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राजनीति

राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए पूरे देश में चुनाव लड़ेगी टीआरएस, नाम बदलकर हुआ बीआरएस

Janjwar Desk
6 Oct 2022 12:20 PM GMT
राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए पूरे देश में चुनाव लडेगी टीआरएस, नाम बदलकर हुआ बीआरएस
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राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए पूरे देश में चुनाव लडेगी टीआरएस, नाम बदलकर हुआ बीआरएस

केसीआर ने लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रखते हुए नई पार्टी बीआरएस लांच की है। उनकी नजर विपक्ष की ओर से पीएम पद के दावेदारी पर भी है।

नई दिल्ली। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ( K Chandrashekhar Rao ) ने विजयादशमी के दिन अपनी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए उसका नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति ( TRS ) से भारत राष्ट्र समिति ( BRS ) कर लिया है। इसके साथ ही उन्होंने खुद को और अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी उठा लिया है। यहां पर इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि केसीआर ( KCR ) ने लोकसभा चुनाव 2024 ( Lok Sabha Election 2024 ) को ध्यान में रखते हुए नई पार्टी लांच की है और उनकी नजर पीएम पद पर भी है।

क्या केसीआर देश को सियासी विकल्प दे पाएंगे

तेलंगाना ( Telangana ) से अपनी पार्टी का विस्तार राष्ट्रीय स्तर पर करने के लिए बीआरएस ( BRS ) के गठन से पहले वह ( ( K Chandrashekhar Rao ) ) पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन, केरला के पिनराई विजयन और ओडिशा के नवीन पटनायक से मुलाकात कर चुके हैं। इस बीच ये अहम सवाल भी चर्चा में है - क्या केसीआर बीआरएस के जरिए देश को कोई सियासी विकल्प दे पाएंगे?

BJP के खिलाफ नैरेटिव बनाने पर जोर

तेलंगाना में केसीआर ( KCR ) को अब कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी से नहीं बल्कि भाजपा से सीधे चुनौती मिल रही है। एआईएमआईएम की हैसियत भी सीधे चुनौती देने की नहीं है। यही वजह है कि बीआरएस को राष्ट्रीय फलक पर लोकप्रिय बनाने के लिए वह तेलंगाना से बाहर भाजपा को घेरने की कवायद में जुट गए हैं। तेलंगाना में अगले साल मई में विधानसभा के चुनाव होने हैं और भाजपा वहां तेजी से अपना विस्तार करने में जुटी हुई है। इसका जवाब देने के लिए केसीआर ने पिछले महीने ऐलान किया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता में गैर बीजेपी सरकार आती है तो देशभर के किसानों को मुफ्त बिजली दी जाएगी।

दक्षिण से पहले भी कई नेता कर चुके है कोशिश

लोकसभा चुनाव 2024 ( Lok Sabha Election 2024 ) से पहले केसीआर नेशनल पार्टी बनाने का ऐलान और लगातार विपक्ष को एकजुट करने की कवायद कर रहे हैं। केसीआर अब राष्ट्रीय राजनीति में उतरना चाहते हैं और उन्हें 2024 का चुनाव इसके लिए मुफीद लग रहा है। हालांक, केसीआर से पहले दक्षिण के कई नेताओं ने अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए कवायद कर चुके हैं, लेकिन सफल नहीं हो सके। 2019 के लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ही भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता का बीड़ा उठाया था, लेकिन सफल नहीं हुए।

नरसिम्हा और देवगौड़ा संयोग से बने थे पीएम

दक्षिण भारत से नरसिम्हा राव और एचडी देवगौड़ा ही प्रधानमंत्री बने। नरसिम्हा राव कांग्रेस से तब पीएम बने जब चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या हो गई थी और सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने से मना कर दिया था। इसके बाद एचडी देवगौड़ा 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार में पीएम बने थे। दोनों ही नेता पहले से बनी रणनीति के तहत नहीं बल्कि सियासी संयोग की वजह से पीएम बने थे।

