रिझाया जा सकेगा। फिलहाल हरीश एक ही तीर से प्रीतम-दलित वोट और हरिद्वार को निशाना बनाने की इच्छा रखते दिख रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या हाईकमान हरीश के सामने इतना झुक सकेगा कि उनकी सब इच्छाएं पूरी हो जाएं या इस बार हरीश को ही मुंह की खानी पड़ेगी ?