HP Chunav 2022 : हिमाचल में सत्ता विरोधी ट्रेंड रहेगा बरकरार या केरल और उत्तराखंड वाला आयेगा नतीजा!

HP Chunav 2022 : हिमाचल में सत्ता विरोधी ट्रेंड रहेगा बरकरार या केरल और उत्तराखंड वाला आयेगा नतीजा!
एचपी चुनाव 2022 पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट
HP Assembly Election 2022 : तीन दिन बाद यानि 10 नवंबर को हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर जारी सियासी घमासान और प्रचार पूरी तरह से थम जाएगा। कुल 68 सीटों के लिए 12 नवंबर को वोट 55 लाख से अधिक वोटर्स अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसके साथ ही उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद हो जाएगा। चुनाव नतीजे 8 दिसंबर को आएंगे। पिछले तीन दशक के विधानसभा चुनाव के इतिहास के इतर इस बार कांटे की टक्कर तो कांग्रेस ( Congress ) और भाजपा ( BJP ) के बीच ही है लेकिन आम आदमी पार्टी ( AAP ) की एंट्री से मुकाबला त्रिकोणीय जैसा लगता है। अगर ऐसा हुआ तो सवाल यह उठता है कि वहां पर आप ( AAP ) की वजह से नुकसान किसका होगा। कांग्रेस का नुकसान हुआ तो केरल या उत्तराखंड वाला परिणाम आएगा। भाजपा को नुकसान होने की स्थिति में तीन दशक पुराना ट्रेंड बरकरार रहेगा। यानि कांग्रेस हिमाचल में सरकार बनाएगी।
वैसे हिमाचल प्रदेश चुनाव ( HP Chunav 2022 ) में एंटी इनकंबेंसी फैक्टर ( anti incombency ) चरम पर है। लोग सीएम जयराम ठाकुर का पसंद नहीं करते हैं। पिछले पांच सालों में हिमाचल में बेरोजगारी बढ़ी है। लोग महंगाई से परेशान है। ऐसे में भाजपा की सारी उम्मीदें पीएम मोदी के करिश्मे पर आकर टिक गई है। हिमाचल में भाजपा की स्थिति का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि कुछ दिन पहले एक चुनावी कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर पूरी तरह से हताश नजर आये। उनके चेहरे से साफ पढ़ा जा रहा था कि भाजपा चुनाव हारने जा रही है।
ABP C-VOTER Survey
कुछ दिनों पहले ही हिमाचल की जनता का मूड जानने के लिए एबीपी न्यूज के लिए सी वोटर ने ओपिनियन पोल किया था। इस ओपिनियन पोल में सवाल किया गया कि हिमाचल विधानसभा चुनाव प्रचार में अभी तक भाजपा को बढ़त मिलेगी या कांग्रेस को? इस सवाल के चौंकाने वाले जवाब मिले हैं। सर्वे में 47 प्रतिशत लोगों ने कहा कि हिमाचल प्रचार में अभी भारतीय जनता पार्टी को बढ़त है। 31 प्रतिशत लोगों का कहना है कि हिमाचल में प्रचार में अभी कांग्रेस पार्टी को बढ़त है। वहीं 22 प्रतिशत लोगों कहा कि उनको इस बारे में नहीं पता है।
वोटिंग स्विंग दर ज्यादा मतलब भाजपा के लिए खतरा
ओपिनियन पोल के रिजल्ट ट्रेंड से हटकर हैं। इस बात को मान लें भी तो हिमचाल प्रदेश के लिहाज से दो बातें महत्वपूर्ण है। पहला, हिमाचल प्रदेश में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है। यह ट्रेंड पिछले तीन दशकों से जारी है। कांग्रेस और भाजपा के बीच सत्ता का हस्तांतरण होता रहा है। दूसरा, यह उन कुछ राज्यों में से है जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई होती रही है। दोनों दलों को लगातार स्थिर वोट शेयर का लगभग 40 प्रतिशत या उससे ज्यादा मत मिलता रहा है। लोकसभा चुनाव 2019 को इसका अपवाद है। जब कांग्रेस का वोट शेयर 27 प्रतिशत तक गिर गया था। खास बात यह है कि हिमाचल में दोनों पार्टियों के बीच हमेशा से नेक-टू-नेक फाइट की स्थिति ही है।