अपने-अपने राज्यों तक सीमित रहे वहां के क्षत्रप

दोनों के अलावा दक्षिण भारतीय राज्यों के क्षत्रपों ने राष्ट्रीय राजनीति में हाथ-पैर मारने के बजाय खुद को अपने-अपने राज्यों तक सीमित रखा। तमिलनाडु में डीएमके या एआईडीएमके, आंध्र प्रदेश की जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस, कर्नाटक की जेडीएस, तेलंगाना में केसीआर भी अभी तक खुद को तेलंगाना तक ही सीमित रखे हुए थे। भाजपा से राज्य में मिल रही चुनौती के चलते उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का विस्तार करने का प्लान बनाया है।

दरअसल, केसीआर लगभग 8 सालों तक तेलंगाना के सीएम हैं। अब वह तेलंगाना की सियासत से निकल राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं। इसके लिए वह पिछले कुछ समय से कोशिश भी कर रहे हैं। विपक्षी एकता के लिए शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी जैसे नेताओं से मिल भी चुके हैं। किसान आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों और देश की सीमा पर शहीद होने वाले सेना के जवानों के परिवार को आर्थिक मदद भी की है। साथ ही वह लगातार पीएम मोदी पर हमला भी बोल रहे हैं। ताकि विपक्ष की ओर से वह विकल्प बन सकें।

ये है केसीआर का लक्ष्य

देश की कुल 545 में से 543 लोकसभा सीटों पर चुनाव होता है। इनमें से 131 संसदीय सीटें दक्षिण भारत से आती हैं। कर्नाटक में 28, तेलंगाना 17 में आंध्र प्रदेश में 25, तमिलनाडु में 39, केरल में 20, पुडुचेरी और लक्ष्यदीप में 1-1 सीट हैं। अगर कोई साउथ की पार्टी इन 131 लोकसभा सीटों में 100 सीटें जीतने की क्षमता रखती है तो उसके लिए राष्ट्रीय राजनीति में अपनी हनक जमाने से कोई नहीं रोक सकता। केसीआर भले ही राष्ट्रीय पार्टी बनाने की बात कर रहे हों, लेकिन उनके मन में दक्षिण की इन्हीं सीटों पर भाजपा को मात देने की रणनीति है।

देश की आजादी के 75 साल में पहले कांग्रेस का तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, संयुक्त आंध्र प्रदेश में वर्चस्व था, लेकिन उसके बाद सबसे पहले केरल में कम्युनिस्ट दलों ने कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बेदखल किया। उसके बाद तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके ने कांग्रेस को सत्ता से हटाया। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में टीडीपी, वाईएसआर, टीआरएस जैसे क्षेत्रीय दल ही पनपे। कर्नाटक में जेडीएस एक ताकत है।

यूं ही नहीं राहुल दक्षिण में दे रहे ज्यादा समय

दक्षिण में मोदी का जादू अभी तक नहीं चल पाया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा कर्नाटक और तेलंगाना में सीटें जीतने में सफल रही थी लेकिन केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में खाता तक नहीं खोल सकी। केसीआर राष्ट्रीय पार्टी बनाकर दक्षिण अस्मिता को जगाना चाहते हैं।कांग्रेस इस बात को बाखूबी से समझ रही है, जिसके चलते राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा का आगाज साउथ से शुरू किया है। यूपी में यूं ही नहीं राहुल गांधी कम समय दे रहे हैं। केसीआर की राजनीति और रणनीति ने उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य किया है।

भारत में है 6 राष्ट्रीय पार्टियां

बता दें कि भारत में वर्तमान में केवल 6 राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं। इनमें कांग्रेस, भाजपा, एनसीपी, टीएमसी, बीएसपी और सीपीएम को ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है। देश में पंजीकृत 2800 पार्टियों में से 2200 पार्टियां ऐसी हैं, जो अभी तक कोई चुनाव ही नहीं लड़ा। हाल ही में चुनाव आयोग ने ऐसे 87 गैर मान्यता प्राप्त दलों की लिस्ट से हटा दिया था। देश में 60 ही दल ऐसे हैं, जो मान्यता प्राप्त हैं। अब देखना है कि केसीआर बीआरएस को राष्ट्रीय पार्टी बना पाते हैं या नहीं।

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