क्या प्रशांत किशोर फैक्टर काम कर रहा है हरियाणा कांग्रेस में असंतोष के पीछे ?
(थर्ड फ्रंट के प्रमुख रणनीतिकार प्रशांत किशोर का मानना है कि थर्ड फ्रंट में हुड्डा की बजाय ओम प्रकाश चौटाला बेहतर विकल्प हो सकते हैं।)
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। अभी हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assebmly Election) में तीन साल का समय है, इसके बाद भी प्रदेश कांग्रेस (Haryana Congress) में असंतोष क्यों पनप रहा है। क्यों हुड्डा गुट कुमारी शैलजा (Kumari Shailja) को प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाना चाह रहा है? हुड्डा गुट के 19 विधायक पार्टी प्रभारी विवेक बंसल (Vivek Bansal) से मिल कर कुमारी सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की गई है। यह मांग तब की गई,जब काफी समय से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा (Deependra Singh Hudda) पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी (Abhishek Banerjee) से मिल रहे हैं।
यह भी चर्चा प्रदेश में चल रही कि दीपेंद्र सिंह हुड्डा थर्ड फ्रंट में शामिल होना चाहते हैं। क्योंकि यह फ्रंट कांग्रेस और भाजपा मुक्त है। इसलिए हुड्डा को कांग्रेस छोड़ कर अपनी अलग पार्टी बनानी पड़ेगी।
पिछले दिनों ही हरियाणा के पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला भी जेल से रिहा होकर बाहर आ गए हैं। थर्ड फ्रंट के प्रमुख रणनीतिकार प्रशांत किशोर का मानना है कि थर्ड फ्रंट में हुड्डा की बजाय ओम प्रकाश चौटाला बेहतर विकल्प हो सकते हैं।
पर क्योंकि थर्ड फ्रंट के लिए दीपेंद्र सिंह हुड्डा से पहले से बातचीत चल रही है, अब उन्हें तीन माह का समय दिया गया है। यदि वह तीन माह के भीतर पार्टी बना सकते हैं, तो उनका थर्ड फ्रंट में स्वागत है। अन्यथा इनेलो के साथ गठबंधन कर लिया जाएगा।
प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि हुड्डा कांग्रेस में लगातार दबाव की रणनीति पर काम कर रहे हैं। उन्होंने किरण चौधरी को विधायक दल के पद से हटवा दिया था। इस पद पर वह स्वयं बैठ गए थे। इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट बंटवारे में सबसे ज्यादा हुड्डा की चली। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस के 31 विधायकों में हुड्डा सहित बीस से अधिक विधायक चुनकर आए।
तीन विधायक गुट निरपेक्ष हैं। यह भी कह सकते हैं कि वे अपने-अपने गुट के इकलौते विधायक हैं। ये हैं पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप, चौधरी बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी, कैप्टन अजय सिंह यादव के बेटे राव चिरंजीव।
बाकी विधायक सैलजा गुट में हैं। सैलजा स्वयं विधायक नहीं हैं। अब अपने समर्थक विधायकों के बल पर हुड्डा कांग्रेस नेतृत्व पर यह दबाव बना रहें कि कुमारी सैलजा को अध्यक्ष पद से हटाकर उसे अध्यक्ष बनाया जाए, जिसे वह कहें।
हुड्डा समर्थक 19 विधायक कांग्रेस के हरियाणा प्रभारी विवेक बंसल से मिल चुके हैं। हुड्डा ने कुछ ऐसी ही फील्डिंग चुनाव के पहले भी सजाई थी। अब उनके मनमुताबिक काम चल रहा है।
हरियाणा की राजनीति की समझ रखने वाले और दयाल सिंह कॉलेज के प्रोफेसर रामजी लाल कहते हैं कि हुड्डा काफी लंबे समय से बागी हो रहे हैं। उन्होंने इसके लिए बहुत ही सियासी चतुराई से काम किया है। अपने विरोधियों को धीरे धीरे खत्म किया है। अब एक मात्र प्रतिद्वंद्वी कुमारी सैलजा बचती है। इसे भी वह हटा कर अपने बेटे को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहते हैं।
लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है। क्योंकि यदि दीपेंद्र सिंह हुड्डा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाता है तो गैर जाट वोटर कांग्रेस से छिटक सकता है। इसका सीधा लाभ भाजपा को हो सकता है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में इनेलो भाजपा के लिए बड़ा खतरा बनकर उभर रही थी। लेकिन इनेलो दो फाड़ हो गई। दूसरा दल जेजेपी बन गया। जो इस वक्त भाजपा का सहयोगी है। किसान आंदोलन की वजह से जेजेपी की पकड़ कमजोर हो गई है। वोटर्स अब कांग्रेस की ओर आ रहा है। अब यदि दीपेंद्र सिंह हुड्डा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाता है तो इसका सीधा लाभ भाजपा को होता नजर आ रहा है।
क्योंकि प्रदेश की राजनीति जाट व नान जाट में बंट चुकी है। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर यह भी आरोप लगते हैं कि वह भाजपा के खिलाफ सॉफ्ट कार्नर रख रहे हैं। इसकी कई वजह है। एक वजह तो है कि हुड्डा के खिलाफ कई जांच चल रही है। महत्वपूर्ण मौकों पर हुड्डा प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर अपनी भूमिका दर्ज भी नहीं कराते। इसलिए उनके विरोधी इस तरह के आरोप लगाते है कि हुड्डा भाजपा के एजेंडे पर काम कर रहे हैं।
समाजशास्त्र के प्रोफेसर पर राजनीतिक चिंतक प्रोफेसर सज्जन सिंह का कहना है कि कांग्रेस में इस वक्त प्रदेशाध्यक्ष बदलने का वक्त तो कतई नहीं है। उन्होंने बताया कि हुड्डा सन 2005 में कांग्रेस नेतृत्व के लिए सीएम की पसंद नहीं थे। तब का चुनाव लड़ा तो भजनलाल के नेतृत्व में था, कांग्रेस को 65 सीटें मिली थी।
भजन लाल क्योंकि एक वक्त नरसिम्हा राव के नजदीक रहे हैं,इसलिए सोनिया गांधी उनसे नाराज थी। कांग्रेस नेतृत्व तो चौधरी बीरेंद्र सिंह को सीएम बनाना चाहते थे। लेकिन तब हुड्डा अहमद पटेल और विनोद शर्मा की पैरवी की वजह से सीएम बन गए थे। तब से लेकर अभी तक हुड्डा कांग्रेस में दबाव बनाए हुए हैं।
इस बार ऐसा नहीं लगता। इसकी वजह यह है कि सैलजा की एक तो सोनिया दरबार में सीधी पकड़ है। वह अपनी बात उनके सामने रख सकती है। दूसरा इस वक्त हुड्डा के पैरवीकार भी कमजोर हो गए हैं।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रदेश अध्यक्ष के पद पर दीपेंद्र हुड्डा को कांग्रेसी स्वयं भी नहीं चाहेंगे, क्योंकि उनके सीनियर तो रणदीप सुरजेवाला है। जो कि इस वक्त कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता है।
प्रोफेसर सज्जन सिंह ने बताया कि हुड्डा ने बेवक्त ही यह दांव खेल दिया है। इस वक्त राजस्थान और पंजाब में कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। अब हरियाणा में भी यह स्थिति बनती है तो निश्चित ही कांग्रेस को इसका नुकसान हो सकता है। लेकिन ऐसा लगता है, कांग्रेस इस नुकसान को उठाने का जोखिम लेगी ।