वैसे गुजरात, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तीन ऐसे राज्य हैं जहां 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 60 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। उनमें से 2019 में हिमाचल प्रदेश में भाजपा का वोट शेयर सबसे अधिक था। प्रदेश के कुल मतदान का दो-तिहाई यानि 69 प्रतिशत से अधिक मतदाताअें ने भाजपा के पक्ष में वोट डाला था। 2019 की लोकसभा में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर का अंतर 42 प्रतिशत था, जो भारत के किसी भी अन्य राज्य में सबसे अधिक था।
भाजपा के पक्ष में वोट शेयर का यह विशाल अंतर राज्य में भगवा पार्टी के बड़े पैमाने पर प्रभुत्व का संकेत है। इस लिहाज से भाजपा को आसानी से चुनावी जीत मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसा है नहीं। ऐसा इसलिए कि हिमाचल के उपुचनावों में भाजपा करारी हार मिली है। फिर विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा के वोट शेयर में काफी उछाल आया था। जबकि यहां पर सियासी स्विंग दर बहुत अधिक है। विधानसभा चुनावों में औसतन भाजपा का वोट शेयर राज्य विधानसभा चुनाव में लगभग दस प्रतिशत नकारात्मक रूप से झूलता है। छोटे राज्यों में यह स्विंग दोगुना हो जाता है। उदाहरण के लिए 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद, हरियाणा (22 प्रतिशत), झारखंड (19 प्रतिशत), और उत्तराखंड (18 प्रतिशत) भाजपा के वोट शेयर में गिरावट आई। इस लिहाज से भाजपा को हिमाचल में लोकसभा से इतर 50 फीसदी से कम वोट मिलना तय है।
सत्ता परिवर्तन हिमाचल का ट्रेंड है
अगर ऐसा होता है और भाजपा हारती है तो भी इसमें आश्चर्य की बात नहीं है। हिमाचल प्रदेश में 1990 के बाद से प्रत्येक विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को उससे बेदखल होना पड़ा है। 2021 में हिमाचल प्रदेश में हुए उप-चुनाव भी इसी रुझान का संकेत देते हैं। भाजपा ने न केवल एक बड़ा वोट शेयर खोया, बल्कि सभी चार सीटें भी खो दीं। यानि हिमाचल प्रदेश में दो बातें स्पष्ट हैं। एक लोकसभा में भाजपा का वोट शेयर विधानसभा चुनावों की तुलना में अधिक है। दूसरा भाजपा ने राज्य के चुनावों में एक महत्वपूर्ण वोट शेयर खो दिया है। इसका मतलब यह है कि इस बार भाजपा का सत्ता से बेदखल होने की संभावना अधिक है। 2021 में मंडी लोकसभा क्षेत्र के साथ तीन विधानसभा सीटों अर्की, फतेहपुर और जुब्बल-कोटखाई में उपचुनाव हुए। चारों सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की। जबकि भाजपा ने 2019 में चारों सीटें जीती थी।
केरल और उत्तराखंड के परिणाम तो कुछ और ही आये
हालांकि, उप-चुनाव परिणामों और विधानसभा चुनाव परिणामों के बीच संबंध कमजोर है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि केरल और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने सत्ताधारी दल को एंटी इनकंबेंसी के बावजूद सरकार बनाने का वहां के मतदाताओं ने मौका दिया है। केरल में एंटी इनकंबेंसी चरम पर होने के बावजूद पी विजयन की सरकार कांग्रेस को मात देकर सत्ता में वापसी की। इसी तरह उत्तराखंड विधानसभा चुनाव भाजपा की हार तय माना जा रहा था, पर मतदाताओं के समर्थन से भाजपा की सरकार बनी।
68 सीटों पर होगा 12 नवंबर को मतदान
HP Assembly Election 2022 : हिमाचल प्रदेश की कुल 68 विधानसभा सीटों के लिए 12 नवंबर को मतदान होगा। चुनाव परिणाम 8 दिसंबर को आएंगे। फिलहाल हिमाचल प्रदेश में सियासी घमासान चरम पर है। यह चुनाव दो कारणों से अहम हो गया है। कुल 55,07,261 मतदाता हैं। इनमें 27,80,208 पुरुष, 27,27,016 महिला और 37 थर्ड जेंडर के मतदाता शामिल हैं। जबकि दिव्यांग मतदाताओं की संख्या बढ़कर 56,001 हो गई है।










