रामदेव पर मेहरबान मनोहर सरकार: 2 करोड़ 72 लाख 50 हजार रुपए की कोरोनिल किट खरीदी
(हेल्थ मिनिस्टर अनिल विज 24 मई को ही ट्वीट करके सरकार के फैसले की जानकारी दी, इसका अर्थ है कोरोनिल की खरीद करने पर विचार काफी पहले से चल रहा था और स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा से पहले ही कोरोनिल खरीदी जा चुकी थी।)
चंडीगढ़ से मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। कोविड संक्रमण रोकने के नाम पर किस तरह से चहेतों को लाभ पहुंचाया जा रहा है,इसका बड़ा उदाहरण हरियाणा में सामने आया है। पतंजलि की विवादित आयुर्वेदिक दवा
कोरोनिल किट पर सरकार ने दो करोड़ बहत्तर लाख पचास हजार रुपए खर्च कर दिए हैं। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि दवा अभी तक मरीजों में बांटी भी नहीं गई है। यह दवा अभी भी गोदामों में पड़ी है। करीब पांच करोड़ रुपए की इस दवा को सरकार ने आधे दाम पर खरीदा है। ऐसा दावा सरकार की ओर से किया गया है। दवा पर सरकार के कोविड राहत कोष ने खर्च किया है।
दवा खरीदने के लिए सरकार कितनी उत्साहित है,इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दवा खरीदने की प्रक्रिया की मंजूरी पहले दे दी गई। इसके बाद इस निर्णय को सार्वजनिक किया गया। सीएम मनोहर लाल ने 17 मई को दो करोड़ बहत्तर लाख पचास हजार रुपए की कोरोनिल किट खरीदने को मंजूरी दी। दवा खरीदने में कितनी तेजी दिखाई गई,इसका पता इसी से चलता है कि अगले ही दिन यानी 18 मई को खरीद का ऑर्डर (परचेज ऑर्डर) भी जारी कर दिया गया।
हेल्थ मिनिस्टर अनिल विज 24 मई को ही ट्वीट करके सरकार के फैसले की जानकारी दी, इसका अर्थ है कोरोनिल की खरीद करने पर विचार काफी पहले से चल रहा था और स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा से पहले ही कोरोनिल खरीदी जा चुकी थी।
आरटीआई एक्टिविस्ट और पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के एडवोकेट प्रदीप रापडिया ने आरटीआई के तहत जो जानकारी जुटाई, इससे पता चलता है कि हरियाणा सरकार दवा खरीदने के लिए कितनी उत्साहित थी।
एडवोकेट ने बताया कि पहले ही दिन से यह दवा विवादों में हैं। इसके बाद भी हरियाणा सरकार ने दवा खरीदी। इससे साबित होता है कि सरकार पतंजलि को लाभ पहुंचाना चाह रही है। इसलिए गरीब लोगों को इलाज के नाम पर ऐसी दवा उपलब्ध करा दी, जिस पर कोविड संक्रमण रोकने पर संदेह है।
आरटीआई एक्टिविस्ट ने जानकारी मांगी थी कि यह बताया जाए कि कोरोलिन दवा कोविड के लिए प्रमाणित दवा है।इसका प्रमाण पत्र दिया जाए। उन्होंने बताया कि ऐसा प्रमाण पत्र हरियाणा सरकार की ओर से नहीं दिया गया है। आरटीआई एक्टिविस्ट ने बताया कि उन्हें जो जानकारी दी, इसके मुताबिक
कोरोनिल कोविड के इलाज़ की प्रमाणित दवाई नहीं है। जब यह दवा प्रमाणिक नहीं है तो फिर मरीजों को यह दवा क्यों दी गई। यह मरीजों की सेहत से खिलवाड़ है। क्योंकि यह दवा सिर्फ इम्युनिटी बूस्टर टॉनिक है। यदि ऐसा है तो फिर क्यों नहीं दवा के लिए टेंडर काल किए गए। तब दूसरी कंपनी भी टेंडर में भाग ले सकती थी। सरकार ने सिर्फ पतंजलि को लाभ पहुंचाने के लिए टेंडर की बजाय सीधी दवा ही खरीद ली।
