प्रतिरोध को दबाने के लिए UAPA समेत किसी भी आपराधिक कानून का इस्तेमाल गलत, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अपील
Supreme Court News : हम सुप्रीम कोर्ट की 'तारीख पे तारीख' वाली छवि को बदलना चाहते हैं, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की टिप्पणी
जनज्वार ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि विरोध या असहमति को दबाने के लिए आतंकवाद विरोधी कानून सहित आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारी अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नागरिकों को आजादी से वंचित करने के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति बनी रहें।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 12 जुलाई की शाम भारत-अमेरिका कानूनी संबंधों पर भारत-अमेरिका संयुक्त ग्रीष्मकालीन सम्मेलन में अपने संबोधन में यह टिप्पणी की। उन्होंने जोर देकर कहा कि नागरिकों को परेशान करने और उनकी स्वतंत्रता को छीनने के लिए किसी भी कानून को लागू नहीं किया जा सकता है।
अर्नब गोस्वामी मामले में अपने फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, आतंकवाद विरोधी कानून सहित आपराधिक कानून, नागरिकों को असंतोष या उत्पीड़न को दबाने के लिए दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नागरिकों को आजादी से वंचित करने के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति बनी रहें।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने रेखांकित किया कि एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता का ह्रास बहुत अधिक है और न्यायाधीशों को हमेशा अपने निर्णयों के गहरे प्रणालीगत मुद्दों के प्रति सचेत रहना चाहिए। उन्होंने कहा, एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता का नुकसान बहुत ज्यादा है। हमें अपने फैसलों में गहरे प्रणालीगत मुद्दों के प्रति हमेशा सचेत रहना चाहिए। भारत और अमेरिका, दुनिया के अलग- अलग कोने में हैं, लेकिन फिर भी एक गहरे सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध साझा करते हैं।
जस्टिस चंद्रचूड ने अमेरिकी कानून व्यवस्था की तारीफ करते हुए कहा कि अमेरिका का प्रभाव भारत के न्यायशास्त्र पर देखा जा सकता है। अमेरिका का प्रभाव भारत के संविधान के दिल और आत्मा पर देखा जा सकता है। अनुच्छेद-21 का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में नागरिक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा का अधिकार है, वहीं अमेरिका का बिल ऑफ राइट्स भी कहता है कि हर व्यक्ति को कानून की उचित प्रक्रिया पाने का अधिकार है।
गौरतलब है कि जस्टिस चंद्रचूड़ का यह बयान 84 वर्षीय एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी की मौत पर उपजी नाराजगी के बीच सामने आया है। दरअसल, स्टेन स्वामी को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत एल्गर परिषद मामले में गिरफ्तार किया गया था। स्वास्थ्य के आधार पर वह जमानत की लड़ाई लड़ रहे थे कि इसी बीच मुंबई स्थित जेल में उनका निधन हो गया। पिछले दिनों यूएपीए कानून के इस्तेमाल को लेकर कई मामले सुर्खियों में बनें।
17 महीने सलाखों के पीछे बिताने के बाद असम के कृषक नेता अखिल गोगोई जेल से बाहर आ गए। विवादास्पद नागरिकता कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन को लेकर उनके खिलाफ एक मामले के सिलसिले में उन्हें यूएपीए के तहत जेल में डाल दिया गया था। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने छात्र एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत प्रदान की है। उन्हें फरवरी 2020 की दिल्ली हिंसा के संबंध में यूएपीए के तहत बुक (प्राथमिकी) किया गया था। सरकार और पुलिस द्वारा यूएपीए के अंधाधुंध इस्तेमाल के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए अदालत ने उन्हें जमानत दी है।