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राजनीति

Mallikarjun Kharge Profile : कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की पूरी कहानी, 50 साल के राजनीतिक करियर में विवादों से हमेशा रहे दूर

Janjwar Desk
19 Oct 2022 9:16 AM GMT
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद केंद्र पर मल्लिकार्जुन खड़गे का पहला हमला, कहा - रुपए का गिरना देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक
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कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद केंद्र पर मल्लिकार्जुन खड़गे का पहला हमला, कहा - रुपए का गिरना देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक

Mallikarjun Kharge Profile : सक्षम और ईमानदार नेता की छवि वाले सीनियर लीडर मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन चुके हैं, उनके यहां तक पहुंचने का सफर फर्श से अर्श तक पहुंचने की एक प्रेरणादायी कहानी है और यहां हम आपको बताएंगे कि मलिकार्जुन खड़गे कौन हैं...

Mallikarjun Kharge Profile : सक्षम और ईमानदार नेता की छवि वाले सीनियर लीडर मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन चुके हैं। कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल गया है। मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) कांग्रेस के नए कप्तान बन गए हैं। करीब 24 सालों के बाद गांधी परिवार से बाहर कोई कांग्रेस का अध्यक्ष बना है। बता दें कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने 7897 वोटों से जीत हासिल की और शशि थरूर को करीब 1000 वोट मिले हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे 8 गुना ज्यादा वोटों से जीते हैं।

मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के तौर एंट्री अंतिम वक्त पर हुई और वो चुनाव जीत भी गए। यहां तक कि उनकी एंट्री के बाद कांग्रेस के 75 साल के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को भी अपना नाम वापस लेना पड़ा। अपना फॉर्म वापस लेकर उन्होंने खड़गे का प्रस्तावक बनने का फैसला किया। कर्नाटक के ये दलित नेता हमेशा से ही आलाकमान को भाए हैं।

बता दें कि मलिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के वफादार नेताओं में से एक माने जाते हैं। अगर केवल इस आधार पर ही मलिकार्जुन खड़गे के राजनीतिक कद और सफर पर कहानी खत्म कर दी जाए तो शायद ये उनके साथ न्याय नहीं होगा। उनके यहां तक पहुंचने का सफर फर्श से अर्श तक पहुंचने की एक प्रेरणादायी कहानी है और यहां हम आपको बताएंगे कि मलिकार्जुन खड़गे कौन हैं ?

मलिकार्जुन खड़गे के लिए कठिन रहा जिंदगी का सफर

12 जुलाई 1942 को दलित दंपत्ति मपन्ना खड़गे और सबव्वा के घर एक बालक का जन्म हुआ और इसका नाम पड़ा मपन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे। मलिकार्जुन खड़गे ने हैदराबाद के निजाम की रियासत में आने वाले बीदर जिले के वरावट्टी में दुनिया में पहली बार अपनी आंखें खोली। मौजूदा वक्त में यह जगह कर्नाटक में आती है। गुलबर्गा के नूतन विद्यालय से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने यहीं के सरकारी कॉलेज से कला से स्नातक की पढ़ाई की। कहा जाता है कि गरीब और दलित परिवार से आने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई में कोई कसर नहीं रखी।

मलिकार्जुन खड़गे को मिला मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री पद

मलिकार्जुन खड़गे की जिंदगी में टर्निंग प्वाइंट लेकर आया गुलबर्गा का सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज यहां से उन्होंने कानून की डिग्री ली और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपने इस करियर की शुरुआत न्यायमूर्ति शिवराज पाटिल की सरपरस्ती में की। शायद एक ऐसे तबके से आने के बाद उन्हें पता था कि दबा-कुचला जाना कैसा होता है, इसलिए उन्होंने अपने कानूनी करियर की शुरुआत में श्रमिक संघों के मुकदमों को तवज्जो दी और इन मुकदमों में जीत दर्ज की। यहीं वजह रही कि श्रम मामलों और कानून में उनकी काबिलियत की वजह से मनमोहन सिंह सरकार में उन्हें श्रम मंत्री का पद दिया गया।

कॉलेज के दिनों में रखा था राजनीतिक करियर में कदम

लंबे वक्त से कर्नाटक की राजनीति में सक्रिय और मजबूत नेता खड़गे की इस राजनीतिक करियर की नींव उनके कॉलेज के दिनों से ही पड़ गई थी, जिसमें वह धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। मौजूदा वक्त में 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) राज्यसभा में कांग्रेस के नेता विपक्ष हैं। साल 2021 की शुरुआत में गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई के बाद आलाकमान ने उन्हें ये पद सौंपा था।

छात्र संघ नेता के तौर पर के राजनीतिक करियर की शुरुआत

बता दें कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने राजनीतिक जीवन का आगाज एक छात्र संघ के नेता के तौर पर किया था। गुलबर्गा के सरकारी कॉलेज में उन्हें छात्रसंघ महासचिव के पद पर जीत हासिल हुई थी। इसके बाद से तो वह नेतृत्व करने की पोजिशन में रम गए। साल 1969 एमएसके मिल्स कर्मचारी संघ (MSK Mills Employees Union) के कानूनी सलाहकार बनाए गए। उन्होंने मजदूरों के हकों की लड़ाई के कई आंदोलनों का नेतृत्व भी किया। इसी के साथ उनकी राजनीतिक पहचान गहरी होती गई। मल्लिकार्जुन खड़गे संयुक्त मजदूर संघ (Samyukta Majdoor Sangha) के एक प्रभावशाली और दमदार श्रमिक संघ नेता बनकर उभरे।