फरवरी महीने में रामदेव ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की मौजूदगी में कोरोनिल को लॉन्च किया था। रामदेव ने दावा किया था कि यह कोरोना की पहली दवा है। इसके बाद इस पर काफी विवाद हुआ था। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सवाल किया था कि एक डॉक्टर और एक स्वास्थ्य मंत्री कैसे देश में एक अवैज्ञानिकज् प्रोडेक्ट को देश में बढ़ावा दे सकते हैं।
इन विवादों के बीच कोविड की दूसरी लहर में हरियाणा सरकार ने कोविड-19 के हल्के से मध्यम लक्षणों वाले मरीजों को घर पर इलाज में मदद पहुंचाने के लिये संजीवनी योजनाज् की शुरुआत की है। योजना की शुरुआत सबसे पहले करनाल जिले में की जानी थी। करनाल विधानसभा क्षेत्र सीएम मनोहर लाल का विधानसभा क्षेत्र भी है। यहां से परियोजना की शुरुआत करने के बाद अन्य प्रभावित इलाकों में भी इसे शुरू किया जाना था।
इस परियोजना के तहत ही पतंजलि की दवा खरीदी गई थी। लेकिन यह दवा अभी गोदामों में पड़ी है।
हरियाणा मेडिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड की ओर से बताया गया कि कोरोनिल दवा का दोबारा से परीक्षण करने जा रहा है। इसमें यह देखा जाएगा कि दवा कोरोना मरीजों के लिए कितनी असरकारक है। अंबाला जो कि हेल्थ मिनिस्टर अनिल विज का जिला है, अंबाला छावनी विधानसभा क्षेत्र से विज विधायक है, यहां के जिला आयुर्वेदिक अधिकारी सतपाल जस्ट ने बताया कि अंबाला जिले के लिए 4000 कोरोनिल किट मिलेगी। लेकिन यह दवा तब मिलेगी जब हरियाणा मेडिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड हमें कोरोनिल किट सौंपेगा।
इधर दवा को सरकार सरकार की मंशा पर सवाल उठाया गया है। यूथ फॉर चेंज के अध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि जब यह दवा मरीजों को दी नहीं गई तो खरीदी क्यों? सरकार को इसका जवाब देना चाहिए। इसके साथ ही अब दवा गोदामों में क्यों पड़ी है। इससे साफ है कि जब प्रदेश में कोविड संक्रमण से हाहाकार मचा हुआ था, लोगों का ऑक्सीजन और जरूरी दवा नहीं मिल रही थी, तब सरकार कोरोनिल खरीदने में लगी हुई थी। इस सरकार को आम आदमी की जान की कोई परवाह नहीं है। इससे यह भी साबित हो रहा है।
अब सरकार इस दवा का क्या करेगी? इस बारे में भी सरकार की ओर से कुछ नहीं बताया जा रहा है। दूसरी ओर आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट प्रदीप रापडिया ने कहा कि वह इस मामले को लेकर कोर्ट में जाएंगे। इसके लिए वह सीबीआई जांच की मांग भी करेंगे। क्योकि दवा खरीद कर सरकार ने एक तरह से अनियमितता की है। दवा की खरीद में उचित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है।
उन्होंने बताया कि एक ओर तो सरकार दावा करती है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई जा रही है, दूसरी ओर सरकार में इस तरह की गड़बड़ी हो रही है। इससे सरकार की मंशा और कार्यप्रणाली दोनो पर सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इससे यह भी साबित हो रहा है कि जब प्रदेश में महामारी से लोगों की जान जा रही थी, तब सरकार लोगों की जान बचाने की बजाय पतंजलि को लाभ पहुंचाने के रास्ते खोज रही थी।