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राजनीति

BSP के सामने पार्टी में भगदड़ रोकने की चुनौती, BJP को समर्थन देने की घोषणा के बाद छिटकेगा मुस्लिम और दलित

Janjwar Desk
30 Oct 2020 10:44 PM IST
BSP के सामने पार्टी में भगदड़ रोकने की चुनौती, BJP को समर्थन देने की घोषणा के बाद छिटकेगा मुस्लिम और दलित
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बसपा सुप्रीमो के ऐलान के बाद पार्टी के लिए मुस्लिम वोटों को सहेजना एक बड़ी चुनौती होगी। भाजपा से गठजोड़ का आरोप लगाते हुए बसपा के कई विधायक बगावत कर चुके हैं....

विवेक त्रिपाठी

लखनऊ, जनज्वार। राज्यसभा चुनाव में मचे सियासी घमासान के बाद बहुजन समाज पार्टी के सामने पार्टी में मची भगदड़ को रोकने की सबसे बड़ी चुनौती है। मायावती सपा से बदला लेने के लिए एमएलसी चुनाव में भाजपा को समर्थन देने की बात कहकर अपने मुस्लिम वोटों को अपने पाले में रखने की चुनौती है। वहीं दलितों का एक वर्ग भी बसपा से छिटक सकता है, जो कुछ घटनाओं को लेकर भाजपा से नाराज चल रहा है।

जिस 'दलित-ब्राह्मण' सोशल इंजीनियरिंग के फामूर्ले के दम पर 2007 में मायावती ने 206 विधानसभा सीटें जीतकर चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की थी, उसके फेल होने के बाद बसपा का 'दलित-मुस्लिम' गठजोड़ भी कोई गुल नहीं खिला सका।

2017 के विधानसभा चुनाव तक दलित-मुस्लिम वोटबैंक भी दरकने लगा और विधानसभा की सिर्फ 19 सीटें जीतने वाली बसपा तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई।

बसपा सुप्रीमो के ऐलान के बाद पार्टी के लिए मुस्लिम वोटों को सहेजना एक बड़ी चुनौती होगी। भाजपा से गठजोड़ का आरोप लगाते हुए बसपा के कई विधायक बगावत कर चुके हैं। मौजूदा विधानसभा में बसपा के 18 विधायकों में 5 मुसलमान हैं, जिसमें से तीन बगावत का बिगुल फूंक चुके हैं। बागी विधायकों ने मायावती पर भाजपा से मिले होने का आरोप लगाया है। लोकसभा में भी बसपा के 10 सांसदों में तीन मुस्लिम हैं।

वरिष्ठ दलित चिंतक कालीचरण का मानना है कि मायावती के इस कदम से बसपा के मुस्लिम वोटों में सेंधमारी हो सकती है। मगर इसके लिए मायावती ने साफ किया है कि वो उपचुनाव की स्थिति में उसी वर्ग के प्रत्याशी उतारेंगी। जिस वर्ग के प्रत्याशी पहले थे। इसके अलावा बसपा अपने नेताओं को विश्वास बहाली के लिए जमीन पर उतारेगी। जैसा पार्टी पहले भी कर चुकी है।

कालीचरण भाजपा का साथ देने को एक कूटनीतिक चाल के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब बसपा ने भाजपा का साथ देने का ऐलान किया है। बसपा भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला चुकी है। पिछले कुछ माह से बसपा सुप्रीमो कांग्रेस पर ज्यादा और भाजपा पर कम हमलावर हैं। यह एक प्रकार का टेस्ट है जो आगे आने वाले समय में बताएगा कि यह कितना कारगर है।

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