1969 में मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस में हुए शामिल

साल 1969 में मल्लिकार्जुन खड़गे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमेटी (Gulbarga City Congress Committee) के अध्यक्ष बने। इसके बाद वह कर्नाटक की राजनीति में उनके सितारे चमकते देर नहीं लगीं। साफ और बगैर विवादों वाले इस दलित युवा को कांग्रेस ने दक्षिण राज्य कर्नाटक में हाथों हाथ लिया।

कांग्रेस परिवार से है गहरी नजदीकियां

अब हालात ये हैं कि वो कांग्रेस पार्टी की अतंरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के वफादार और भरोसे वाले नेताओं की कैटेगिरी में आते हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे की सक्रिय राजनीति में आने की बात करें तो वह साल 1972 का दौर था जब उन्होंने गुरमीतकल निर्वाचन क्षेत्र से कर्नाटक राज्य विधानसभा लड़ा। इसमें वह जीत गए। इसके बाद उनकी जीत का ये सिलसिला 9 साल तक लगातार चलता रहा।

विधानसभा चुनावों में जीत की लगाई हैट्रिक

1972 के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने साल 2009 तक (यानी न1978, 1983, 1985, 1989, 1994, 1999, 2004, 2008, 2009) विधानसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक लगाई। जब खड़गे गुलबर्गा से सांसद थे, तब उन्हें दो बार साल 2009-2019 में लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता होने का गौरव मिला। कांग्रेस के आलाकमान का उन पर भरोसा ही था जो साल 2019 में बीजेपी के उमेश जाघव से हारने के बाद भी उन्हें सक्रिय भूमिका सौंपी गई। पार्टी ने उनके लिए राज्य सभा से राह बनाई। साल 12 जून 2020 को कर्नाटक से वो राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए तो पार्टी आलानकमान ने 12 फरवरी 2021 को उन्हें राज्यसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर अपनी पसंद बनाया।

राजनीति में आने के बाद भी समाज कल्याण के लिए लड़े

बता दें कि ऐसा नहीं है कि मल्लिकार्जुन खड़गे राजनीति में आने के बाद समाज कल्याण और कमजोर लोगों के लिए लड़ना भूल गए हो। जैसे ये जज्बा उनके खून में ही था। यहीं वजह है कि साल 1972 का चुनाव लड़ने के बाद उन्हें साल 1973 में उन्हें चुंगी उन्मूलन समिति का अध्यक्ष नियुक्त बनाया गया था। ये समिति कर्नाटक राज्य में नगरपालिका और नागरिक निकायों की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए लाई गई थी। इसकी रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन देवराज उर्स सरकार ने कई बिंदुओं पर चुंगी की लेवी को खत्म कर दिया।

मल्लिकार्जुन खड़गे चौदिया मेमोरियल हॉल (Chowdiah Memorial Hall) के संरक्षक हैं। ये बंगलुरु के महत्वपूर्ण संगीत कार्यक्रम और थिएटर स्थलों में से एक है। ये इस केंद्र को उसके कर्ज से उबरने के लिए और नवीनीकरण (Renovation) की योजनाओं में मदद करता है।

डॉ. आंबेडकर के आदर्शो पर चलते हैं खड़गे

जानकारी के लिए आपको बता दें कि साल 2006 में मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि वो बौद्ध धर्म का अनुसरण करते हैं तो डॉ.आंबेडकर के आर्दशों पर चलते हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे ने बौद्ध धर्म को लेकर कहा है कि इसमें वो बेहद आस्था रखते हैं, लेकिन वो अपने ही धर्म में रहना पसंद करेंगे। वह सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के संस्थापक-अध्यक्ष हैं। इस ट्रस्ट ने ही गुलबर्गा में बुद्ध विहार (Buddha Vihar) का निर्माण किया है।

मल्लिकार्जुन खड़गे खेल के मैदान में भी है माहिर खिलाड़ी

13 मई 1968 में मल्लिकार्जुन खड़गे की जिंदगी में राधाबाई उनकी जीवन संगिनी बनीं। मल्लिकार्जुन खड़गे और उनकी पत्नी राधाबाई के 4 बच्चे हैं, जिनमें तीन बेटे हैं और दो बेटियां हैं। 2019 लोकसभा चुनावों के हलफनामे में उन्होंने अपनी संपत्ति 15 करोड़ से अधिक बताई थी। मल्लिकार्जुन खड़गे केवल राजनीति के मैदान के ही अच्छे खिलाड़ी नहीं है बल्कि वह खेल के मैदान में भी माहिर खिलाड़ी हैं।

आज से 12 साल पहले उनके खेल टीचर ने बताया था कि पढ़ाई में औसत रहने वाले खड़गे स्कूल टीम के स्टार थे। वो फुटबॉल, हॉकी और कबड्डी बेहतरीन खेलते थे। वो जिला और डिवीजन लेवल पर स्कूल का प्रतिनिधित्व भी करते थे। इतने लंबे और शानदार राजनीतिक करियर वाले खड़गे हमेशा डॉउन टू अर्थ ही रहे हैं। कांग्रेस नेता के तौर पर लोकसभा (Lok Sabha) में उनके भाषण यादगार रहे हैं। उनके एक वकील साथी सिद्धराम फुलसे ने एक इंटरव्यू में कहा था कि खड़गे अपनी बात पर कायम रहते हैं। वो अपने किए वादे निभाते हैं।

राजनीति में रहते हुए भी विवादों से रहे दूर

कई बार कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे शीर्ष प्रतियोगी रहे लेकिन कभी भी इस पद तक नहीं पहुंचे। मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहले कई बार कहा है कि 'आप मुझे दलित क्यों कहते रहते हैं, ऐसा मत कहिए, मैं कांग्रेस का हूं। स्वभाव से शांत खड़गे कभी भी विवादित पचड़े में नहीं फंसे।

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